एक दिन गणेश और कार्तिकेय में तात्विक वार्ता हुई थी, दोनों में है कौन महान? यह बहस छिड़ी हुई थी दोनों एक दूजे को अपनी महिमा सुना रहे थे मैं बड़ा और मैं बड़ा, दोनों ही बता रहे थे प्रश्न जटिल था, हल नहीं था, सोचा निर्णय कौन करे? माँ पार्वती, पिता शिव से, जा अपनी दुविधा को कहे माता पिता के पास जाके, दोनों ने यह पूछा कृपया बताएं हम दोनों में है कौन सबसे ऊंचा? माता पिता ने विचार किया, दोनों को अद्भुत कार्य दिया पृथ्वी के सभी तीर्थों की, परिक्रमा कर जो पहले आयेगा वही आप दोनों में, सबसे महान कहलायेगा बिना विलम्ब कार्तिकेय निकल पड़े, अपने मोर वाहन पर छोड़ मूषक वाहन, गणेश बैठे ध्यान लगा कर पहुंचे गणपति ध्यान में गहरे, शास्त्रीय विचारों की उठने लगी लहरें शास्त्र वचन ह्रदय में धारे, श्री मुख से अविलम्ब उचारे "सर्व तीर्थमयी माता - सर्व देवमयी पिता", शास्त्रों ने गाया है, ऊंचे हैं सबमें माता - पिता स्नान आदि से निवृत हो, गणपति पहुंचे मात-पिता के पास अर्घ्य-पाद से किया पूजन, नतमस्तक हुए"शुभ"चरणों के दास शुद्ध ह्रदय से गणपति जी ने की परिक्रमा सात बार लगे उचारने “वंदन है मात-पिता को बारम्बार” बहुत प्रसन्न हुए मात पिता, देख पुत्र की भक्ति पर पूछा क्या है बेटे - इस परिक्रमा की युक्ति? गणपति बोले नम्र भाव से, शास्त्रों ने उदगार किया जिसने पूजा मात- पिता को, उसे देवों ने सत्कार दिया अतः आपकी परिक्रमा से, हुई परिक्रमा सभी तीर्थों की साधुवाद देकर शिव पार्वती ने, स्वीकारी विजय गणेशजी की उसी समय पहुचे कार्तिकेय कर, परिक्रमा पृथ्वी के तीर्थों की विस्मित हुए देख गणेश को करते पूजन, मात-पिता के श्री चरणों की कथा सुनी जब कार्तिकेय ने, अनुज गणेश की चतुराई की प्रेम से गले लगाकर बोले, हुई हार मेरी चतुराई की सुखद अंत हुआ वार्ता का, निर्णय निकला कितना सार पुष्प-कुञ्ज श्री चरणों में समर्पित, बोले गणपति की जय जयकार ह्रदय सम्राट श्री बापूजी ने यह, कथा हमें याद दिलाई है मात-पिता के पूजन से, प्रेम दिवस की नयी परंपरा चलायी है लाखों-लाखों विद्यार्थियों ने यह स्वीकारा है, मात-पिता के पूजन से जीवन में उजियारा है हर वर्ष लाखों बालक ऐसा, अद्भुत पूजन दिवस मनाते हैं, मात-पिता और बापू जी के, ह्रदय में अपनी जगह बनाते हैं बापू जी की प्रेरणा से जग में, संस्कृति का सम्मान हो रहा युवा वर्ग को मार्गदर्शन मिला, व्यसनों से निदान हो रहा दृढ़ निश्चय आओ सभी करें, बापू के श्री वचनों पर चलें कर मात- पिता का पूजन, हम प्रेम दिवस मनाएंगे Valentine दिवस हटाकर, संस्कृति को बचायेंगे १४ फरवरी को हमको यह, सौगात विश्व को देना है मातृ-पितृ पूजन की प्रेरणा, रग-रग में भर देना है धन्य धन्य हम भक्त बडभागी, जिन्हें गुरु, मात-पिता चरणों प्रीती लागी हरि ॐ .... हरि ॐ .... हरि ॐ ....