"कैसे शेर बना मां दुर्गा की सवारी"?
मां
दुर्गा को यूं ही शेर की सवारी प्राप्त नहीं हुई थी। इसके पीछे एक रोचक कहानी है।
धार्मिक इतिहास के अनुसार भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए देवी पार्वती
ने हजारों वर्ष तक तपस्या की। कहते हैं उनकी तपस्या में इतना तेज़ था, जिसके
प्रभाव से देवी सांवली हो गईं।
इस
कठोर तपस्या के बाद शिव तथा पार्वती का विवाह भी हुआ एवं संतान के रूप में उन्हें
कार्तिकेय एवं गणेश की प्राप्ति भी हुई। एक कथा के अनुसार भगवान शिव से विवाह के
बाद एक दिन जब शिव और पार्वती साथ बैठे थे, तब भगवान शिव ने
पार्वती से मजाक करते हुए उन्हें काली कह दिया था। देवी पार्वती को शिव की यह बात
पसंद नहीं आई और वो कैलाश छोड़कर वापस तपस्या करने में लीन हो गई। इस बीच एक भूखा
शेर देवी को खाने की इच्छा से वहां पहुंचा। लेकिन देवी को तपस्या में लीन देखकर
शेर वहीं चुपचाप बैठ गया। ना जाने क्यों शेर देवी के तपस्या को भंग नहीं करना
चाहता था। वह सोचने लगा कि देवी कब तपस्या से उठें और वह उन्हें अपना आहार बना ले।
इस बीच कई साल बीत गए लेकिेन शेर अपनी जगह डटा रहा।
माता
पार्वती अभी भी तपस्या में मग्न थी। माता पार्वती की कठोर तपस्या देखकर, शिव
वहां प्रकट हुए और देवी को गोरे होने का वरदान देकर चले गए। थोड़ी देर बाद माता
पार्वती भी तप से उठी और उन्होंने गंगा स्नान किया। स्नान के तुरंत बाद ही अचानक
उनके भीतर से एक और देवी प्रकट हुईं। उनका रंग बेहद काला था। उस काली देवी के माता
पार्वती के भीतर से निकलते ही देवी का खुद का रंग गोरा हो गया। इसी कथा के अनुसार
माता के भीतर से निकली देवी का नाम कौशिकी पड़ा और गोरी हो चुकी माता सम्पूर्ण जगत
में 'माता गौरी' कहलाईं"।
स्नान
के बाद देवी ने अपने निकट एक शेर को पाया, जो वर्षों से
उन्हें खाने की ताक में बैठा था। लेकिन देवी की तरह ही, वह
वर्षों से एक तपस्या में था, जिसका वरदान माता ने उसे अपना वाहन
बनाकर दिया। तो इस तरह शेर मां दुर्गा की सवारी बन गया।
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