धर्म या छल-धर्म
?
कैकेयी ने राजा दशरथ से
दो वरदान माँगे । पहला, रामजी को चौदह वर्षों का
वनवास और दूसरा, भरत को राज्य मिले । यह
सुनते ही राजा व्याकुल हो गये ।
दशरथजी बोले : ‘‘कैकेयी ! मेरे लिए तो भरत और राम दो आँखों की तरह हैं ।
क्या किसी व्यक्ति के मन में यह कल्पना आ सकती है कि ‘मेरी एक आँख ठीक रहे और दूसरी ठीक न रहे ? इसी प्रकार मेरे अंतःकरण में राम और भरत में कोई अंतर नहीं
। तुम अगर भरत को राज्य देना चाहती हो तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है लेकिन मुझे तो
आश्चर्य यह है कि आज तक तुमने मुझसे राम के विषय में यही कहा कि ‘राम तो बडे साधु हैं लेकिन उन्हीं राम को किस अपराध के कारण
वनवास दे रही हो ?
कैकेयी ने जो उत्तर दिया
वही मानो धर्म के साथ छल है ।
कैकेयी : ‘‘महाराज ! विचार मेरा नहीं, आपका बदला है ।
मैं तो अपनी जगह पर दृढ हूँ । मैं पहले भी राम को साधु मानती थी, अब भी मानती हूँ ।
दशरथजी : ‘‘यदि ऐसा है तो फिर राम को वन में भेजकर अनर्थ क्यों कर रही
हो ?
‘‘अनर्थ मैं कर रही हूँ कि
आप कर रहे हैं ? मैं राम को साधु समझती
हूँ इसीलिए तो वन भेज रही हूँ । आप अनर्थ कर रहे हैं कि साधु को सिंहासन पर बैठाकर
उसे बदलना चाहते हैं । मैंने तो बडा सुंदर न्याय किया है जो तप करने के लिए राम को
वन में भेज रही हूँ । आज तो आपको यह अवसर मिला है जिसके द्वारा अयोध्या में सत्य, तप, दया और दान - धर्म के
चारों चरण पूरे हो जायेंगे ।
दशरथजी : ‘‘कैसे ?
कैकेयी : ‘‘आपने मुझे वचन दिया था कि जो माँगोगी वह मिलेगा । आप वचन को
पूरा करेंगे तो धर्म के पहले चरण ‘सत्य की रक्षा हो जायेगी
। राम वन में जाकर तप करेंगे तो दूसरा चरण ‘तप पूरा हो जायेगा । भरत
को राज्य का दान देंगे तो तीसरा चरण ‘दान पूरा हो जायेगा और
धर्म का चौथा चरण ‘दया है तो आप दया मेरे
ऊपर कीजिये ।
इस प्रकार सत्य, तप, दया और दान - चारों की
रक्षा होनेवाली है । मैं तो धर्म की रक्षा के लिए ही यह सब कुछ कर रही हूँ और
बँटवारा कितना बढ़िया किया है !
‘सत्य का पालन दशरथ करें, तपस्या राम करें एवं दया और दान हमें मिलें । इसका अभिप्राय
है कि हम यह चाहते हैं कि धर्म में जितनी त्याग की बातें हों वे दूसरों के जीवन
में आयें और जितनी भोग या उपलब्धि की बातें हैं वे हमारे जीवन में आयें । जीवन में
तप श्रेष्ठ है मगर दूसरे का लडका करे और जो भोग है वह तो हमारे लडके को मिले । यदि
इस प्रकार धर्म का बँटवारा किया जाय तो यह धर्म नहीं अपितु धर्म के साथ छल होगा और
कैकेयी ने यही छल किया । क्या ऐसे छल से किसीको भी सुख मिल पाया है ?
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