गुरु-तत्त्व की व्यापकता व समर्थता

                 योगिराज श्यामाचरण लाहिड़ी जी के शिष्य अविनाश बाबू रेलवे विभाग में नौकरी करते थे। अपने गुरुदेव के दर्शन, सत्संग-सान्निध्य हेतु उन्होंने एक सप्ताह की छुट्टी के लिए अपने उच्च अधिकारी भगवती चरण घोष को आवेदन पत्र दिया। उन्होंने अविनाश बाबू से कहाः धर्म के नाम पर ऐसे पागलपन से नौकरी में उन्नति नहीं की जा सकती। आगे बढ़ना है तो यह पचड़ा छोड़कर कार्यालय का कार्य मन लगा के करो।
                 निराश होकर अविनाश बाबू घर लौट रहे थे तो सहसा मार्ग में भगवती बाबू मिले। इन्हें उदास देख वे सांसारिक बातें समझाने लगे ताकि इनके मन का क्षोभ दूर हो  जाये। अविनाश बाबू उदासीनता के साथ उनकी बातें सुन रहे थे और मन ही मन गुरुदेव से प्रार्थना भी कर रहे थे।
                 अचानक कुछ दूरी पर तीव्र प्रकाश हुआ, उसमें लहिरी महाशय जी प्रकट हुए और बोलेः भगवती ! तुम अपने कर्मचारियों के प्रति कठोर हो।इसके बाद वे अंतर्ध्यान हो गये।
                 सर्वव्यापक गुरु-तत्त्व सर्वत्र विद्यमान है। शिष्य जब सदगुरु को शरणागत होकर पुकारता है तो उसकी प्रार्थना गुरुदेव अवश्य सुनते हैं तथा प्रेरणा, मार्गदर्शन भी देते हैं। पूज्य बापू जी से मंत्रदीक्षित साधकों का ऐसा अनुभव हैः
सभी शिष्य रक्षा हैं पाते, सर्वव्याप्त सदगुरु बचाते।
                 भगवती बाबू अत्यंत विस्मित हो कुछ मिनट चुप रहे, फिर कहाः आपकी छुट्टी मंजूर, आप अपने गुरुदेव का दर्शन करने अवश्य जायें और यदि अपने साथ मुझे भी ले चलें तो अच्छा हो।
                 दूसरे दिन भगवती बाबू सपत्नीक अविनाश बापू के साथ काशी पहुँचे। उन्होंने देखा कि लाहिड़ी महाशय ध्यानस्थ बैठे है। ज्यों भगवती बाबू ने प्रणाम किया त्यों वे बोलेः भगवती ! तुम अपने कर्मचारियों के प्रति कठोर हो।ठीक यही बात भगवती बाबू पहले सुन चुके थे। उन्होंने क्षमा याचना की व पत्नीसहित दीक्षा ली।
                 भगवती बाबू अपने पुत्र मुकुंद के जन्म के कुछ दिन बाद उसे लेकर सपत्नीक अपने गुरुदेव के दर्शन करने आये तो लाहिड़ी जी ने आशीर्वाद देते हुए कहाः तुम्हारा यह पुत्र योगी होगा।
                 भगवती बाबू की पत्नी ज्ञानप्रभा देवी लाहिड़ी महाशय को साक्षात ईश्वर मानती थी। एक बार मुकुंद हैजे से पीड़ित हो गया। डॉक्टर आशा छोड़ चुके थे। ज्ञानप्रभा देवी मुकुंद को लाहिड़ी जी का श्रीचित्र दिखाते हुए बोलीं- बेटा ! तुम इन्हें प्रणाम करो।मुकुंद इतना कमजोर हो गया था हाथ उठा के प्रणाम भी नहीं कर सका। माँ ने कहाः कोई हर्ज नहीं बेटा ! तुम मन ही मन भक्तिभाव से गुरुदेव को प्रणाम करो। तुम जरूर अच्छे हो जाओगे।मुकुंद ने वैसा ही किया और ज्ञानप्रभा देवी ने हृदयपूर्वक गुरुदेव से प्रार्थना करके सब उनके हाथों में सौंप दिया। दूसरे दिन से मुकुंद स्वस्थ होने लगा और फिर पूर्णतः ठीक होकर महानता के रास्ते चल पड़ा।
                 कैसी अगाध महिमा है आत्मज्ञानी महापुरुषों के दर्शन, सत्संग, सान्निध्य, सुमिरन व उनकी अहैतुकी कृपा की  ! एक ब्रह्मज्ञानी महापुरुष के शिष्य के सम्पर्क में आने से भगवती बाबू के पूरे परिवार का उद्धार हो गया और उनके पुत्र विश्वप्रसिद्ध परमहंस योगानंद बन गये। ब्रह्मज्ञानी सदगुरु के मार्गदर्शन में चलने वाला स्वयं की 21 पीढ़ियाँ तो तारता ही है, अपने सम्पर्क में आने वालों को भी महापुरुषों से जोड़कर उनके जन्म-जन्मांतर सँवारने में निमित्त बन जाता है। धन्य हैं ऐसे महापुरुष और धन्य हैं उनकी कृपा पचाने वाले सत्शिष्य !

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जून 2017, पृष्ठ संख्या 21, अंक 294


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