आज्ञा कैसी है इसका नहीं, आज्ञा किसने दी उसका महत्त्व।
काठिया
बाबा ईश्वरप्राप्ति के लिए हिमालय पर साधु-संतों की खोज करते-करते एक ऐसी जगह पर
जा पहुँचे जहाँ उन्हें एक बडा पत्थर देखकर लगा कि ‘यह क्या है ? पत्थर
को जरा-सा खिसकाया तो देखा कि अंदर गुफा है । धीरे से उस गुफा में गये तो देखा कि
एक शांतात्मा, महापुरुष ध्यानमग्न हैं । काठिया बाबा ने
दंडवत् प्रणाम किया । एकदम शांत गुफा में हलचल से बाबा का ध्यान टूटा । नाराज वाणी
में बाबा ने कहा : ‘‘अरे, कौन हो ?
काठिया
बाबा ने कहा : ‘‘आपका दास हूँ ।
‘‘दास
?
‘‘जी
महाराज !
‘‘तो
दास तो आज्ञा मानता है... ! मानोगे आज्ञा ?
काठिया
बाबा : ‘‘हाँ-हाँ !
‘‘गुफा
के मुहाने से छलाँग लगाकर नीचे कूद जाओ ।
काठिया
बाबा ने हिम्मत की और वे ‘‘जय गुरुदेव ! बोलकर खाई में कूद तो गये
लेकिन क्या हुआ ?... उन्हें लगा कि गुफावाले बाबा ऊपर से उनकी जटा
पकडकर खींच रहे हैं । ऊपर आते ही काठिया बाबा उनके चरणों में गिर पडे । जिन्होंने
आज्ञा दी उन्हींने उठा लिया ।
आज्ञा
कैसी है इसका नहीं, आज्ञा किसने दी उसका महत्त्व है । किसने कहा है
? ‘मेरे इष्ट ने कहा है या ‘मेरे गुरुदेव ने
कहा है । तो बात पूरी हो गयी ।
0 टिप्पणियाँ