अघोर पंथ - अघोरी - जीवन के रहस्य - डॉ विक्रम शर्मा।
अघोर
पंथ भारत वर्ष की अद्भुत विद्या है। इसे पुरातन भारत
की धरोहर भी कहा जा सकता है, या यूं कहें कि उसी ज्ञान की परछाई आज
का विज्ञान ह...
“मनु स्मृति”- प्रथम
अध्याय (सृष्टि उत्पत्ति एवं धर्मोत्पत्ति विषय) भाग – 6
'भगवान' को खोज रहे
वैज्ञानिक 'नटराज' से हो रहे
प्रभावित
ॐ शब्द का महत्व और उसका वैज्ञानिक अर्थ
अघोर
पंथ भारत वर्ष की अद्भुत विद्या है। इसे पुरातन भारत
की धरोहर भी कहा जा सकता है, या यूं कहें कि उसी ज्ञान की परछाई आज
का विज्ञान है। सिद्ध अघोरी संत मृत्यु तक को टालने की क्षमता रखते हैं।
अघोर
पंथ, सनातन धर्म का एक प्रमुख तंत्र से जुड़े शिव व् शक्ति के साधकों का
विशेष संप्रदाय है। इसका पालन करने वालों को अघोरी कहते हैं। अघोर का मतलब होता है, अन्धकार
से प्रकाश की ओर, जो मात्र मानव उत्थान के लिए संसार को बुराई
रुपी अन्धकार से मुक्त कर मानवता को उजाला दे। अघोरपंथ की उत्पत्ति के काल के बारे
में अभी निश्चित प्रमाण नहीं मिले हैं, परन्तु इन्हें
कपालिक संप्रदाय के समकक्ष मानते हैं जो अघोर से ही उत्पन्न हुआ है। शास्त्रों में
अघोरपंथ की उत्त्पत्ति भगवान् शिव से मानी जाती है क्योंकि आदि-अनादि भगवान् शिव
अघोर का सबसे बड़ा स्वरुप माने जाते हैं।
अघोर
भारत के प्राचीनतम 'शैव संप्रदाय' (शिव साधक) व्
शाक्त संप्रदाय (शक्ति साधक) दोनों के मिलन से संबधित हैं। अघोर तंत्र का मुख्य
केंद्र तारा पीठ, काली घाट व् कामाख्या मंदिर गुवाहाटी रहा है।
सहज ही प्रश्न उठता है कि औघड़ कौन हैं ? औघड़ (संस्कृत
रूप अघोर) शक्ति का साधक होता है। चंडी, तारा, काली
यह सब शक्ति के ही रूप हैं, नाम हैं। यजुर्वेद के रुद्राध्याय में
रुद्र की कल्याण कारी मूर्ति को शिवी की संज्ञा दी गई है, शिवा
को ही अघोरा कहा गया है। शिव और शक्ति संबंधी तंत्र ग्रंथ यह प्रतिपादित करते हैं
कि वस्तुत: यह दोनों भिन्न नहीं, एक अभिन्न तत्व हैं। रुद्र अघोरा शक्ति
से संयुक्त होने के कारण ही शिव हैं।
बाबा
किनाराम ने इसी अघोरा शक्ति की साधना की थी। बाबा
कीना राम सिद्ध अघोर स्थल बनारस के समर्थ सिद्ध अघोरी हुए जिनका आसन आज भी स्वतः
चलता है। ऐसी साधना के अनिवार्य परिणामस्वरूप चमत्कारिक दिव्य सिद्धियाँ अनायास
प्राप्त हो जाती हैं, ऐसे साधक के लिए असंभव कुछ नहीं रह
जाता। वह परमहंस पद प्राप्त होता है। कोई भी ऐसा सिद्ध प्रदर्शन के लिए चमत्कार
नहीं दिखाता । औघड़ साधक की भेद बुद्धि का नाश हो जाता है। वह प्रचलित सांसारिक
मान्यताओं से बँधकर नहीं रहता। सब कुछ का अवधूनन कर, उपेक्षा कर ऊपर
उठ जाना ही अवधूत पद प्राप्त करना है।
शमशान
अघोरियों का परमपूज्य साधना स्थल माना जाता है, शमशान भगवान्
शिव का स्वरुप गिना जाता है, शमशान का अर्थ शम+शान मतलब जंहा सबकी
शान बराबर हो जाती है, श्मशान एक ऐसा स्थान है जंहा अच्छा
बुरा सब बराबर हो जाता है। चाहे राजा हो या
रंक, चोर हो या भिखारी सभी एक समान और एक ही अग्नि के बीच शरीर का आत्मा
से विच्छेदन करते हैं। ये स्थान सनातन में सर्वोच्च तटस्थ स्थानों में गिना जाता
है जंहा ऋणात्मक व् घनात्मक ऊर्जा का प्रवेश तटस्थता की तरफ बढ़ जाता है।
अघोरियों
की कई बातें ऐसी हैं जिनको सुनकर आप दांतों तले उंगली दबा लेंगे। में आपको
अघोरियों की दुनिया की कुछ ऐसी ही बातें बताने जा रहा हूँ, जिसको
जानकर आपको एहसास होगा कि अघोर पंथ कितनी कठिन साधना करते हैं तथा इससे मानव जाति
को किस तरह से फायदा होता है।
अघोरियों की साधना :
अघोरी
मूलत: तीन तरह की साधनाएं करते हैं। शिव साधना, शव साधना और श्मशान
साधना से अघोरी हर प्रकार की तंत्र साधनाओं में महारत हासिल करते हैं, अघोरी
क्षट् कर्मो के साथ खेचरी व् परागमन साधनाओं को भी पूर्ण करते हुए महाकाल तंत्र
साधना से काल विजयी हो जाते हैं तथा भगवान् के श्री चरणों में ध्यान मग्न हो जाते
हैं । शिव साधना में साधक शव के ऊपर पैर रखकर खड़े रहकर साधना करते हैं तथा ये
साधना कई घंटों निर्जन स्थान पर शव के साथ की जाती है, जिससे
साधक ऋणात्मक ऊर्जा से घनात्मक ऊर्जा का प्रवाह अपने मूलाधार से महसूस करता है तथा
इसे तंत्र अघोर साधना का पहला चरण कहा जाता है ।
बाकी दोनों
तरीके शव साधना की ही तरह होते हैं जो साधक को आगामी चक्र की तरफ बढ़ाती हैं केंद्र
को जागृत करती हैं। इस साधना का मूल शिव की छाती पर पार्वती द्वारा रखा हुआ पैर
है। ऐसी साधनाओं में मुर्दा जागृत हो जाता है तथा उन्हें प्रसाद स्वरुप में मांस
और मदिरा चढ़ाई जाती है व् मेवा भी चढ़ाया जाता है।
श्मशान साधना:
शव
और शिव साधना के अतिरिक्त तीसरी साधना होती है श्मशान साधना, जिसमें
आम स्त्री पुरुष को भी शामिल किया जा सकता है, इस साधना में
मुर्दे की जगह शवपीठ (जिस स्थान पर शवों का दाह संस्कार किया जाता है) की पूजा की
जाती है। उस पर गंगा जल चढ़ाया जाता है। यहां प्रसाद के रूप में भी मांस-मदिरा की
जगह मावा चढ़ाया जाता है, तथा उसे सुगंध व् फूलों से सजाया जाता
है।
हिन्दू
धर्म में आज भी किसी 5 साल से कम उम्र के अप्राकृतिक मौत से
मरने वाले बच्चे, सांप काटने से मरे हुए लोगों, आत्महत्या
किए लोगों का शव जलाया नहीं जाता बल्कि दफनाया या गंगा में प्रवाहित कर कर दिया
जाता है। पानी में प्रवाहित ये शव डूबने के बाद हल्के होकर पानी में तैरने लगते
हैं। अक्सर अघोरी तांत्रिक इन्हीं शवों को पानी से ढूंढ़कर निकालते और अपनी तंत्र
सिद्धि के लिए प्रयोग करते हैं।
अघोरियों
के बारे में कई बातें प्रसिद्ध हैं जैसे कि वे बहुत ही हठी होते हैं, अगर
किसी बात पर अड़ जाएं तो उसे पूरा किए बगैर नहीं छोड़ते। गुस्सा हो जाएं तो किसी
भी हद तक जा सकते हैं। अधिकतर अघोरियों की आंखें लाल होती हैं, जैसे
वे बहुत गुस्सा हों, लेकिन उनका मन उतना ही शांत भी होता है। अर्ध
नग्न अवस्था में काले वस्त्रों व् श्मशान की भस्म में लिपटे अघोरी गले में धातु
तार में की बनी नरमुंड व् मानव हड्डियों की माला पहनते हैं तथा इनको देखते ही आम
इंसान की रूह कांप उठती है इसके बिपरीत अघोरी जितने दिखने में डरावने लगते है उतने
ही सौम्य व् परोपकारी भी होते हैं ।
अघोर
के नाम पर आजकल अक्कसर साधू भेष में लुटेरे भी घूम रहे होते हैं जो भोली भाली जनता
को लुटते है, ध्यान रहे अघोरी संत कभी सांसारिक लोगों से कुछ
मांगेगा नहीं क्योंकि वह तो स्वयं दाता है अतएव सिद्ध संत भाग्यवान व्यक्ति को ही
मिलते हैं नाकि आम घुमते हैं। अघोरी अक्सर श्मशानों में ही अपनी कुटिया बनाते हैं
या जंगलों में अपना समय साधना में बिताते हैं । जहां एक छोटी सी धूनी जलती रहती है, क्योंकि
अघोर साधना अग्नि के समक्ष ही की जाती है, इसके पीछे कारण
है कि शव से शिव मात्र शक्ति यानी ऊर्जा अग्नि के बिना संभव नहीं। जानवरों में वे
सिर्फ कुत्ते पालना पसंद करते हैं क्योंकि कुत्ते भैरव का वाहन माना जाता है तथा
भैरव भगवान् शिव का अघोर स्वरूप हैं व् श्मशान के रक्षक हैं ।
अघोरियों
के साथ उनके कुछेक शिष्य रहते हैं, जो उनकी सेवा
करते हैं तथा अघोर का ज्ञान प्राप्त करते हैं। अघोरी अपने वचन के बहुत पक्के होते
हैं, वे अगर किसी से कोई बात कह दें तो उसे पूरा करने की सामर्थ्य रखते
हैं। बहुत कम लोग जानते हैं कि अघोरियों की साधना में इतना बल होता है कि वे
मुर्दे से भी बात कर सकते हैं किसी भी अनहोनी को होनी में तब्दील करने की क्षमता
रखते हैं, यही कारण है कि अघोरी शिव स्वरूप माने जाते हैं
। ये बातें पढ़ने-सुनने में भले ही अजीब लगे, लेकिन इन्हें
पूरी तरह नकारा भी नहीं जा सकता। उनकी साधना को कोई चुनौती नहीं दी जा सकती।
अघोरी
अमूमन आम दुनिया से कटे हुए रहते हैं, वे अपने आप में
मस्त रहने वाले, अधिकांश समय दिन में सोने और रात को श्मशान में
साधना करने वाले होते हैं। वे आम लोगों से कोई संपर्क नहीं रखते और ना ही ज्यादा
बातें करते हैं। वे अधिकांश समय अपना सिद्ध मंत्र ही जाप करते रहते हैं तथा अपनी
साधना में लीन रहते हैं। आज भी ऐसे अघोरी और तंत्र साधक हैं जो पराशक्तियों को
अपने वश में कर के दुनियां के लिए कोई भी विचित्र अनहोनी को टाल सकते हैं, मनुष्य
जीवन के लिए बरदान से बढ़ कर क्रियाएं कर सकते है जो विज्ञान की समझ से परे हैं ।
दुनिया में
सिर्फ चार श्मशान घाट ही ऐसे हैं जहां तंत्र क्रियाओं का परिणाम बहुत जल्दी मिलता
है। ये हैं तारापीठ का श्मशान (पश्चिम बंगाल), कामाख्या पीठ
(असम) का श्मशान, त्र्यंबकेश्वर (नासिक) और उज्जैन (मध्य प्रदेश)
का श्मशान । अघोरी जीवन मरण के चक्कर से मुक्त होकर खान पान से भी परे चला जाता है
परंतु सांसारिक जीवन व् ब्यक्तियों को तुच्छ चीज़ों को अपने अंदर समाहित करते हुए
दिखाते हैं तथा उसके दूसरी तरफ मानव जाति व् पृथ्वी पर ज्ञान की ऊर्जा का विखराव
करते रहते हैं।
अघोरपंथ के
अनुयायियों के लिए मल मूत्र, मांश, अन्य तुच्छ
बस्तुएं उतनी ही महत्व रखती हैं जितनी अन्य संसार के लिए विविध पदार्थ जिन्हें
सांसारिक लोग अच्छा समझते हैं। अघोर किसी भी बस्तु, व्यक्ति स्थान, व्
समय को अच्छा बुरा नहीं आंकता परंतु संसार की हर बस्तु को उपयोगी मानकर सभी संसार
की बस्तुयों, नियमों के साथ हर प्रकार के प्रणियों को समभाव
की दृष्टि से देखता है। वे श्मशान में रहना ही ज्यादा पंसद करते हैं क्योंकि शमशान
ही तंत्र शास्त्र के अनुसार शिव स्थान है । श्मशान में साधना करना भी शीघ्र ही
फलदायक होता है क्योंकि समशान में किसी भी प्रकार की ऊर्जा नहीं होती ये स्थान
पूर्ण जागृत होकर स्थगन मुद्रा में रहता है । श्मशान में साधारण मानव जाता ही नहीं, इसीलिए
साधना में विध्न पडऩे का कोई प्रश्न ही नहीं उठता। उनके मन से अच्छे बुरे का भाव
निकल जाता है, संसार एक समान लगने लगता है, स्त्री
पुरुष का भेद मिट जाता है मात्र शिव ओर शक्ति की ऊर्जा का ध्यान रखते हुए अपनी
साधना में लीन होकर शक्तियों का समाहन करते हुए आगे बढ़ते हैं।
डॉ विक्रम शर्मा
तंत्र साधक व् शिष्य
सिद्ध अघोरी
परमपूजनीय ईश्वरस्वरूप लाल बाबा जी
जय महाकाल , जय शमशान
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