स्वतंत्रता
की बलिवेदी पर चढनेवाले भारत के वीरों के हाथों में होती थी श्रीमद्भगवद्गीता एवं
मुख में होता था यही श्लोक : नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि... ऐसे वीर भी एक-दो नहीं
वरन् हजारों की संख्या में होते थे । आखिर परेशान होकर अंग्रेजों ने जाँच करवायी
कि : ‘इतनी बडी संख्या में देशभक्तों को
फाँसी पर चढाने के बावजूद भी दूसरों का मनोबल कमजोर क्यों नहीं होता ?
क्यों एक-एक करके सभी वीर हँसते-हँसते फाँसी के फन्दे पर झूल जाते हैं ?'
जाँच के बाद पता चला कि : ‘‘भारतवासियों
के पास गीता नामक ग्रंथ है । उसमें ऐसा दिव्य ज्ञान है कि ‘जन्मता-मरता
शरीर है, सुखी-दुःखी मन होता है,
निश्चय-अनिश्चय बुद्धि करती है और मैं अमर आत्मा हूँ । दुनिया में ऐसी कोई
फाँसी नहीं बनी है, जो मुझे मार सके ।'
इसी ज्ञान को पाकर सभी वीर सहर्ष मृत्यु को अंगीकार कर लेते हैं ।'
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