आत्मा का आस्तित्व होता है या नहीं और मरने के बाद आत्मा कहाँ जाती है, जिसके अलग अलग धर्मों के अनुसार अलग अलग मत हैं। लेकिन सनातन धर्म के अनुसार आत्मा अपने शरीर रूप में अच्छे धर्म, कर्म से मोक्ष को प्राप्त करती है, और जो आत्माएँ मोक्ष प्राप्त नहीं करतीं वो हमारे भौतिक संसार में हमारे ही साथ भूत बनकर या पितृ ( प्रेत) बनकर रहतीं हैं।
सनातन धर्म के अनुसार
ब्रह्माण्ड की समस्त योनियों में मानव योनि ही एकमात्र ऐसी योनि है जो आत्मा को
मोक्ष प्राप्त कर सकती है और सांसारिक जीवन के जन्म और मृत्यु के कालचक्र से हमेशा
के लिए मुक्ति पा सकती है, लेकिन जो मोक्ष प्राप्त नहीं
करतीं वो हमारे संसार में हमारे ही साथ भूत या पितृ बनकर रहती हैं।
मैंने बताया था कि
मेरे भाई पर भूत प्रेत आत्माओं का साया था, और हम उसे बीमारी
समझ कर हॉस्पिटलों में ही दिखाते रहे लेकिन लगभग एक वर्ष बाद हमें पता चला कि वह
आत्माओं की वश में हैं।
जब रात में ही मेरा
परिवार उस भयानक भूत से बचने के लिए महलगांव वाले हनुमान जी के मंदिर पहुँचा तो
साधु बाबा ने हम सभी को हनुमान जी की मूर्ति के सामने बैठाकर हमसे हवन कराया और हम
सभी को लाल ताबीज़ बाँधते हुए निर्देश दिया कि जबतक मैं ना कहूँ तब तक ये ताबीज़
अपने शरीर से दूर नही करना है।
सारी रात हम सभी
उस मंदिर में ही रहे, अब सुबह साधु बाबा हमारे साथ हमारे घर
आए तथा उन्होंने हनुमान जी के मन्त्र पढ़ते हुए घर के दरवाज़े पर नारियल बांध दिया।
साधुबाबा हमें विश्वास दिलाकर गए कि हमारे परिवार में अब किसी को कोई दिक्कत नहीं
होगी। और वो मेरे भाई को निर्देश देकर गए कि वह हर रोज मंदिर जाकर हनुमान जी की
मूर्ति के सामने हनुमान चालीसा और हनुमान अष्टक पढ़ें। और हर मंगलवार और शनिवार को
हनुमान जी को चोला चढ़ाएं।
अब मैं और मेरा
भाई दोनों मंदिर जाकर हनुमान चालीसा और हनुमान अष्टक पढ़ते थे, अब मेरे परिवार में शांति थी।
लेकिन एक
महीने बाद अचानक मेरे भाई की फिर तबियत ख़राब हो जाती है, और
वह फिर तेज तेज चीखने लगता है और कहता है कि कोई है जो उसकी गर्दन पर बैठा है जो
उसकी गर्दन तोड़ रहा है अब हमारे फिर से देहशत के दिन शुरू हो गए अब वह मंदिर में
भी हनुमान चालीसा पढ़ते हुए चीखता रहता था।
फिर साधु
बाबा को बुलाया गया लेकिन अब मेरे भाई की हालात बहुत ख़राब होती जा रही थी अब कोई
भी दवा और कोई भी शक्ति उस पर काम नहीं कर रही थी, अब मेरा
भाई पूरी रात चीखता रहता था।
उसकी ऐसी हालात
देखकर ' मेरे पड़ोसियों और रिश्तेदारों ने हमें अनदेखी करना शुरू कर दिया, अब कोई भी पड़ोसी और रिश्तेदार हमारे घर नहीं आता था, उनका मानना था कि कहीं मेरे भाई वाला भूत उनको या उनके बच्चों को ना पकड़
ले। अब कॉलोनी के बच्चों ने हमारे साथ पढ़ना, खेलना सब बन्द
कर दिया।
मुझे आज भी याद है
जब मेरा भाई 10th में था और पूरी वर्ष में मात्र एक दिन
स्कूल गया था, वो अपनी क्लास में बैठा हुआ था कि अचानक उसे
अपने टीचर में वो भूत दिखायी देने लगा जो उसे रोज दिखायी देता था फिर भी उसने अपने
आप पर बहुत कण्ट्रोल किया कि वो क्लास में चीखे ना, उसने
अपनी टाई और रुमाल अपने मुंह के अंदर डालकर दोनों हाथों से अपना मुँह बन्द किया
फिर भी उसकी चीख रुकी नहीं और वो तेज तेज चीखने लगा, मैं
थर्ड फ़्लोर पर अपनी क्लास में बैठा हुआ था कि मुझे बहुत तेज चीख की आवाज़ सुनाई दी।
मैं भागते हुए
उसकी क्लास में पहुँचा लेकिन तब तक वो बेहोश हो चुका था। तुरन्त ही स्कूल स्टाफ़ ने
मेरे पेरेंट्स को बुलाया और मेरे पेरेंट्स को कहा कि इसे नेक्स्ट टाइम स्कूल ना
भेजें, सारी क्लास में डर का माहौल बन गया है बच्चे डर गयें
हैं इससे।
प्रिंसिपल ने
मेरे पिताजी को कहा कि आप अपने लड़के को घर पर ही पढाएं केवल फाइनल एग्जाम के लिए
इसे भेजें। उन दिनों मेरा भाई बहुत परेशान हो चुका था क्योंकि उससे मेरे परिवार के
सिवा कोई भी बात नहीं करता था अब ना ही उसका कोई दोस्त था।
कोई भी मेरे
पिताजी को एडवाइस करता कि आप अपने लड़के को फलां फलां मंदिर ले जाओ तो मेरे पिताजी
भैया को लेकर उस मंदिर पहुँच जाते थे। अब उन दो वर्षों में मेरा परिवार उज्जैन के
महाकालेश्वर, तिरुपति बालाजी, शिरडी के
साईं बाबा के मंदिर, राजस्थान के मेहंदीपुर बालाजी, और वैष्णो देवी, तक घूम चुके थे सिर्फ़ एक ही उम्मीद
में की शायद वो ठीक हो जाये। लेकिन हम हर जगह से ख़ाली हाथ आये हम सिर्फ़ नाक़ाम रहे
अब तक मेरे भाई की हालात बहुत ज्यादा ख़राब हो चुकी थी उसे फिर हॉस्पिटल में एडमिट
कराया गया लेकिन समस्या तो मेडिकल की थी ही नहीं जो दवाओं से ठीक होती।
लेकिन एक घटना
ने हमें बहुत आश्चर्य में डाल दिया आखिर ये भूत हमसे चाहता क्या है, जो शख्स दिन रात परेशान रहता था वो एग्जाम के कुछ दिनों पहले ही अचानक सही
हो गया, अब मेरा भाई पूर्णतः स्वस्थ था और मेरे परिवार को
ख़ुशी थी कि अब भूत का चक्कर समाप्त हो गया।
दो या तीन महीनों
तक वो स्वस्थ रहा लेकिन फिर वह उन्ही हालातों में पहुँच गया फिर वह रात में चीखने
लगा और फिर वही कहने लगा कि उसकी गर्दन कोई तोड़ रहा है।
अभी तक वह उस भूत
के चँगुल से छूटा नहीं था अब मेरा परिवार हर मंदिर के द्वार खटखटाने लगा कि कोई तो
इस लड़के को सही कर दो, लेकिन हर जगह नाकामी ही मिली। उन्ही
दिनों हमारे ग्वालियर में एक 11000 हवनकुंड का महायज्ञ हुआ
जिसमें दूर दूर के साधु संत आने लगे। हम भी उस यज्ञ में साधुओं से मिलने जाने लगे
सिर्फ़ एक ही उम्मीद पर की शायद कोई संत महात्मा इस लड़के को सही कर दे।
तब एक साधु ने मेरे
पिताजी को बताया कि यहाँ कुछ अघोरी बाबा आये हुए हैं जो आपके लड़के को सही कर सकते
हैं लेकिन वो सिर्फ़ रात में मिलते हैं श्मशान घाट पर, आप
चाहो तो उन अघोरियों से मिल लो। उसी रात को मेरे पिताजी, मेरा
भाई और मैं श्मशान घाट गए उन अघोरियों से मिलने के लिए, श्मशान
घाट पर एक अघोरी बाबा मिले जिनको मेरे पिताजी ने सारा वृतांत बताया।
फिर उस
अघोरी ने मेरे भाई को एक अध जली लाश के पास खड़ा कर दिया और एक छोटी सी पुस्तक देकर
कहा कि इसे रोज़ रात को 12 बजे के बाद श्मशान घाट में आकर पढ़ा
कर, शंभू सबकुछ सही कर देंगे।
लेकिन उस पुस्तक
के नियमानुसार उस पुस्तक को केवल किसी जलती हुई लाश के सामने ही पढ़ना है, और मेरे पिताजी को अघोरी ने कहा कि इस लड़के को पकड़ने के लिए किसी और भाई
को इसके साथ भेजो जो इसे पकड़ के रखेगा और हाँ वो लड़का भी शादीशुदा नहीं होना चाहिए।
अब मेरा
नम्बर लग चुका था मेरे भाई के साथ रोज़ रात को 12 बजे श्मशान
में आकर अपने भाई को पकड़ कर रखूँ जब वो उस पुस्तक को पढ़े।
मेरे पिताजी
श्मशान घाट के बहार हम दोनों का प्रतीक्षा करते रहते थे और हम दोनों आधे घण्टे में
उस पुस्तक को पढ़कर भाग आते थे, मैं बहुत डरा हुआ था क्योंकि
वहाँ ऊल्लुओं की और चमगादड़ो की बहुत ही ख़तरनाक आवाजें आती थी, पहले दिन तो सब सही रहा लेकिन दूसरे दिन वो पुस्तक पढ़ते समय तेज तेज चीखने
लगा अब श्मशान घाट में बहुत शोर हो गया क्योंकि अब सारे उल्लू और चमगादड़ शोर करने
लगे।
बहुत ही
मुश्किल से वो सात दिन हमने निकाले लेकिन मेरा भाई अभी भी सही नहीं हुआ। हम अभी भी
लाचार थे, क्योंकि वो भूत अभी भी हमारे साथ था और निरंतर
मेरे भाई को पागल करता जा रहा था।
फिर कुछ
दिनों बाद नवदुर्गा के समय हमारी पड़ोस वाली आंटी मेरे परिवार को काली माता के
मंदिर ले गई, जहाँ हर शुक्रवार और दोनों नवदुर्गाओं में सारी
रात जागरण होता था।
उस दिन
नवदुर्गा का प्रथम दिन था वहाँ बहुत भीड़ थी लगभग दो हजार लोग थे, मेरा पूरा परिवार शाम को ही मंदिर पहुँच गया, वह
दिखने में बहुत ही छोटा मंदिर था लेकिन शक्ति में वो शक्तिपीठों से भी बड़ा शक्ति
पीठ था। उस मंदिर को वहाँ के लोग भूतों का हॉस्पिटल भी कहते थे, लोगों का कहना था कि इस मंदिर से आजतक कोई भी शख्स खाली हाथ नहीं गया है
और भूतों का तो यहाँ परमानेंट ट्रीटमेंट होता है।
एक अंकल ने
मेरे पिताजी को समझाया कि आप अब सही जगह आ गए हो आपका बेटा शत प्रतिशत सही हो
जायेगा।
रात में आरती
होकर जागरण शुरू हुआ सभी लोग माता के भजन गा रहे थे, रात 11
बजे मंदिर के गुरूजी आते हैं तथा बेला (कांसे का थालीनुमा
वाद्ययंत्र) बजाने लगते हैं और बेला की ध्वनि सुनकर वहाँ वो लोग जिसके ऊपर उन
नेचुरल फोर्सेज का इफ़ेक्ट है झूमने लगते हैं तभी मेरी नज़र मेरे भाई पर जाती है वो
भी उस ध्वनि में झूम रहा था अब उस पर वो भूत आ चुका था जो उसे परेशान करता था।
अब जैसे ही
मैंने उसे पकड़ने की कोशिश की तभी मुझे सेवा संवादियों ने रोक दिया और कहा की वो
कहीं नही जायेगा अब वो सही होकर रहेगा। फिर कुछ ही समय में ऐसे दृश्य मेरे सामने
होने लगे जिनकी मैंने कभी कल्पना भी नही की थी, मुझे ऐसा
लगने लगा जैसे वो मंदिर एक अलग दुनिया है जहाँ हम विज्ञान से बहुत दूर हैं।
अब मेरी आँखों
के सामने उस मंदिर में कई महिला और पुरुष बेसुध होकर नाच रहे थे वे सभी वो लोग थे
जिनपर भूतों का प्रकोप था। उन्ही लोगों में मेरा भाई भी नाच रहा था उन नाचने वालों
में सबकी आँखे बन्द थी तेज तेज चीखते हुए नाच रहे थे उन लोगों के हाथों का मूवमेंट
कैच करना भी मुश्किल था। वो नाच कम से कम आधे घंटे तक चला होगा, अब जैसे ही गुरूजी ने बेला बजाना बन्द किया वो सारे नाचने वाले धरती पर
गिर पड़े। मेरा भाई भी उनमें से एक था। और मैं उस घटना का प्रत्यक्षदर्शी हूँ ये
सारी घटनाएँ मेरी आँखों के सामने हुई थी लेकिन मुझे आज भी विश्वास नहीं होता कि ये
कैसे संभव है।
अब गुरूजी और हम सभी भजन गा रहे
थे कि तब तक मेरे भाई को भी होश आ गया, मैंने अपने भाई से
पूछा आपको पता है आप क्या कर रहे थे? वो बोला मुझे कुछ नही
पता कि मैंने क्या किया। मैंने उसे बताया कि तुम यहाँ सबके सामने हाथ घुमाघुमाकर
डांस कर रहे थे, तुम्हे पता है सभी लोग तुम्हें ही देख रहे
थे।
सारी रात गुरूजी
माता के भजन गाते रहे और सुबह चार बजे के लगभग गुरूजी पर काली माता की सवारी आयी (
यह दृश्य मैंने अपनी आँखों से देखा है इसलिए मुझे विश्वास है, आप चाहो तो विश्वास ना करो)।
सभी भक्तगणों की
लाइन लगाई गयी और सभी ने अपने अपने नम्बर पर जाकर गुरूजी को अपनी परेशानी बतायी
हमने भी अपनी परेशानी बतायी तो " गुरूजी ने हमसे कहा कि तुम लोगों के दुःख के
दिन आज समाप्त हो चुके हैं, बस जागरण करते रहो।
तुम सभी बहुत
भाग्यशाली हो जो तुम्हारे ऊपर कष्ट आया और तुम माँ काली कलकत्ते वाली की शरण में
आये, चिंतामुक्त होकर घर जाओ आज से ये समस्या समाप्त हुई और
तुम्हारा लड़का ही तुम्हें बताएगा कि उस के ऊपर कौन था कौन उसे परेशान
करता था।
उस मंदिर में
जाकर मुझे पता चला कि मेरा भाई ही नहीं भारत में बहुत से लोग हैं जो भूतों के
चंगुल में हैं उनके परिवार भी इसी तरह से परेशान थे जैसे मेरा परिवार परेशान था।
हम लोग सुबह
मंदिर से वापस आ गए लेकिन हमारे मन में वो शंका अभी भी थी आखिर वो कौन है जो हमें
परेशान कर रहा है। अब हम लोग दिन में ही मंदिर पहुँच गए क्योंकि रात में बहुत भीड़
रहती थी इसलिए गुरूजी से अकेले में बात करने का मौका नहीं था। मंदिर में पहुंचकर
हमने गुरूजी से मुलाकात की और सारी कहानी सुना दी।
"अब गुरूजी हमारी बात सुनकर हमसे हँसते हुए पूछते है कि क्या सच में तुम्हें पता नहीं चला कि कौन है जो तुम्हारे बेटे को परेशान कर रहा है। उसने एक बार नहीं कई बार तुम्हें चेताने की कोशिश की, फिर भी तुम नहीं समझ पाये आखिर कौन है वो, उसने तुम्हारे बेटे को एग्जाम के समय सही कर दिया जिसके बाद तुम्हारा बेटा पूरे स्कूल में फर्स्ट आया वो भी एक दिन भी स्कूल ना जाकर और ना ही कोई ट्यूशन लगाकर, तुम्हे पता है कौन था वो जो तुम्हारे लड़के को पढ़ा रहा था, अगर तुम्हें सच्चाई जाननी है तो पूछो अपने बेटे से वो ही बताएगा।।
तब गुरूजी ने मेरे
भाई को बोला कि माँ काली के सामने जाकर लेट जा, अब जैसे ही
मेरा भाई लेटा वैसे ही वो भूत उस पर आ गया, अब गुरूजी ने
मेरे पिताजी को कहा कि अपने लड़के को खड़ा होने के लिए बोलो।
पिताजी ने
भैया को कहा कि खड़े हो जाओ, लेकिन अब भैया खड़े नहीं हो पा
रहे थे, उन्होंने अपनी पूरी ताकत
लगा दी खड़े होने में लेकिन अब वो खड़े नहीं हो पाये, तब
गुरूजी ने कहा इन्हें सच्चाई बताओ तभी खड़े हो सकते हो।
अब मेरा भाई
बहुत तेज रोने लगा और रोते हुए मेरे पिताजी से कहा " तुम लोग हमें 40 वर्ष पहले छोड़ आये हम सब तुम्हारे आने का प्रतीक्षा कर रहे थे कि तुम लोग
आओगे हमें भी अपने साथ ले जाओगे, लेकिन तुम कभी लौटकर नहीं
आये, तुम्हें हमारी याद नहीं आयी। तुमने घर में तीन तीन
शादियाँ कर ली लेकिन किसी भी एक में नहीं बुलाया हमें। तुम गाँव के खेत बेचकर शहर
चले आये और शहर आकर तुमने हमें एक बूँद पानी भी नही दिया और ना ही कभी एक दीपक
जलाया हमारे लिए।
तुम इतने
निष्ठुर कैसे हो गए तुम्हें अपने परिवार के पितरों की कभी याद नहीं आयी। इन 40
वर्षों से हम यही प्रतीक्षा कर रहे थे कि शायद तुम आओगे हमें लेने
के लिए और तुमने भाद्रपद में भी कभी पितृ तर्पण नहीं किया। हम तुम्हारे पितृ हैं
तुम्हारे बाबा के बड़े भाई हीरामणि और शंकरमणि।
हमने 40
वर्ष तक तुम्हारा प्रतीक्षा किया हम कभी नहीं चाहते थे कि तुम्हें
परेशान करें लेकिन क्या तुम्हें पता है तुम जो खेत बेचकर आये थे उस जगह अब जानवर
काटे जातें हैं, तुम सोच भी नहीं सकते कि हम कितनी यातनाओं
से रहे हैं वहाँ, वो चबूतरा भी फूट चूका है अब, एक बार गाँव आओ और हमें भी लेकर चलो अपने साथ।
इतना कहते हुए मेरा भाई बहुत दुःखी होकर रो रहा था, अब मेरा परिवार भी उसके साथ रो रहा
था कि हमने अपने पितरों को कभी कुछ समझा ही नहीं, शहर के
वातावरण में हम इतने नास्तिक हो गए कि हमने अपने पित्तरों के अस्तित्व को ही समाप्त
कर दिया।
तभी गुरूजी ने कहा दीवाली की चतुर्दशी को अपने
पित्तरों को गंगा जी नहलाकर आओ और अपने घर में उनकी स्थापना करो, उनके लिए एक अलग पूजा की अलमारी बनाओ।
अब गुरूजी की आज्ञा अनुसार हम सब गाँव गए और उस चबूतरे को ढूंढकर वहाँ से नारियल पर अपने पितरों को लेकर गंगा जी गए फिर अपने घर में स्थापना करायी।
अब गुरूजी की आज्ञा अनुसार हम सब गाँव गए और उस चबूतरे को ढूंढकर वहाँ से नारियल पर अपने पितरों को लेकर गंगा जी गए फिर अपने घर में स्थापना करायी।
ये सारा वृतांत ऐसा सत्य है जो शायद कोई भी नहीं
मानेगा, लेकिन
मैंने अपने जीवन में 5 वर्ष तक ये दृष्य देखें हैं।
एकदिन मैंने अपने बाबा जी से उनके बारे में पूछा तब
मुझे वो सच्चाई पता चली जो मेरा सर सम्मान से ऊँचा कर देता है- वो भूत जो मेरे भाई
को परेशान कर रहे थे वो मेरे पितृ थे और वो अपने युग क़े क्रन्तिकारी थे, उन दोनों भाइयों को अंग्रेज़ो ने गाँव
में ही फ़ाँसी पर लटका दिया था, मेरे बाबा के पिताजी उन
भाइयों में सबसे छोटे थे, वो अपने मामा के साथ रहने लगे,
इस तरह हमारा परिवार गाँव से दूर होता गया।
उस घटना के बाद मुझे पता चला कि मेरे शरीर में उन
क्रान्तिकारियों का खून हैं, जिन्हें
अंग्रेज़ो ने फ़ाँसी पर लटका दिया।
मित्रों याद रखो की मरने के बाद कुछ आत्माएँ कहीं नही जाती वो हमारे ही बीच रहती हैं, वो हमेशा अपने होने का आभास करवाती
हैं लेकिन हम उन्हें कभी अनुभव नहीं करते, वो भी हमारे लिए
उतनी ही तड़पती हैं जितने कि हमारे माता पिता।
आज हम
टेक्नोलॉजी और साइंस में बहुत आगे जा चुके हैं लेकिन फिर भी हम अपने पितरों की
आत्माओं के अस्तित्व को नकार नहीं सकते।
एक बात और याद रखो चाणक्य ने कहा कि "हमें
दूसरों की गलतियों से सीख लेना चाहिए, अगर हम केवल अपनी गलतियों से सीखें तो ये जिंदगी बहुत छोटी है"
इसलिए आप सब को बोल रहा हूँ आप मेरी गलती से सीखों आप
ऐसी गलती ना दोहराना ' हमने अपने
पितरों को पाने के लिए बहुत कुछ खोया है, और पितृ को ना पूजना
हमारा पारवारिक मामला हो जाता है और पारवारिक मामलों में भगवान भी सिर्फ़ सत्य का
साथ देते हैं और सत्य यही है कि आपको अपने पितरों का बहुत करना ही होगा, पितृ अनमोल हैं उन्हें संभालकर रखो।
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
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