भगवान श्री कृष्ण जब बांसुरी बजाते थे तो गाय ज्यादा दूध देती
थी । संगीत का प्रकृति के साथ घनिष्ठ संबंध रहा है । संगीत के सात स्वरों की
उत्पत्ति भी प्रकृति से हुई है । ‘सा’ की उत्पत्ति ‘मोर’ के स्वर से, ‘रे’ की उत्पत्ति ‘ऋषभ’ जैसे बैल, गाय आदि । ‘‘ग’ की उत्पत्ति अज यानि भेड़, बकरी, ‘म’ क्रौंच पक्षी का स्वर है । ‘प’ की उत्पत्ति ‘कोयल’ से हुई है । कहा भी जाता है कि पंचम स्वर में कोयल बोले । ‘ध’ धैवत है यानि घोड़ा और ‘नि’ की उत्पत्ति ‘हाथी’ के स्वर से हुई है ।
उल्लेखनीय है कि पक्षी, जीव-जन्तु केवल एक ही स्वर में बोल सकते हैं जबकि मनुष्य सारे
स्वरों में गा सकता है । भारतीय शास्त्रीय संगीत के महत्व का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि अकबर के दरबार में नवरत्नों
में शामिल तानसेन राग ‘मल्हार’ गाकर वर्षा ला देते थे और राग ‘दीपक’ गाकर दीप जला देते थे ।
रागों के स्वर का प्रकृति पर विशेष प्रभाव पड़ता है । हाल ही में मध्यप्रदेश के वन
विभाग में एक शोध हुआ जिसमें वृक्ष प्रजातियों को मशहूर सितार वादक रविशंकर की राग
‘भैरवी’ में निबद्ध रचना सुनाई
गई । राग से आंवला और सीताफल सरीखी फल प्रजातियों के बीजों में अंकुर फूटने की दर
में ९ प्रतिशत की बढोत्तरी हुई । रागों से पशुओं के कठोर व्यवहार पर भी नियंत्रण पाया जा सकता है ।
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