ऐसी ही कूटनीति आज भी चल रही है देश में
                      भारत में आनेवाले लगभग सभी विदेशी जानते थे कि भारत धन व ज्ञान का सागर है और इस पर शासन करना है तो इसके आधारस्तम्भों को नष्ट करना जरूरी है । अंग्रेजों ने इसी नीति के अंतर्गत ऋषि-परम्परा पर आधारित गुरुकुल शिक्षा-व्यवस्था और गोवंश पर आधारित कृषि-व्यवस्था को योजनाबद्ध तरीके से नष्ट किया ।
                       गुरुकुल शिक्षा-पद्धति व्यावहारिक कुशलता के साथ-साथ आत्मिक उन्नति प्रदान करती है । गुरुकुलों में महापुरुषों के श्रेष्ठ मार्गदर्शन के कारण देश को चरित्रवान, उद्यमी, साहसी, संस्कृतिरक्षक, राष्ट्रप्रेमी, मातृ-पितृ-गुरुभक्त नागरिक प्राप्त होते थे । अपने देश व संस्कृति के लिए वे जान की बाजी तक लगाने को हरदम तैयार रहते थे । अतः अंग्रेजी शिक्षा द्वारा देश की रीढ को कमजोर करने की कूटनीति अपनायी गयी ।
                     अंग्रेजी शिक्षा के प्रभाव के बारे में मैकाले ने अपने पिता को एक पत्र लिखकर बताया था कि कोई भी हिन्दू, जिसने अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त कर ली है, वह कभी भी निष्ठापूर्वक अपने धर्म पर आस्था नहीं रख सकता । कुछ औपचारिकता के रूप में उससे जुड़े रहते हैं और कुछ ईसाईयत अपना लेते हैं ।
                     ‘ईस्ट इंडिया कम्पनीके एक चेयरमैन चाल्र्स ग्रांट का मानना था कि जहाँ कहीं भी हमारी (अंग्रेजी) भाषा और मंतव्यों का प्रवेश हो जाता है, वहाँ हमारे व्यापार में वृद्धि हो जाना स्वाभाविक है ।इस प्रकार अंग्रेजों ने धर्मांतरण व अंग्रेजी शिक्षा के द्वारा नागरिकों को मानसिक रूप से गुलाम बनाना प्रारम्भ किया ।
                    ब्रिटिश शासन के पूर्व भारतीय कृषि की समृद्धि के अनेक साक्ष्य यूरोपीय यात्रियों के भारतयात्रा-वृत्तांतों में मिलते हैं । लेकिन अंग्रेजों ने भारतीय कृषि को अवैज्ञानिक और अविकसित बताकर रासायनिक उर्वरकों को बढावा देना, जमीन बंजर करनेवाली फसलें उगवाना, कत्लखाने खुलवाना - ऐसे विभिन्न हथकंडे अपनाये, जिससे भारत की कृषि-व्यवस्था, गोवंश, स्वदेशी उद्योग-तंत्र बरबाद हो जाय और उनके व्यापार को बढावा मिले । अंग्रेजों ने कत्लखानों को बढावा देकर हिन्दुओं-मुसलमानों के बीच की खाई को और भी गहरी बनाने की कूटनीति की । इस प्रकार धार्मिक भावनाओं को भडकाकर एक-दूसरे के प्रति नफरत का वातावरण तैयार किया गया ।
                       अंग्रेजों जैसी ही राष्ट्र-विखंडनकारी ताकतों द्वारा वर्तमान में भी भारतीय संस्कृति को नष्ट करने की कूटनीति के तहत संस्कृति के आधारस्तम्भ संत-महापुरुषों, देवी-देवताओं के प्रति आस्था को तोड़ने की साजिशें की जा रही हैं । हमारे रीति-रिवाजों, पारिवारिक व्यवस्था, पर्व-त्यौहारों के प्रति हीन भावना पैदा करके, युवा पीढ़ी को चरित्रभ्रष्ट करके देश की एकता व अस्मिता को नष्ट करने तथा पुनः गुलामी की ओर धकेलने का दुष्प्रयास किया जा रहा है । अतः हर भारतीय वर्तमान परिस्थितियों पर गम्भीरतापूर्वक विचार करे । वास्तविकता को समझकर स्वयं तो सावधान रहे व अपने सम्पर्क में आनेवालों को भी सावधान करे ।

-    लोक कल्याण सेतु