बुंदेलखंड में नयी चेतना का संचार करने वाले धर्मयोद्धा
                       भारत पर मुगल शासन के समय जामनगर (गुज.) में एक प्रसिद्ध संत हो गये जिनका नाम था प्राणनाथ। इनका सम्पूर्ण जीवन भक्ति और धर्म के रंग में रँगा था किंतु ये गुफा में बंद होकर तत्कालीन समाज की दुर्दशा की ओर से आँखें मूँद के ध्यान करने में विश्वास नहीं रखते थे। मुसलमानों का भीषण अत्याचार देख इनका दिल दहल उठा था। इन्होंने हिन्दू संगठन हेतु और मुसलिम अत्याचार के विरोध के लिए भारत-भ्रमण प्रारम्भ किया। इन्होंने देखा कि हिन्दुओं पर जो भी अत्याचार किये जा रहे हैं वे औरंगजेव के आदेश से किये जा रहे हैं। यदि औरंगजेब को समझा-बुझाकर इस मार्ग से हटाया जाय तो ये अत्याचार समाप्त हो सकते हैं। वे आगरा जाकर औरंगजेब से मिले और उसे समझाया परंतु उस क्रूर पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा।
                 प्राणनाथ जी देखा कि औरंगजेब ने किसी महत्त्वपूर्ण युद्ध में भाग लेकर विजय नहीं पायी। उसकी ओर से हिन्दू राजा और सरदार ही लड़-मर रहे हैं और उसके राज्य का विस्तार करते रहे हैं। अतः वे औरंगजेब के सहयोगी हिन्दू राजाओं से मिले और उन्हें समझाने का प्रयत्न किया।

                 बड़े-बड़े राज्यों व साधन-सम्पत्ति से सम्पन्न राजा-महाराजा औरंगजेब के खिलाफ खड़े होने की हिम्मत नहीं कर रहे थे पर प्राणनाथ जी का समाज में घूम-घूम के जन-जागृति करने का कार्य निरंतर जारी था। उन्होंने वीर छत्रसाल के पराक्रम के विषय में सुना कि वे बुंदेलखंड में हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए हिन्दुओं को संगठित कर रहे हैं। वे छत्रसाल से मिलने हेतु निकल पड़े।

                 उस समय छत्रसाल मुगलों से युद्ध कर रहे थे। प्राणनाथ जी ने मऊ (बुंदेलखंड) के पास जंगल में अपना आसन जमाया। एक दिन शाम को वे अपनी कुटिया के सामने बैठे सत्संग कर रहे थे। इतने में कंधे पर धनुष-बाण तथा कमर में तलवार टाँगे एक घुड़सवार आया। उपस्थित भक्तों ने युवक को तत्काल पहचान लिया। वे आश्चर्य से एक साथ बोल उठेः वीर छत्रसाल !

                 युवक ने प्राणनाथ जी को प्रणाम किया। महाराज ने छत्रसाल को पास बिठाया, कुशलक्षेम पूछा और उनका उत्साहवर्धन करते हुए कहाः आपके धर्म रक्षा के कार्य को सुनकर बड़ा संतोष हुआ है। आप इस कार्य को ईश्वर का आदेश मानकर करते जाइये।

                 छत्रसालः जो आज्ञा ! आप जैसे संत का आदेश पाकर मैं हिन्दू धर्म की रक्षा का कार्य दुगने चौगुने उत्साह से करूँगा। कभी-कभी चिंता यही होती है कि मुगलों के पास असंख्य सैनिक हैं, अपार धन है, विशाल साम्राज्य है जबकि मेरे पास बहुत कम साधन हैं। मैं इतने कम साधनों से कितने समय तक उनसे संघर्ष कर सकूँगा ?”

                  “वीर छत्रसाल ! संसार में सबसे बड़ा साधन दृढ़निश्चयी हृदय, पवित्र उद्देश्य और गुरु का आशीर्वाद है। ये तीनों जहाँ हों वहाँ अन्य साधनों के न होते हुए भी सफलता हाथ बाँधे खड़ी रहती है। रावण की सेना के विरुद्ध वानरों की सेना ने विजय पायी थी क्योंकि उसे राम जी का आशीर्वाद प्राप्त था। आपके पास ये तीनों दिव्य साधन हैं। फिर कैसी चिंता ?”

                  “हिन्दुओं में शूरवीरों की कमी नहीं है। यदि सब हिन्दू नरेश अपने धर्म की रक्षा हेतु जुट जायें तो मुगलों का अत्याचारी शासन शीघ्र ही धूल में मिल सकता है। किंतु कुछ राजा अपना स्वार्थ ही देखते हैं। उनमें से कई दुष्ट मुगलों का साथ दे रहे हैं।

                 प्राणनाथ जीः निराश न हों। आपने विशेष बाहरी साधनों के बिना ही बुंदेलखंड का अधिकांश भाग विधर्मी शासन से मुक्त किया है। इससे हिन्दू समाज में नयी आशा जगी है। आगे आपको और भी सफलता मिलेगी।

                 रात को छत्रसाल वहीं रूके। सुबह प्राणनाथ जी से बोलेः आपके आश्रम में बड़ी शांति मिली। खेद है कि अब मैं नित्य पूजादि नहीं कर पाता।

                 प्राणनाथजीः छत्रसाल ! तुम सनातन वैदिक हिन्दू धर्म एवं धर्मस्थानों, धर्मग्रंथों और समाज की रक्षा के लिए सतत संघर्ष कर रहे हो। वर्तमान में तुम्हारे लिए यही पूजा साधना है। भगवान श्री राम और श्रीकृष्ण ने भी धर्म रक्षा व अत्याचारियों के दमन हेतु अस्त्र-शस्त्र उठाये थे। तुम भी उनकी तरह कर्म को कर्मयोग बना लो।

                 छत्रसाल के मन पर प्राणनाथ जी की गहरी छाप पड़ी। उन्होंने मन-ही-मन उन्हें अपना गुरु स्वीकार कर लिया। छत्रसाल ने महसूस किया कि मेरे जीवन के एक बड़े अभाव की पूर्ति हो गयी।

                 एक दिन छत्रसाल ने गुरुचरणों में अपनी समस्या रखीः गुरुदेव ! एक छोटे से युद्ध में लाखों का खर्च हो जाता है। धन की कमी के कारण मैं बड़ी सेना नहीं रख पाता।

                 प्राणनाथ जीः वीरवर ! धर्मकार्य के मार्ग में जो बाधाएँ आयेंगी, वे सब दूर होंगी। आप पन्नानगर को अपनी राजधानी बनाइये।

                 छत्रसाल का मुखमंडल प्रसन्नता से चमक उठा। वे कृतज्ञता के भाव से बोलेः महाराज जी ! आपके आदेश का पालन होगा। मुझे सदैव आपका मार्गदर्शन प्राप्त होता रहे।

                 गुरु आज्ञा शिरोधार्य कर छत्रसाल पन्ना आये तो उन्हें वहाँ असंख्या बहूमूल्य हीरे मिले। गुरुकृपा से उनकी आर्थिक समस्या भी सुलझ गयी।

                 बुंदेलखंड वासियों में प्राणनाथ जी के प्रति बड़ी श्रद्धा थी। उन्होंने गाँव-गाँव घूमकर लोगों को समझाया कि छत्रसाल देश और धर्म की रक्षा के लिए मुगलों से संघर्ष कर रहे हैं। आप लोगों को उनका साथ देना चाहिए।हजारों लोग उनके आवाहन पर धर्मरक्षार्थ छत्रसाल की सेना में भर्ती हुए। प्राणनाथ जी कई बार छत्रसाल के साथ युद्धों में गये। उन्होंने सैनिकों का उत्साह बढ़ाया और उन्हें धर्मयुद्ध के लिए प्रेरित किया।

                 जैसे आचार्य चाणक्य व चन्द्रगुप्त मौर्य के मिलन से भारत में एक नवयुग आया था और समर्थ रामदास जी व छत्रपति शिवाजी महाराज के सम्मिलित प्रयास से महाराष्ट्र में हिन्दू स्वराज्य की स्थापना हुई थी, वैसे ही प्राणनाथ जी एवं वीर छत्रसाल के मिलन से बुंदेलखंड में नयी चेतना फैली।

                 वीर छत्रसाल जैसे बुद्धिमान आज भी संतों की शरण में जाकर अपना तो भला करते ही हैं, पूरे देश और समाज का भी मंगल कर लेते हैं। इतिहास साक्षी है कि जिन भी शासकों ने सदगुरुओं का मार्गदर्शन पाया, उनका राज्य समृद्ध व खुशहाल रहा तथा वे प्रजा के प्रिय हो गये और आज भी याद किये जाते हैं। जो विवेकी शासक संतों की आज्ञा में चले, जिन्होंने गुरुओं की कृपा पायी, उन्होंने ही अपना और अपनी सारी प्रजा का वास्तविक मंगल किया है। ऐसे गुरुभक्तों के लिए भगवान शिवजी कहते हैं-

धन्या माता पिता धन्यो गोत्र धन्यं कुलोद्भवः।
धन्या च वसुधा देवि यत्र स्याद् गुरुभक्तता।।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जून 2017, पृष्ठ संख्या 28,29 अंक 294


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