गुड़ी पड़वा – ८ अप्रैल २०१६
चैत्र
मास की शुक्ल प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा या वर्ष प्रतिपदा या उगादि (युगादि) कहा
जाता है। इस दिन हिन्दु नववर्ष का आरम्भ होता है। ‘गुड़ी’ का
अर्थ ‘विजय पताका’ होता है। कहते हैं शालिवाहन नामक एक
कुम्हार-पुत्र ने मिट्टी के सैनिकों की सेना से प्रभावी शत्रुओं का पराभव किया। इस
विजय के प्रतीक रूप में शालिवाहन शक का प्रारंभ इसी दिन से होता है। ‘युग‘
और ‘आदि‘
शब्दों
की संधि से बना है ‘युगादि‘। आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में ‘उगादि‘
और
महाराष्ट्र में यह पर्व ‘ग़ुड़ी पड़वा’ के रूप में
मनाया जाता है।
कहा
जाता है कि इसी दिन ब्रह्माजी ने सृष्टि का निर्माण किया था। इसमें मुख्यतया
ब्रह्माजी और उनके द्वारा निर्मित सृष्टि के प्रमुख देवी-देवताओं, यक्ष-राक्षस,
गंधवारें,
ऋषि-मुनियों,
नदियों,
पर्वतों,
पशु-पक्षियों
और कीट-पतंगों का ही नहीं, रोगों और उनके उपचारों तक का भी पूजन
किया जाता है। इसी दिन से नया संवत्सर शुंरू होता है। अत इस तिथि को ‘नवसंवत्सर‘
भी
कहते हैं। चैत्र ही एक ऐसा महीना है, जिसमें वृक्ष तथा लताएं पल्लवित व
पुष्पित होती हैं। शुक्ल प्रतिपदा का दिन चंद्रमा की कला का प्रथम दिवस माना जाता
है। जीवन का मुख्य आधार वनस्पतियों को सोमरस चंद्रमा ही प्रदान करता है। इसे
औषधियों और वनस्पतियों का राजा कहा गया है। इसीलिए इस दिन को वर्षारंभ माना जाता
है।
आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और
महाराष्ट्र में सारे घरों को आम के पेड़ की पित्तयों के बंदनवार से सजाया जाता है।
सुखद जीवन की अभिलाषा के साथ-साथ यह बंदनवार समृद्धि, व अच्छी फसल के
भी परिचायक हैं। ‘उगादि‘ के दिन ही पंचांग तैयार होता है। महान
गणितज्ञ भास्कराचार्य ने इसी दिन से सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन, महीना
और वर्ष की गणना करते हुए ‘पंचांग ‘ की रचना की।
चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को महाराष्ट्र में गुड़ीपड़वा कहा जाता है। वर्ष के
साढ़े तीन मुहूतारें में गुड़ीपड़वा की गिनती होती है। शालिवाहन शक का प्रारंभ इसी
दिन से होता है।
कहा
जाता है कि शालिवाहन नामक एक कुम्हार के लड़के ने मिट्टी के सैनिकों की सेना बनाई
और उस पर पानी छिड़ककर उनमें प्राण फूँक दिए और इस सेना की मदद से शिक्तशाली
शत्रुओं को पराजित किया। इस विजय के प्रतीक के रूप में शालिवाहन शक का प्रारंभ
हुआ। कई लोगों की मान्यता है कि इसी दिन भगवान राम ने बाली के अत्याचारी शासन से
दक्षिण की प्रजा को मुक्ति दिलाई। बाली के त्रास से मुक्त हुई प्रजा ने घर-घर में
उत्सव मनाकर ध्वज (ग़ुड़ियां) फहराए। आज भी घर के आंगन में ग़ुड़ी खड़ी करने की प्रथा
महाराष्ट्र में प्रचलित है। इसीलिए इस दिन को गुड़ीपडवा नाम दिया गया।
इस
अवसर पर आंध्र प्रदेश में घरों में ‘पच्चड़ी/प्रसादम‘ तीर्थ
के रूप में बांटा जाता है। कहा जाता है कि इसका निराहार सेवन करने से मानव निरोगी
बना रहता है। चर्म रोग भी दूर होता है। इस पेय में मिली वस्तुएं स्वादिष्ट होने के
साथ-साथ आरोग्यप्रद होती हैं। महाराष्ट्र में पूरन पोली या मीठी रोटी बनाई जाती
है। इसमें जो चीजें मिलाई जाती हैं वे हैं–गुड़, नमक, नीम
के फूल, इमली और कच्चा आम। गुड़ मिठास के लिए, नीम के फूल कड़वाहट
मिटाने के लिए और इमली व आम जीवन के खट्टे-मीठे स्वाद चखने का प्रतीक होती हैं।
यूँ तो आजकल आम बाजार में मौसम से पहले ही आ जाता है, किन्तु आंध्र
प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र में इसी दिन से खाया जाता है। नौ दिन तक मनाया
जाने वाला यह त्यौहार दुर्गापूजा के साथ-साथ, रामनवमी को राम
और सीता के विवाह के साथ सम्पन्न होता है।
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