संकल्पशक्ति
से सब सम्भव है ।
संत
श्री आसाराम जी बापू के सत्संग-प्रवचन से
संकल्प
में बड़ी शक्ति होती है और अभी का संकल्प अभी भी फलित हो सकता है, दो
दिन, दस दिन, सौ
दिन या सौ साल के बाद भी फलित हो सकता है। संकल्पों की ही दुनिया है।
एक
बार गुरु ने शिष्यों से पूछाः “सबसे ज्यादा ठोस क्या चीज है ?”
एक
शिष्य ने कहाः पत्थर। दूसरे ने कहाः लोहा। तीसरे ने कुछ और कहा।
गुरु
ने कहाः “सबसे ठोस, शक्तिशाली
है ‘संकल्प’, जो
पत्थरों को चूर कर दे, लोहे को पिघला दे और परिस्थितियों को
बदल दे।”
तो
ठोस में ठोस है संकल्प और उसका अधिष्ठान है सबसे ठोस ‘आत्मा-परमात्मा’।
परमात्मा सत्य-संकल्प है तो वहाँ ठहरकर आप परमात्मा की जागृत अवस्था में अनजाने
में आ जाते हैं। प्रार्थना करते-करते शांत होते हैं तो पूर्ण अवस्था की कुछ घड़ी
आती है, उस समय प्रार्थना फलती है, संकल्प
फलता है
एक
बार सूरत में, मैं सुबह टहलने के लिए पैदल जा रहा था
तो वहाँ से कोई मुल्ला जी स्कूटर से बड़ी फुर्ती से गुजरा। वह निकल तो गया लेकिन
एक बार उसने मेरी तरफ देखा और फिर दौड़ाया स्कूटर। मैंने सोचा कि ‘इसका
कुछ तो भला होना चाहिए। एक बार भी दर्शन किया तो खाली क्यों जाय ?’
मैंने
उसे आवाज तो नहीं लगायी पर अंदर से कहा कि ‘ठहर
जा, ठहर जा…’ तो
टायर पंक्चर हो गया। फिर वह पीछे देखता रहा। मैं तो पैदल घूमने चला गया।
फिर
मैं वहाँ से वापस गुजरा तो उसने कहाः “महाराज
! कहाँ जा रहे हो।” इतने में मेरी गाड़ी आ गयी। मैं गाड़ी
से उसको ‘समता साम्राज्य’ व
ब्रह्मचर्य की पुस्तक दी और प्रसादरूप में केले देकर कहाः “बस
अब जा सकते हो।”
वह
बोलाः “अच्छा, खुदा
हाफिज !” और मुझे देखता रह गया।
तात्पर्य
यह है कि यदि तुम्हारे हृदय में शुद्धता है, अंतःकरण
स्वच्छ है, प्रेम है तो तुम्हारे संकल्प के अनुसार
घटनाएँ घटती हैं। जैसे शबरी के जीवन में प्रेम था, हृदय
शुद्ध था तो राम जी ने आकर उसके बेर ही माँगे। रामजी को भूख लगी थी अथवा राम जी को
बेर खाने का शौक था ? नहीं, शबरी
का संकल्प राम जी के द्वारा क्रियान्वित हो रहा था। ऐसे ही श्रीकृष्ण के लिए
कौरवों ने बड़ी व्यवस्था की थी भोजन-छाजन की, श्रीकृष्ण
वहाँ नहीं गये और विदुरजी की पत्नी – काकी
के यहाँ गये। और वह काकी भी सचमुच भोली-भाली थी !
विदुरजी
ने कहाः “केले तैयार करके रखना।” अब
छिलके गाय को देने हैं और केले रखने हैं लेकिन वह पगली छिलके-छिलके रखती जाती है
और केले-केले गाय को देती जाती है। गाय तो केले स्वाहा कर गयी। अब कृष्ण आयेः “काकी
! बहुत भूख लगी है।” तो उसने छिलकों का थाल रख दिया। उसको
पता ही नहीं कि मैं क्या रख रही हूँ ! और भगवान श्रीकृष्ण ने केले के छिलके खाये। ‘श्रीकृष्ण
आयेंगे, खायेंगे, खायेंगे…..’ इतनी
तीव्रता थी और संकल्प था तो श्रीकृष्ण आये और उसके द्वारा भाव-भाव में अर्पण किये
गये छिलके तक खाये।
संकल्पशक्ति
क्या नहीं कर सकती ! इसलिए आप हमेशा ऊँचे संकल्प करो और उनको सिद्ध करने के लिए
प्रबल पुरुषार्थ में लग जाओ। अपने संकल्प को ठंडा मत होने दो, अन्यथा
दूसरों के संकल्प तुम्हारे मन पर हावी हो जायेंगे और कार्यसिद्धि का मार्ग रूँध
जायेगा। तुम स्वयं सिद्धि का खजाना हो। सामर्थ्य की कुंजी तुम्हारे पास ही है।
अपने मन को मजबूत बना तो तुम पूर्णरूपेण मजबूत हो। हिम्मत, दृढ़
संकल्प और प्रबल पुरुषार्थ से ऐसा कोई ध्येय नहीं है जो सिद्ध न हो सके। तुम्हारे
संकल्प में अथाह सामर्थ्य है। जितना तुम्हारा संकल्प में अथाह सामर्थ्य है। जितना
तुम्हारा संकल्प सात्त्विक होगा और जितनी तुम्हारी श्रद्धा अडोल होगी तथा जितनी
तुम्हारी तीव्रता होगी, उतना वह फलित होगा।
व्यर्थ
के संकल्पों को कैसे दूर करें ?
व्यर्थ
के संकल्प न करें। व्यर्थ के संकल्पों से बचने के लिए ‘हरि
ॐ…’ के प्लुत गुंजन का भी प्रयोग किया जा सकता है। ‘हरि
ॐ…..’ का गुंजन करें फिर शांत हो जायें। मन इधर-उधर
भागे तो फिर गुंजन करें। यह व्यर्थ संकल्पों को हटायेगा एवं महासंकल्प की पूर्ति
में मददरूप होगा। व्यर्थ के चिंतन को व्यर्थ समझकर महत्त्व मत दो।
पवित्र
स्थान में किया हुआ संकल्प जल्दी फलता है। जहाँ सत्संग होता हो, हरि
चर्चा होती हो, हरि कीर्तन होता हो वहाँ अगर शुभ
संकल्प किया जाय तो जल्दी सिद्ध होता है।
स्रोतः
ऋषि प्रसाद
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