हजार
हाथियों को मारनेवाले योद्धा से बलशाली।
श्री
रमण महर्षि को तत्त्वराय की कथा बहुत प्रिय थी, जिसे वे अनेक
बार सुनाते थे : ‘तत्त्वराय नामक व्यक्ति ने अपने गुरु के सम्मान
में एक ‘भरणी’ लिखी और उसे
प्रस्तुत करने के लिए बड़े-बड़े पंडितों को आमंत्रित किया । पंडितों ने आपत्ति उठायी
कि ‘‘भरणी केवल उसी योद्धा के सम्मान में लिखी जाती है जिसने एक हजार
हाथियों का वध किया हो, किसी साधु के सम्मान में नहीं ।” विवाद
को सुलझाने के लिए जब सब तत्त्वराय के गुरुदेव के सम्मुख पहुँचे तो गुरु मौन
मुद्रा में बैठ गये । अन्य सब भी शांत होकर उनके बोलने की प्रतीक्षा में बैठ गये ।
काफी समय बीतने के बाद भी किसीके मन में कोई विचार नहीं उठा और सब शांति से बैठे
रहे ।
जब
गुरु अपनी समाधि से जगे तो पंडितों ने एक स्वर में कहा कि ‘‘मदमस्त
हाथियों जैसे चंचल, अहंकारपूर्ण हमारे मन को शांत करने की शक्ति के
सामने एक हजार हाथियों को मारना कुछ भी नहीं है ।” उन्होंने
तत्त्वराय से कहा कि वे अपने गुरु के सम्मान में लिखी भरणी सुनायें ।’
आत्मज्ञानी संतों के दर्शनमात्र से जो
मिलता है, वह तो जो ऐसा लाभ लेते हैं, वे
ही जानते हैं । कुप्रचारकों, निंदकों
की बातें सुनकर संतों के दर्शन एवं अमृतवचनों से जो वंचित रह जाते हैं, वे
क्या जानें इसका लाभ ?
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