कैसे मनाये नूतन वर्ष ? (भारतीय चैत्री नूतनवर्ष)

१ - मस्तक पर तिलक कर के भारतीय नववर्ष का स्वागत करें ।
२ - सूर्योदय के समय भगवान सूर्यनारायण को अर्घ्य देकर भारतीय नववर्ष का स्वागत करें ।
३ - सुबह सूर्योदय के समय शंखध्वनि करके भारतीय नववर्ष का स्वागत करें ।
४ - भारतीय नूतनवर्ष के प्रथम दिन चर्मरोगों से बचने के लिए तिल का तेल लगाकर स्नान करें और दूसरों की भी प्रोत्साहित करें ।
५ - भारतीय नूतनवर्ष के प्रथम दिन ऋतु संबंधित रोगों से बचने के लिए नीम, कालिमिर्च, मिश्री या नमक से युक्त चटनी बनाकर खुद खाये और और दूसरों को खिलायें ।
६ - मठ-मंदिरों, आश्रमों आदि धार्मिक स्थलों पर, घर, गाँव, स्कूल, कलेज, सोसयटी, अपने दुकान, कार्यालयों तथा शहर के मुख्य प्रवेश द्वारों पर बंदनवार या तोरण (अशोक, आम, पीपल, नीम आदि का) बाँध के भारतीय नववर्ष का स्वागत करें । इससे ऋतु परिवर्तन संबंधित रोगों से बचाव होता है ।
७ - मठ-मंदिरों, आश्रमों आदि धार्मिक स्थलों पर, घर, गाँव, स्कूल, कलेज, सोसयटी, अपने दुकान, कार्यालयों तथा शहर के मुख्य प्रवेश द्वारों पर भगवा ध्वजा फेराकर भारतीय नववर्ष का स्वागत करें ।
८ - भारतीय नूतन वर्ष के दिन सामूहिक भजन-संकीर्तन व प्रभातफेरी का आयोजन करें ।
                     भारतीयों के लिए चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का दिन अत्यंत शुभ होता है । इस दिन भगवान ब्रह्माजी द्वारा सृष्टि की रचना हुई तथा युगों में प्रथम सत्ययुग का प्रारम्भ हुआ । मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम एवं धर्मराज युधिष्ठिर का राजतिलक दिवस, मत्स्यावतार दिवस, वरुणावतार संत झुलेलालजी का अवतरण दिवस, सिक्खों के द्वितीय गुरु अंगददेवजी का जन्मदिवस, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार का जन्मदिवस, चैत्री नवरात्र प्रारम्भ आदि पर्वोत्सव एवं जयंतियाँ वर्ष-प्रतिपदा से जुडकर और अधिक महान बन गयीं ।
              इस दिन गुडी पडवा भी मनाया जाता है, जिसमें गुडी (बाँस की ध्वजा) खडी करके उस पर वस्त्र, ताम्र- कलश, नीम की पत्तेदार टहनियाँ तथा शर्करा से बने हार चढाये जाते हैं। गुडी उतारने के बाद उस शर्करा के साथ नीम की पत्तियों का भी प्रसाद के रूप में सेवन किया जाता है, जो जीवन में (विशेषकर वसंत ऋतु में) मधुर रस के साथ कडवे रस की भी आवश्यकता को दर्शाता है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से प्रकृति सर्वत्र माधुर्य बिखेरने लगती है। भारतीय संस्कृति का यह नूतन वर्ष जीवन में नया उत्साह, नयी चेतना व नया आह्लाद जगाता है। वसंत ऋतु का आगमन होने के साथ वातावरण समशीतोष्ण बन जाता है। सुप्तावस्था में पडे जड-चेतन तत्त्व गतिमान हो जाते हैं । नदियों में स्वच्छ जल का संचार हो जाता है। आकाश नीले रंग की गहराइयों में चमकने लगता है। सूर्य-रश्मियों की प्रखरता से खडी फसलें परिपक्व होने लगती हैं । किसान नववर्ष एवं नयी फसल के स्वागत में जुट जाते हैं। पेड-पौधे नव पल्लव एवं रंग-बिरंगे फूलों के साथ लहराने लगते हैं। बौराये आम और कटहल नूतन संवत्सर के स्वागत में अपनी सुगन्ध बिखेरने लगते हैं । सुगन्धित वायु के झकोरों से सारा वातावरण सुरभित हो उठता है । कोयल कूकने लगती हैं । चिडिंयाँ चहचहाने लगती हैं । इस सुहावने मौसम में कृषिक्षेत्र सुंदर, स्वर्णिम खेती से लहलहा उठता है । इस प्रकार नूतन वर्ष का प्रारम्भ आनंद-उल्लासमय हो इस हेतु प्रकृति माता सुंदर भूमिका बना देती है । इस बाह्य चैतन्यमय प्राकृतिक वातावरण का लाभ लेकर व्यक्तिगत व सामाजिक जीवन में भी उपवास द्वारा शारीरिक स्वास्थ्य-लाभ के साथ-साथ जागरण, नृत्य-कीर्तन आदि द्वारा भावनात्मक एवं आध्यात्मिक जागृति लाने हेतु नूतन वर्ष के प्रथम दिन से ही माँ आद्यशक्ति की उपासना का नवरात्रि महोत्सव शुरू हो जाता है ।

                   नूतन वर्ष प्रारंभ की पावन वेला में हम सब एक-दूसरे को सत्संकल्प द्वारा पोषित करें कि सूर्य का तेज, चंद्रमा का अमृत, माँ शारदा का ज्ञान, भगवान शिवजी की तपोनिष्ठा, माँ अम्बा का शत्रुदमन-सामथ्र्य व वात्सल्य, दधीचि ऋषि का त्याग, भगवान नारायण की समता, भगवान श्रीरामचंद्रजी की कर्तव्यनिष्ठा व मर्यादा, भगवान श्रीकृष्ण की नीति व योग, हनुमानजी का निःस्वार्थ सेवाभाव, नानकजी की भगवन्नाम-निष्ठा, पितामह भीष्म एवं महाराणा प्रताप की प्रतिज्ञा, गौमाता की सेवा तथा ब्रह्मज्ञानी सद्गुरु का सत्संग-सान्निध्य व कृपावर्षा - यह सब आपको सुलभ हो । इस शुभ संकल्प द्वारा परस्परं भावयन्तु की सद्भावना दृढ होगी और इसीसे पारिवारिक व सामाजिक जीवन में रामराज्य का अवतरण हो सकेगा, इस बात की ओर संकेत करता है यह राम राज्याभिषेक दिवस। अपनी गरिमामयी संस्कृति की रक्षा हेतु अपने मित्रों-संबंधियों को इस पावन अवसर की स्मृति दिलाने के लिए बधाई-पत्र लिखें, दूरभाष करते समय उपरोक्त सत्संकल्प दोहरायें, सामूहिक भजन-संकीर्तन व प्रभातफेरी का आयोजन करें, मंदिरों आदि में शंखध्वनि करके नववर्ष का स्वागत करें । (ऋषि प्रसाद : मार्च २००७) ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ