संत राष्ट्र के प्राणाधार।
      ईरानियों और तुर्कियों के बीच युद्ध चालू हुआ था । वे आपस में भिडे तो ऐसे भिडे कि कोई निर्णायक मोड नहीं आ रहा था । तुर्कियों को ईरानियों से लोहा लेना बडा भारी पड रहा था । इतने में ईरान के सूफी संत फरीदुद्दीन अत्तार युद्ध की जगह से गुजरे तो तुर्कियों ने उन्हें जासूसी के शक में पकड लिया । अब ईरान के संत हैं तो गुस्से में द्वेषपूर्ण निर्णय किया कि इन्हें मृत्युदंड दिया जायेगा, देशद्रोही आदमी हैं । ईरान के अमीरों ने सुना तो कहला के भेजा : ‘‘इन संत के वजन की बराबरी के हीरे-जवाहरात तौल के ले लो लेकिन हमारे देश के संत को हमारी आँखों से ओझल न करो ।
      तुर्क-सुल्तान : ‘‘हूँह... !
      फिर ईरान के शाह ने कहा : ‘‘हीरे-जवाहरात कम लगें तो यह पूरा ईरान का राज्य ले लो लेकिन हमारे देश के प्यारे संत को फाँसी मत दो ।
      ‘‘आखिर इनमें क्या है ? देखने में तो ये एक इंसान दिखते हैं !
      ‘‘इंसान तो दिखते हैं लेकिन रब से मिलानेवाले ये महापुरुष हैं । ये चले गये तो असलियत के बारे में अँधेरा हो जायेगा । ब्रह्मज्ञानी संत का आदर मानवता का आदर है, इंसानियत का आदर है, मनुष्य के ज्ञान का आदर है, विकास का आदर है । ऐसे ब्रह्मज्ञानी संत धरती पर कभी-कभार होते हैं । मेरा ईरान का राज्य ले लो किन्तु मेरे संत को रिहा कर दो ।
      तुर्क-सुल्तान भी आखिर इंसान था, बोला : ‘‘तुमने आज मेरी आँखें खोल दीं । संतों के वेश में खुदा से मिलानेवाले इन औलिया, फकीरों का तुम आदर करते हो तो मैं तुम्हारा राज्य लेकर इनको छोडूँ ! नहीं, आओ हम गले लगते हैं । इन संत की कृपा से हमारा वैर मिट गया ।
भाग होया गुरु संत मिलाया ।
प्रभ अविनाशी घर में पाया ।।
      जितनी देर ब्रह्मज्ञानी संतों के चरणों में बैठते हैं और वचन सुनते हैं वह समय अमूल्य होता है । उसका पुण्य तौल नहीं सकते हैं ।
तीरथ नहाये एक फल, संत मिले फल चार ।

      संत के दर्शन-सत्संग से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष - चारों फल फलित होने लगते हैं । उन्हीं संत से अगर हमको दीक्षा मिली तो वे हमारे सद्गुरु बन गये । तब तो उनके द्वारा हमको अनंत फल होता है, वह फल जिसका अंत न हो, नाश न हो ।
सद्गुरु मिले अनंत फल, कहत कबीर विचार ।।

      पुण्य का फल सुख भोग के अंत हो जाता है, पाप का फल दुःख भोग के अंत हो जाता है पर संत के, सद्गुरु के दर्शन और सत्संग का फल न दुःख दे के अंत होता है न सुख दे के अंत होता है, वह तो अनंत से मिलाकर मुक्तात्मा बना देता है ।