विठ्ठल भक्त संत कान्होपात्रा शामा नाम
की वेश्या अपना शरीर बेच कर नाच कर,गा
कर कामी लोगो की काम की पूतली बन कर जीवन जीती थी उस को लड़की हुयी लड़की बड़ी
खुबसूरत थी जीतनी बाहर से खुबसूरत थी,उतनी
भीतर से भी उस की खुबसुरती चमकी सत्संग में जाती15वर्ष की हुयी तब तक तो नाच गाने में बड़ी निपुण हो गयी माँ का धंधा
था नाच गाने का,वेश्या वृत्ति का विदर्भ की घटना है
मंगलवेढा गाव में शामा वेश्या रहेती कान्होपात्रा लड़की को जो भी कोई उस की माँ के
ग्राहक देखते तो उस की चाह करते थे लेकिन कान्होपात्रा किसी कामी के हाथ नहीं चढ़ी
माँ बोलती की ये धंदा कर अगर इस धंदे से नफ़रत है तो एक पति स्वीकार कर के शादी कर
ले, गृहस्थी जीवन जीओ कान्होपात्रा बोली,तुम्हारा ये आग्रह तो मैं मानूंगी
लेकिन पति सदाचारी हो ऐसा नहीं की मेरे हाड मांस को नोच कर मुझे बीमार करे और खुद
भी जल्दी मरे, ऐसा पति नहीं चाहिए जो सुशिल हो, सर्व गुण संपन्न हो संयमी हो
ब्रम्हचर्य का महत्त्व जानता हो माँ तुम बोलती वेश्या का धंदा करो मैंने सत्संग
में सुना है की जो स्त्री पर-पुरुषो के साथ विचरण करती वो दुसरे जनम में खरगोशी
बनती, सुवरी बनती,बकरी बनती है एक बकरा40-40बकरियों के साथ सम्भोग कर सकता है
मनुष्य करे तो उसी दिन मर जाए कामविकार की कई नीच योनियाँ है मुझे उन नीच योनियों
में नहीं भटकना है तुम आग्रह करती हो तो मैं शादी करुँगी लेकिन ऐसा सुशिल
वर(पति)कहाँ मिले? तुम भी देखो मैं भी देखती हूँ अन्दर से
कान्होपात्रा ने ठान लिया की ऐसा वर कहाँ मिलेगा जो संयमी भी हो, परोपकारी हो, सुशिल हो, सदाचारी हो, चमड़े के आकर्षणों से पार हो ऐसा वर
कहाँ मिलेगा? ऐसा तो कोई भगवान को पाया हुआ अथवा
भगवान ही होगा!इन दोनों के सिवा तो नहीं मिल सकता या तो वो भगवत
ज्ञानी-ब्रम्हज्ञानी होगा या तो भगवान होगा अब ब्रम्हग्यानी कहाँ ढूँढू? तो ब्रम्हस्वरूप विठ्ठल के पास जाने
लगी विठ्ठल के दर्शन करती शामा वेश्या की कन्या पांडुरंग को एक टक देखती, अपने को पांडुरंग का और पांडुरंग को
अपना मानती भगवान और गुरु अपने लगने लगते तो भक्ति जागती प्रेमाभक्ति दोषों को हर
लेती है मंगलवेढा की ये कन्या पंढरपुर जाती उस के सौन्दर्य के साथ उस की एकाग्रता
और भक्ति देख कर सब लोग उस की सराहना करने लगे उस की सराहना उसी के लिए मुसीबत बन
गयी युवतियों के लिए 2 मुसीबत है-एक उन का यौवन और दूसरा उन
का सौन्दर्य 3चीजे बड़ी खतरनाक है, और बड़ी हीत कारी भी यौवन, सौन्दर्य, स्वास्थ्य धन ये तीनो अगर सही रस्ते
लगता है तो परम सौन्दर्य परमात्मा का प्रागट्य कर देता है और अगर सुख भोगने में
लगता तो तबाही होती ये शरीर जो बाहर से दिखता है अन्दर से देखो तो तोबा है विचारते
तो भी ग्लानी हो जाए कान्होपात्रा सतसंग और भगवान के भजन से उत्तम विचार की धनि
बनी थी उस ने पक्का कर लिया की,इस
हाड मांस के शरीर को कामीयों की कठ-पुतली बनाने के बदले भगवान विठ्ठल की मैं भक्त
बनूँगी.. बीदर के राजा खुदा खैर करे, बंडा
लहर करे ऐसा बीवियों पर बिवियां करता मानो बिवियां बनाने का ठेका लेकर रखा है उस
को पता चला की इस युग की एक महा सुंदरी है अभी 16 साल की है, तो राजा ने मंत्री और सैनिको को आदेश
दिया की उस सुंदरी को पता कर ले आये, नहीं
आई तो मैं राजा हूँ, मेरा हुकुम है कर के बल पूर्वक उठा के
लाये अब राजा का मंत्री और सैनिक जब किसी को लेने के लिए आवे तो कौन उस में आड़े
आयेगा? संयोग से कान्होपात्रा उस समय पंढरपुर
में थी उस को समझा-पटा कर ले जाने के बात की तो वो समझ गयी स्री के पास एक सद्गुण
होता है चटाक से समझ जाती है कि सामनेवाला हरामखोरी से बात कर रहा है की बहेन के
भाव से बात कर रहा है कान्होपात्रा बेचारी सिकुड़ गयी नहीं आई तो ये बल पूर्वक ले
जायेंगे ऐसा आदेश है तनिक शांत हो गयी..अंतरात्मा तो सभी के अन्दर है चाहे विठ्ठल
के नाम से पुकारो , कृष्ण के नाम से पुकारो, गुरु के नाम से पुकारो, चाहे राम जी के नाम से पुकारो, पुकारते ही प्रेरना मिली बोली, “तुम मुझे बलपूर्वक क्यों ले जाओगे, मैं खुद ही तुम्हारे साथ चलूंगी थोड़ी
देर के लिए मुझे पांडुरंग के दर्शन करने दो..” बोले,“सिपाही साथ चलेंगे…” बोली, “हां,चले मैं पांडुरंग का दर्शन करुँगी, प्रार्थना करुँगी ” दर्शन करते करते ऐसी अन्तरंग प्रार्थना
में पहुँच गयी “अब मैं तुम्हारे शरण आई हूँ संसार के
शरण जाने से मेरा दुःख नहीं मिटेगा, लेकिन
तुम्हारे शरण आई हूँ तो मेरा दुःख टिकेगा नहीं, मुझे
पक्का विश्वास है मैं मेरी शामा माँ के पास जाउंगी तो वो मेरा दुःख नहीं मिटा सकती
और राजा के पास जाउंगी तो मेरा दुःख क्या मिटेगा, काम विकार की पुतली बन के मेरा जीवन बर्बाद हो जाएगा अब तो मैं तेरी
शरण में हूँ पांडुरंगा अब इस कामविकार के पुतले जैसे शरीर से मेरा कोई लेना-देना
नहीं है मैं तो तुम को वर चुकी हूँ अब तुम्हारी सती को दूसरा कोई ले जाए?तुम ही मेरे माता पिता हो,बंधू सखा भी हो पति भी हो वास्तव में
संसार का पति पिता नहीं हो सकता,पुत्र
नहीं हो सकता लेकिन तुम पिता भी हो सकते, माता
भी हो सकते जो भी सम्बन्ध मान लो,लेकिन
मुझे अपने चरणों में ले लो हरी शरणम हरी शरणम पांडुरंग शरणम गच्छामि..” एक टक पांडुरंग को देखते देखते अनेक
रूपों में व्याप्त जो ब्रम्ह परमात्मा है वो अपना आत्मा है..कान्होपात्रा वही ढल
गयी उस की जीवन ज्योति परम पांडुरंग तत्व में समा गयी घडा फुटा तो आकाश महा-आकाश
में मिल गया उस के शरीर की अंतेष्टि की गयी जो हड्डिया थी वो मंदिर के दक्षिण भाग
में गाड़ दी गयी दुनिया के पता चले की दुःख आये तो दुःख हारी के शरण जाओ शरीर
मिटने के बाद कान्होपात्रा का दुःख नहीं टिका, शरीर
रहेता तो भी दुःख नहीं छुटता जरुरी नहीं की सब कान्होपात्रा की तरह शरीर को त्याग
दे ऐसे चक्कर मेँ नहीँ पड़ना कान्होपात्रा ने संकल्प किया था,इसलिए शरीर त्यागा काम विकारियों की
पुतली जैसे शरीर को त्यागने का संकल्प किया था,तो
जैसे जिस के तीव्र संकल्प होते,भगवान
वैसा करते।
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