शिवाजी का बुद्धि चातुर्य
                नरकेसरी वीर शिवाजी आजीवन अपनी मातृभूमि भारत की स्वतंत्रता के लिए लडते रहे । वे न तो स्वयं कभी प्रमादी हुए और न ही उन्होंने दुश्मनों को चैन से सोने दिया । वे कुशल राजनीतिज्ञ तो थे ही साथ ही उनका बुद्धिचातुर्य भी अद्भुत था । वीरता के साथ विद्वता का संगम यश देनेवाला होता है ।
         शिवाजी के जीवन में ऐसे कई प्रसंग आये जिनमें उनके इन गुणों का संगम देखने को मिला । इसमें से एक मुख्य प्रसंग है - आदिलशाह के सेनापति अफज़लखान के विनाश का ।
             शिवाजी के साथ युद्ध करके उन्हें जीवित ही पकड लेने के उद्देश्य से इस खान सरदार ने बहुत बडी सेना को साथ में लिया था । तीन साल चले इतनी युद्ध-सामग्री लेकर वह बीजापुर से निकला था । इतनी विशाल सेना के सामने टक्कर लेने हेतु शिवाजी के पास इतना बडा सैन्यबल न था ।
            शिवाजी ने खान के पास संदेश भिजवाया : मुझे आपके साथ नहीं लडना है । मेरे व्यवहार से आदिलशाह को बुरा लगा हो तो आप उनसे मुझे माफी दिलवा दीजिये । मैं आपका आभार मानूँगा और मेरे अधिकार में आनेवाला मुल्क भी मैं आदिलशाह को खुशी से सौंप दूँगा ।
              अफज़लखान समझ गया कि शिवाजी मेरी सेना देखकर ही डर गया है । उसने अपने वकील कृष्ण भास्कर को शिवाजी के साथ बातचीत करने के लिए भेजा । शिवाजी ने कृष्ण भास्कर का सत्कार किया और उसके द्वारा कहलवा भेजा : मुझे आपसे मिलने आना तो चाहिए लेकिन मुझे आपसे डर लगता है । इसलिए मैं नहीं आ सकता हूँ ।
             इस संदेश को सुनकर कृष्ण भास्कर की सलाह से ही खान ने स्वयं शिवाजी से मिलने का विचार किया और इसके लिए शिवाजी के पास संदेश भी भिजवा दिया ।
            शिवाजी ने इस मुलाकात के लिए खान का आभार माना और उसके सत्कार के लिए बडी तैयारी की । जावली के किले के आस-पास की झांडियाँ कटवाकर रास्ता बनाया तथा जगह-जगह पर मंडप बाँधे । अफज़लखान जब अपने सरदारों के साथ आया तब शिवाजी ने पुनः कहला भेजा : मुझे अब भी भय लगता है । अपने साथ दो सेवक ही रखियेगा । नहीं तो आपसे मिलने की मेरी हिम्मत नहीं होगी ।
                खान ने संदेश स्वीकार कर लिया और अपने साथ के सरदारों को दूर रखकर केवल दो तलवारधारी सेवकों के साथ मुलाकात के लिए बनाये गये तंबू में गया । शिवाजी को तो पहले से ही खान के कपट की गंध आ गयी थी, अतः अपनी स्वरक्षा के लिए उन्होंने अपने अँगरखे की दायीं तरफ खंजर छुपाकर रख लिया था और बायें हाथ में बाघनखा पहनकर मिलने के लिए तैयार खडे रहे ।
               जैसे ही खान दोनों हाथ लंबे करके शिवाजी को आलिंगन करने गया, त्यों ही उसने शिवाजी के मस्तक को बगल में दबा लिया । शिवाजी सावधान हो गये । उन्होंने तुरंत खान के पाश्र्व में खंजर भोंक दिया और बाघनखे से पेट चीर डाला । खान के दगा, दगा... की चीख सुनकर उसके सरदार तंबू में घुस आये । शिवाजी एवं उनके सेवकों ने उन्हें सँभाल लिया । फिर तो दोनों ओर से घमासान युद्ध छिड गया । जब खान के शव को पालकी में लेकर उसके सैनिक जा रहे थे, तब उनके साथ लडकर शिवाजी के सैनिकों ने मुर्दे का सिर काट लिया और धड को जाने दिया ! खान का पुत्र फाजल खान भी घायल हो गया । खान की सेना की बडी बुरी हालत हो गयी एवं शिवाजी की सेना जीत गयी ।
               इस युद्ध में शिवाजी को करीब ७५ हाथी, ७००० घोडे, १०००-१२०० के करीब ऊँट, बडा तोपखाना, २-३ हजार बैल, १०-१२ लाख सोने की मुहरें, २००० गाडी भरकर कपडे एवं तंबू वगैरह का सामान मिल गया था ।

               यह शिवाजी की वीरता एवं बुद्धिचातुर्य का ही परिणाम था । जो काम बल से असंभव-सा था उसे उन्होंने युक्ति से कर लिया !
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ