।।कृष्णं वन्दे जगद्गुरूम्।।
।। श्री नारायण कवच।।
                  राजा परीक्षित ने इतनी कथा सुनकर पूछा - हे शुकदेव स्वामी। विश्वरूप की थोड़ी कृपा करने से इन्द्र ने किस प्रकार दैत्यों को जीतकर अपना राज्य स्थिर रखा। शुकदेवजी बोले - हे राजन। विश्वरूप ने इन्द्र को ऐसा नारायण कवच सिखला दिया कि जिस कवच का मन्त्र पढ़कर अंग पर फूँक देने और वह कवच लिखकर भुजा पर बाँधने से किसी शस्त्र का घाव नहीं लगता। जिस तरह शूरवीर अपने अंग की रक्षा के लिए कवच पहन लेता है, उसी तरह का कवच इसे समझना चाहिए। सो राजा इंद्र वही मन्त्र अपने शरीर पर फूँककर लङने के लिए चढे थे, उसी के प्रताप से दैत्यों को जीता। यह सुनकर परीक्षित ने विनय किया - महाराज। जिस कवच में ऐसा गुण व प्रताप हैं, उसका विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए। शुकदेवजी बोले - हे राजन। जिस समय किसी मनुष्य को कुछ भय प्राप्त हो, उस समय हाथ पाँव धोकर आचमन करके उत्तर मुँह बैठे और आठ अक्षर के ऊँ नमो नारायणाय के मन्त्र से अंगन्यास व करन्यास करके बारह अक्षर के ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय का मन्त्र पढ़कर यो कहे - जल में मत्स्यावतार से रक्षा करो, पाताल में वामन अवतार से रक्षक हो, जहाँ पर किला व जंगल है वहाँ नृसिंहजी रक्षा करे, मार्ग में यज्ञ भगवान रक्षा करे, विदेश में व पर्वत पर श्री रामचंद्रजी रक्षक हो, योग मार्ग में दत्तात्रेयजी रक्षा करें, देवता के अपराध से सनत्कुमार रक्षक हो, पूजा के विध्न में नारदजी सहायक हों,कुपथ्य से धन्वंतरि वैध रक्षा करें, अज्ञान से वेदव्यासजी और अर्धम से कलकी भगवान सहयता करें।



                गोविंद, नारायण, बलभद्र, मधुसूदन, हृषीकेश, पद्मनाभ, गोपीनाथ, दामोदर, ईश्वर, परमेश्वर जो भगवान के नाम हैं, वे आठों पहर सब अंगों व इन्द्रियों की रक्षा करें। बैकुण्ठनाथ का शंख, चक्र, गदा, पद्म और गरूङजी अनेक भय से रक्षा करें। यही कवच विश्वरूप ने इन्द्र को बतलाकर कहा, हे इन्द्र। इस नारायण कवच को धारण करने वाले मनुष्य का सब भय छूट जाता है। यही कवच पढ़कर गरूङजी बैकुण्ठनाथ को अपने ऊपर बैठाकर उङते है, जिसके प्रताप से कोई उनको जीत नहीं सकता। इस कवच का अभ्यास रखने वाला कौशिक नाम का ब्राह्मण मरूदेश में मर गया था, उसकी हङिङया वहाँ पङी थी, एक दिन चित्ररथ गन्धर्व का विमान उड़ता हुआ चला जाता था। जैसे ही विमान की छाया उन हङिङयो पर पड़ी, वैसे ही विमान उलट गया। जब बालखिल्य ॠषीवर के उपदेश से उस गन्धर्व ने उन हङिङयों को सरस्वती नदी में प्रवाहित किया, तब उसका विमान फिर से उङने लगा। सो हे राजन। ऐसा नारायण कवच हमने तुम्हें सुनाया। जो इस कवच को पढ़ा करे उसके सामने युद्ध में कोई नहीं ठहर सकता।
।।श्री नारायण भगवान की जय।।
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