पूज्य बापूजी बताते है : पाँच प्रकार के
स्नान होते हैं –
१.
ब्रह्म स्नान : ब्रह्म – परमात्मा का
चिंतन करके, “जल ब्रह्म, स्थल ब्रह्म, नहानेवाला
ब्रह्म...” ऐसा चिंतन करके
ब्राह्ममुहूर्त में नहाना,
इसे ब्रह्म स्नान
कहते हैं।
२.
ऋषि स्नान : ब्राह्ममुहूर्त में आकाश में तारे
दिखते हों और नहा लें, यह ऋषि स्नान है। इसे करनेवाले की
बुद्धि बड़ी तेजस्वी होती है।
३.
देव स्नान : देव – नदियों में नहाना
या देव – नदियों का स्मरण
करके सूर्योदय से पूर्व नहाना, यह देव स्नान हैं।
४.
मानव स्नान : सूर्योदय के थोड़े समय पूर्व का
स्नान मानव स्नान है।
५.
दानव स्नान : सूर्योदय के पश्चात चाय पीकर, नाश्ता करके ८ से
१२ – १ बजे के बीच
नहाना, यह दानव स्नान है।
हमेशा ब्रह्म
स्नान, ऋषि स्नान करने
का ही प्रयास करना चाहिए।
इनके अलावा
अन्य ७ प्रकार के स्नानों का भी उल्लेख शास्त्रों में है। उनकी
भी महत्ता बापूजी ने बतायी है :
१.
मंत्र स्नान : गुरुमंत्र जपते हुए अपने को
शुद्ध बना लिया।
२.
भौम स्नान : शरीर को पवित्र मिट्टी स्पर्श
कराके शुद्धि मान ली।
३.
अग्नि स्नान : मंत्र जपते हुए सारे शरीर को
भस्म लगा ली।
४.
वायव्य स्नान : गाय के चरणों की धूलि लगा ली। वह भी पवित्र बना
देती है। गाय के पैरों की
धूलि से ललाट पर तिलक करके काम - धंधे पर जाय तो सफलता मिलती है अथवा कोई काम अटका
है तो वह अटक – भटक निकल जाती है।
५.
दिव्य स्नान : सूरज निकला हो और बरसात हो रही
हो, उस समय सूर्य – किरणों में बरसात
की बूँदों से स्नान।
६.
वारुण स्नान : जल में डुबकी लगाकर नहाना इसको
वारुण स्नान बोलते हैं। घर में वारुण स्नान माने पानी से स्नान करना।
७.
मानसिक स्नान : ‘मैं आत्मा हूँ, चैतन्य हूँ, ॐ ॐ ॐ .... पंचभौतिक शरीर मैं नहीं हूँ। बदलनेवाले मन को
मैं जानता हूँ। बुद्धि के निर्णय
बदलते हैं, भाव भी बदलते हैं, ये सब बदलनेवाले
हैं, उनको जाननेवाला
मैं अबदल आत्मा हूँ। ॐ ॐ परमात्मने नम: ॐ ॐ ..’ इस प्रकार आत्मचिंतन करने को बोलते हैं मानसिक
स्नान।”
स्त्रोत – ऋषिप्रसाद – जनवरी २०१६ से
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