तेजस्वी जीवन की कुंजी : त्रिकाल संध्या

संध्यामुपासते ये तु सततं संशितव्रताः ।
विधूतपापास्ते यान्ति ब्रह्मलोकं सनातनम् ॥
                      भगवान राम संध्या करते थे, भगवान श्री कृष्ण संध्या करते थे, भगवान राम के गुरूदेव वशिष्ठ भी संध्या करते थे । मुसलमान लोग नमाज़ पढने में इतना विश्वास रखते हैं कि चालू आफिस से भी समय निकालकर नमाज पढने चले जाते हैं जबकि हम लोग आज पश्चिम की मैली संस्कृति तथा नश्वर संसार की नश्वर वस्तुओं को प्राप्त करने की होड़दौड़ में संध्या करना बंद कर चुके हैं या भूल चुके हैं । शायद ही एक-दो प्रतिशत लोग कभी नियमित रूप से संध्या करते होगे ।
                             आजकल लोग संध्या करना भूल गये हैं इसलिए जीवन में तमस बढ़ गया है । प्राणायाम से जीवनशक्ति, बौद्धिक शक्ति और स्मरणशक्ति का विकास होता है । संध्या के समय हमारी सब नाड़ियों का मूल आधार जो सुषुम्ना नाड़ी है, उसका द्वार खुला हुआ होता है । इससे जीवनशक्ति, कुंडलिनी शक्ति के जागरण में सहयोग मिलता है । वैसे तो ध्यान-भजन कभी भी करो, पुण्यदायी होता है किन्तु संध्या के समय उसका प्रभाव और भी बढ़ जाता है । त्रिकाल संध्या करने से विद्यार्थी भी बड़े तेजस्वी होते हैं । अतएव जीवन के सर्वांगीण विकास के लिए मनुष्यमात्र को त्रिकाल संध्या का सहारा लेकर अपना नैतिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक उत्थान करना चाहिए । रात्रि में अनजाने में हुए पाप सुबह की संध्या से दूर होते हैं । सुबह से दोपहर तक के दोष दोपहर की संध्या से और दोपहर के बाद अनजाने में हुए पाप शाम की संध्या करने से नष्ट हो जाते हैं तथा अंतःकरण पवित्र होने लगता है ।
कब करें ?

                      प्रातः सूर्योदय के 10 मिनट पहले से 10 मिनट बाद तक, दोपहर के 12 बजे से 10 मिनट पहले से 10 मिनट बाद तक एवं शाम को सूर्यास्त के 10 मिनट पहले से 10 मिनट बाद तक  - यह समय संधि का होता है ।
                        प्राचीन ऋषि-मुनि त्रिकाल संध्या करते थे । भगवान श्रीरामजी और उनके गुरुदेव वसिष्ठजी भी त्रिकाल संध्या करते थे । भगवान राम संध्या करने के बाद ही भोजन करते थे । इड़ा और पिंगला नाड़ी के बीच में जो सुषुम्ना नाड़ी है, उसे अध्यात्म की नाड़ी भी कहा जाता है। उसका मुख संधिकाल में उर्ध्वगामी होने से इस समय प्राणायाम, जप, ध्यान करने से सहज में ज़्यादा लाभ होता है।

कैसे करें ?
                  संध्या के समय हाथ-पैर धोकर, तीन चुल्लू पानी पीकर फिर संध्या में बैठें और प्राणायाम करें, जप करें, ध्यान करें तो बहुत अच्छा । अगर कोई ऑफिस या कहीं और जगह हो तो वहीं मानसिक रूप से कर ले तो भी ठीक है ।
ऋषि-मुनियों की बतायी हुई दिव्य प्रणाली
                         त्रिकाल संध्या माने हृदयरूपी घर में तीन बार बुहारी । इससे बहुत फायदा होता है । जो तीनों समय की संध्या करता है, उसे रोजी-रोटी की चिन्ता नहीं करनी पडती, उसकी अकाल मृत्यु नहीं होती और उसके कुल में दुष्ट आत्माएँ, माता-पिता को सतानेवाली आत्माएँ नहीं आतीं ।
                        त्रिकाल संध्या करने से असाध्य रोग भी मिट जाते हैं। ओज़, तेज, बुद्धि एवं जीवनशक्ति का विकास होता है। हमारे ऋषि-मुनि एवं श्रीराम तथा श्रीकृष्ण आदि भी त्रिकाल संध्या करते थे। इसलिए हमें भी त्रिकाल संध्या करने का नियम लेना चाहिए।

जीवन को यदि तेजस्वी, सफल और उन्नत बनाना हो तो मनुष्य को त्रिकाल संध्या अवश्य करनी चाहिए ।
                          अतः सुबह, दोपहर एवं सांय- इन तीनों समय संध्या करनी चाहिए। त्रिकाल संध्या करने वालों को अमिट पुण्यपुंज प्राप्त होता है। त्रिकाल संध्या में प्राणायाम, जप, ध्यान का समावेश होता है। इस समय महापुरूषों के सत्संग की कैसेट भी सुन सकते हैं। आध्यात्मिक उन्नति के लिए त्रिकाल संध्या का नियम बहुत उपयोगी है।
                        जबसे भारतवासी ऋषि-मुनियों की बतायी हुई दिव्य प्रणालियाँ भूल गये, त्रिकाल संध्या करना भूल गये, अध्यात्मज्ञान को भूल गये तभी से भारत का पतन प्रारम्भ हो गया । अब भी समय है । यदि भारतवासी शास्त्रों में बतायी गयी, संतों-महापुरुषों द्वारा बतायी गयी युक्तियों का अनुसरण करें तो वह दिन दूर नहीं कि भारत अपनी खोयी हुई आध्यात्मिक गरिमा को पुनः प्राप्त करके विश्वगुरु पद पर आसीन हो जाय ।


त्रिकाल संध्या करने से लाभ
•             त्रिकाल संध्या करने वाले की कभी अपमृत्यु नहीं होती।
•             त्रिकाल संध्या करने वाले को किसी के सामने हाथ फैलाने का दिन कभी नहीं आता है। शास्त्रों के अनुसार उसे रोजी रोटी की चिन्ता सताती नहीं है।
•             त्रिकाल संध्या करने वाले व्यक्ति का चित्त शीघ्र निर्दोष हो जाता है, पवित्र हो जाता है, उसका मन तन्दुरूस्त रहता है, मन प्रसन्न रहता है तथा
•             उसमें मन्द और तीव्र प्रारब्ध को परिवर्तित करने का सामर्थ्य आ जाता है। वह तरतीव्र प्रारब्ध का उपभोग करता है।
•             उसको दुःख, शोक, हाय-हाय या चिन्ता कभी अधिक नहीं दबा सकती।
•             त्रिकाल संध्या करने वाली पुण्यशीला बहनें और पुण्यात्मा भाई अपने कुटुम्बी और बाल-बच्चों को भी तेजस्विता प्रदान कर सकते हैं।
•             त्रिकाल संध्या करने वाले का चित्त आसक्तियों में इतना अधिक नहीं डूबता।
•             त्रिकाल संध्या करने वाले का मन पापों की ओर उन्मुख नहीं होता।
•             त्रिकाल संध्या करने वाले व्यक्ति में ईश्वर-प्रसाद पचाने का सामर्थ्य आ जाता है।
•             शरीर की स्वस्थता, मन की पवित्रता और अन्तःकरण की शुद्धि भी संध्या से प्राप्त होती है।
•             त्रिकाल संध्या करने वाले भाग्यशालियों के संसार-बंधन ढीले पड़ने लगते हैं।
•             त्रिकाल संध्या करने वाली पुण्यात्माओं के पुण्य-पुंज बढ़ते ही जाते हैं।
•             त्रिकाल संध्या करने वाले के दिल और फेफड़े स्वच्छ और शुद्ध होने लगते हैं।
•             उसके दिल में हरिगान अनन्य भाव से प्रकट होता है तथा जिसके दिल में अनन्य भाव से हरितत्त्व स्फुरित होता है, वह वास्तव में सुलभता से अपने परमेश्वर को, सोऽहम् स्वभाव को, अपने आत्म-परमात्मरस को यहीं अनुभव कर लेता है। ऐसे महाभाग्यशाली साधक-साधिकाओं के प्राण लोक-लोकांतर में भटकने नहीं जाते।
•             उनके प्राण तो प्राणेश्वर में मिलकर जीवन्मुक्त दशा का अनुभव करते हैं। जैसे आकाश सर्वत्र है वैसे ही उनका चित्त भी सर्वव्यापी होने लगता है।
•             जैसे ज्ञानी का चित्त आकाशवत् व्यापक होता है वैसे ही उत्तम प्रकार से त्रिकाल संध्या और आत्मज्ञान का विचार करने वाले साधक को सर्वत्र शांति, प्रसन्नता, प्रेम तथा आनन्द मिलता है।
•             जैसे पापी मनुष्य को सर्वत्र अशांति और दुःख ही मिलता है वैसे ही त्रिकाल संध्या करने वाले को दुश्चरित्रता की मुलाकात नहीं होती।
•             जैसे गारूड़ी मंत्र से सर्प भाग जाता है, वैसे ही गुरूमंत्र से पाप भाग जाते हैं और त्रिकाल संध्या करने शिष्य के जन्म-जन्मांतर के कल्मश, पाप, ताप जलकर भस्म हो जाते हैं।
हाथ में जल रखकर सूर्यनारायण को अर्घ्य देने से भी अच्छा साधन आज के युग में मानसिक संध्या करना होता है ,इसलिए जहाँ भी रहे, तीनों समय थोड़े से जल के आचमन से, त्रिबन्ध प्राणायाम के माध्यम से संध्या कर देना चाहिए तथा प्राणायाम के दौरान अपने इष्ट मंत्र का जप करना चाहिए।