घातक बीमारियों का घर है विदेशी गायों का दूध
                            भारत में श्वेत क्रांति लाने के बहाने विदेशी नस्ल की गायों को बढावा देकर देशी नस्ल को खत्म करने का विदेशी कुचक्र रचा गया ।
विदेशी संकरित गोवंश की हानियाँ
                डॉ. उत्तम माहेश्वरी ने अपने शोध प्रबंध द काऊ थेरेपीमें स्पष्ट किया है कि जर्सी आदि विदेशी नस्लें अप्राकृतिक पशु हैं । वैज्ञानिकों ने कुछ पशुओं के जीन्स के साथ छेड़छाड़ कर इन्हें बनाया है ।उन्होंने जर्सी गाय को रोगों का घर कहा और इसकी तुलना विशालकाय सुअर से की । मांसाहारियों में सुअर का मांस खानेवालों में आँतों का कैंसर अधिक पाया जाता है, इसी तरह शाकाहारियों में जर्सी गाय का दूध पीनेवालों में आँतों का कैंसर अधिक पाया गया है । वैज्ञानिक डॉ. कीथ वुडफोर्ड ने अपनी पुस्तक द डेविल इन द मिल्कमें लिखा है कि विदेशी गायों का दूध मानव-शरीर में बीटा केसोमॉर्फीन-७नामक विषाक्त तत्त्व छोड़ता है । इसके कारण मधुमेह, धमनियों में खून जमना, दिल का दौरा, ऑटिज्म और स्किजोफ्रेनिया (एक प्रकार का मानसिक रोग) जैसी घातक बीमारियाँ होती हैं ।चिकित्सकों के अनुसार जर्सी या फ्रिजीयन गायों के शरीर, खुरों तथा मूत्र व गोबर से विषैले कीटाणु विकसित होकर फैलते हैं, जिससे आसपास का पर्यावरण विषाक्त हो जाता है । उसमें साँस लेनेवालों के फेफड़ों में वे विषाणु प्रवेश करके नयी-नयी बीमारियाँ पैदा करते हैं, जिससे हजारों लोगों की मौत हो चुकी है ।
                  दूसरी ओर देशी गाय के गो-रसों (दूध, घी, गोबर, गोझरण आदि) से व गाय के सम्पर्क में रहने, स्पर्श व सेवा करने से कई असाध्य रोग भी मिट जाते हैं । राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो, करनाल के डॉ. डी.के. सदाना कहते हैं : ‘‘भारतीय गोवंश के मूत्र में रेडियोधर्मिता सोखने की क्षमता पायी जाती है, जो भोपाल गैस त्रासदी के दौरान भी सिद्ध हो चुकी है । गौ-गोबर से लीपे हुए घरों पर कम असर हुआ था । देशी गाय के दूध में स्वर्ण-क्षार भी होते हैं । मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडियाने भी देशी गाय के दूध को सर्वोत्तम माना है ।’’ वैज्ञानिक डॉ. मनोज तोमर के अनुसार देशी गाय के दूध से बने दही में ऐसा जीवाणु पाया जाता है जो एड्स-विरोधी गुणधर्म रखता है ।
              जर्सी आदि विदेशी संकरित गायों का दूध भैंस के दूध से भी अधिक हानिकारक होता है । अतः इनके दूध का उपयोग तो कदापि न करें ।

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