२२०० वर्ष प्राचीन है बम्लेश्वरी मंदिर का इतिहास, यहां बसा था ये प्राचीन नगर
         मुंबई-हावडा रेलमार्ग पर राजनांदगांव जिले के डोंगरगढ में १६ सौ फीट ऊंची पहाडी पर मां बम्लेश्वरी का प्रसिद्ध मंदिर है । मंदिर की अधिष्ठात्री देवी मां बगलामुखी हैं, जिन्हें मां दुर्गा का स्वरूप माना जाता है ।

           छत्तीसगढ में मां बम्लेश्वरी के रूप में ये पूजी जाती हैं । मंदिर की ख्याति देश-विदेश तक है । ऊपर बडी बम्लेश्वरी व नीचे स्थित छोटी बम्लेश्वरी विराजित हैं । इन्हें एकदूसरे की बहन कहा जाता है । ऊपर तक पहुंचने ११०० सीढियां चढनी पडती है ।
मंदिर में क्वांर व चैत्र नवरात्र पर हजारों मनोकामना ज्योति प्रज्वलित किए जाते हैं । भव्य मेला भी लगता है । यहां रोप-वे की सुविधा भी है । मंदिर के नीचे छीरपानी जलाशय है, जहां यात्रियों के लिए बोटिंग की व्यवस्था भी है ।

२२०० वर्ष पुराना है इतिहास
मां बम्लेश्वरी देवी का इतिहास लगभग २२०० वर्ष पुराना है । डोंगरगढ से प्राप्त भग्नावशेषों से प्राचीन कामावती नगरी होने के प्रमाण मिले हैं । पूर्व में डोंगरगढ ही वैभवशाली कामाख्या नगरी कहलाती थी ।

मंदिर के इतिहास को लेकर कोई स्पष्ट तथ्य तो मौजूद नहीं है, परंतु जो पुस्तकें और दस्तावेज सामने आए हैं, उसके अनुसार डोंगरगढ का इतिहास मध्यप्रदेश के उज्जैन से जुडा हुआ है ।
मां बम्लेश्वरी को मध्यप्रदेश के उज्जायनी के प्रतापी राजा विक्रमादित्य की कुलदेवी भी कहा जाता है । इतिहासकारों और विद्वानों ने इस क्षेत्र को कल्चूरी काल का पाया है । वर्ष ९१६४ में खैरागढ रियासत के भूतपूर्व नरेश राजा वीरेन्द्र बहादुर सिंह ने एक ट्रस्ट की स्थापना कर मंदिर का संचालन ट्रस्ट को सौंप दिया था ।

ऐसी है मान्यता
मंदिर के पुजारी पं. रघुनाथ प्रसाद मिश्र का का कहना है कि सच्चे मन से मांगी की हर मुराद मां पूरा कर देती हैं । यही कारण है कि नवरात्र पर लाखों की संख्या में श्रद्धालु माता के श्रीचरणों में आशीर्वाद लेने आते हैं । अष्ठमी पर माता के दर्शन करने घंटों खडा रहना पड़ता है । बावजूद इसके यहां हर साल भीड बढती ही जा रही है । बडी संख्या में श्रद्धालु पैदल भी माता के दरबार में पहुंचते हैं ।