पाहोम नामक एक हुनरमंद व उत्साही रूसी किसान था.जब उसे पता चला कि एक पड़ोसी राज्य में उपजाऊ खेत बिकाऊ है,तब अपना खेत बेचकर वह उस राज्य में चला गया.वहां जमीन खरीद ली और खेती करने लगा.फिर उसे बेचकर दूसरी जगह और अधिक खेत खरीद लिए.पाहोम ने ऐसा कई बार किया. अब वह खूब अमीर हो गया था.लेकिन यात्रियों से पता चला कि दूर एक देश है जहां आदिवासी रहते हैं.वहां की जमीन अतिशय उपजाऊ है.पाहोम को असीम खेती का स्वप्न दिखाई देने लगा.पत्नी बोली अपने पास सब कुछ है अब और क्या दौड़-भाग?पाहोम पत्नी पर नाराज हुआ.संसार में प्रगति करनी हो तो थोड़ी मुश्किलें तो सहन करनी ही पड़ती हैं. पत्नी और बच्चों को वहीं छोड़कर और बहुत सा पैसा और सोना लेकर पाहोम असीम वैभव की खोज में निकल पड़ा.पाहोम आदिवासियों के देश में पहुंच गया.वहां वाकई खूब खेती उपलब्ध थी.वह अधीर हो उठा उसे रात भर ठीक से नींद भी नहीं आई.दूसरे दिन वह सबेरे जल्दी उठा.सारे आदिवासी व उनका बूढा मुखिया एकत्र हो चुके थे.पाहोम ने मुखिया को एक हजार मोहरों की थैली अर्पण की व खेती के लिए जमीन मांगी.मुखिया ने हंसकर सम्मति दे दी और वहां का नियम सुनाया,सूर्य उगने से अस्त होने तक तुम चलकर जितनी जमीन घेर सकते हो उतनी जमीन तुम्हारी.पाहोम मन ही मन बहुत खुश हुआ,लेकिन ऊपर से शांत रहा.इन आदिवासियों को पता नहीं चले कि कितना बड़ा इलाका मैं घेर लेने वाला हूँ.लेकिन सूर्योदय पर जहां से निकले थे वहां तक सूर्यास्त से पूर्व वापिस नहीं पहुंचे और प्रदक्षिणा अपूर्ण रह गई तो तुम्हें कोई जमीन नहीं मिलेगी और मोहरों से भी हाथ धो बैठोगे,मुखिया ने पूरा नियम बताया.पाहोम ने खतरे का इशारा मन में दर्ज कर लिया.सूर्य क्षितिज पर दिखाई देते ही पाहोम ने पूर्व दिशा में चलने की शुरूआत कर दी.उत्साह से भरा पाहोम चल रहा था.आज वह कितना अमीर हो जाएगा इसका हिसाब मन-ही-मन कर रहा था.सबेरे दस बजे के आस-पास वह पानी पीने के लिए तनिक रुका.थोड़ा नाश्ता किया.वह पूर्व में काफी चला आया था.अब वह बाईं ओर अर्थात उत्तर की ओर मुड़ा और तीब्र गति से चलने लगा.दोपहर दो बजे तक काफी दूरी उसने तय कर ली थी.समय बर्बाद न हो इसलिए उसने खाने का विचार भी त्याग दिया.पाहोम चलता जा रहा था.अब लौट जाएं?लेकिन अब जो जमीन आ रही थी वह अतिशय उपजाऊ थी और कुछ दूर चलकर उसे भी अपनी प्रदक्षिणा में समेट लेने के इरादे से वह बिना मुड़े उत्तर में ही चलता रहा.उपजाऊ जमीन उसे आगे बढ़ने के लिए बुला रही थी.सूर्य अवश्य मध्यान्ह से काफी नीचे खिसक गया था.पाहोम को ध्यान आया कि यह सारी जमीन पाने लिए उसे चारों ओर से घेरना आवश्यक है.अत: प्रदक्षिणा की तीसरी बाजू पूरी करने के लिए अब वह पश्चिम की ओर मुड़ गया.तेज गति से चल रहा था मानो दौड़ ही रहा था.बोझा कम करने के लिए उसने साथ का अन्न एवं पानी फेंक दिया.कोट भी निकालकर डाल दिया.पाहोम सूर्य की ओर देखते हुए दौड़ रहा था.शरीर पसीने-2 हो रहा था.शाम हो आई.पाहोम दक्षिण की ओर मुड़ा.अब उसकी प्रदक्षिणा की चौथी व अंतिम भुजा वह पूर्ण कर रहा था.अपार खेती उसकी होने वाली थी,लेकिन सूर्य क्षितिज पर पहुंच चुका था.पाहोम के पैर थक चुके थे.छाती धड़क रही थी.सीने में दर्द हो रहा था.अपनी सारी शक्ति एकत्रित कर जी-जान लगाकर आखिरी दौड़ के लिए दौड़ने लगा.सबकी आंखें सूर्य पर टिकी थीं.पाहोम प्रदक्षिणा पूरा कर सकेगा क्या? पाहोम सचमुच जान की बाजी लगाकर अंतिम पारी दौड़ा.सूर्य ने क्षितिज को स्पर्श किया उस क्षण पाहोम ने सीमा रेखा को छू लिया.लोग खुशी से चिल्ला पड़े.आदिवासियों की दुनिया में किसी ने आज तक इतनी जमीन नहीं जीती थी.वे आनंद से नाचने लगे.पाहोम जमीन पर निश्चल पड़ा था।मुखिया उठकर पाहोम के पास आया.यह सारी जमीन नियमानुसार तुम्हारी हो गई.मुखिया बोला,लेकिन पाहोम मर चुका था.अतिश्रम ने उसकी जान ले ली थी.आदिवासियों ने पाहोम की लंबाई का गड्ढा खोदा.उसमें उसका शव रख दिया.सबने मिट्टी डालकर वह गड्ढा भर दिया.उस तीन हाथ जमीन की ओर देखते हुए,विषाद से आदिवासियों का मुखिया बोला-सच पूछो तो उसे इतनी ही जमीन की आवश्यकता थी.हम सब पाहोम हैं न हों तब भी समाज हमें पाहोम बनाता है.बस,हमारी जमीने भिन्न-भिन्न हैं.किसी को पैसा,किसी को पद,किसी को यश बुलाता है,ललचाता है.जी जान से दौड़ता है.पाहोम दौड़े नहीं तो ये जमीनें कौन पाएगा?पाहोम को दौड़ना ही होगा.उसके लिए उसे जमीन का लाभ होना चाहिए.यही तो मैनेजमेंट का तत्व है.मनुष्य को काम करने की प्रेरणा के लिए लोभ का प्रोत्साहक तो चाहिए ही.सचमुच चाहिए?पाहोम बनने के सिवाय क्या हमारे पास और कोई चारा नहीं है?क्या मनुष्य की नियति इतनी बड़ी शोकान्तिका है?मेरे लिए यह प्रश्न केवल तात्विक चिंतन का नहीं था.मेरे जीवन-मरण का प्रश्न था.आधुनिक जगत में कर्मप्रेरणा के पीछे दौड़ने से मेरी समाजसेवा भी अकांक्षा के घेरे में आ गई थी.और अधिक समाज सेवा मेरे हाथों हो इसकी खातिर मैं जी जान से दौड़ा था.जीवन के सारे महत्व के अंगो को बोझ समझकर फेंक दिया था.यश की रेखा तक दौड़ने की शर्त लगाई थी और अंत में मरने की रेखा तक जा पहुंचा था.पाहोम मर गया,मैं जीवित बच गया,बस इतना ही फर्क था,लेकिन अब मुझे पुन: पाहोम नहीं बनना था.अजीब उलझन है,व्यक्तिगत स्वार्थ पूरे होने की आशा से ही आधुनिक समाज के मनुष्य मर-मराकर काम करते हैं.साम्यवादी व्यवस्था इसीलिए तो ढ़ह गई,लेकिन व्यक्तिगत फल की अशक्ति से खूब काम करने पर भी मनुष्य को संतोष नहीं मिलता,इसका क्या?अहंकार(सत्ता,प्रसिद्धि,मान)स्वार्थ(पैसा,सम्पत्ति,सुविधाएं)तृष्णा व ईर्ष्या इन चार विकारों के घोड़ों को खुली छूट देकर आधुनिक अर्थव्यवस्था का रथ तीव्र गति से बढ़ा जा रहा है,लेकिन इन विकारों की प्रेरणार्थी को हमेशा के लिए दु:खी करने वाली होती है?भारतीय पुराणों के ययाति अथवा ग्रीक पुराणों की ट्रेजडी की तरह आधुनिक मानव की नियति मन के स्तर पर दु:ख व शरीर के स्तर पर हृदय रोग यही है. आखिर उपाय क्या है? मनुष्य को लोभ के बिना काम करने की प्रेरणा कैसे मिल सकती है? आधुनिक समाज का यही ब्रह्मप्रश्न है ।