प्रश्न:- धर्म की क्या आवश्यकता है?


उत्तर:- धर्म की आवश्यकता -> वेद - शास्त्र - पुराण और संत - महात्माओं के वचनों और सिद्ध पुरुषों के आचरणों से यही सिद्ध होता है की संसार धर्म पर ही टिका हुआ है , धर्म से ही मनुष्य -जीवन की सार्थकता है , धर्म ही मनुष्य को पापों से बचाकर उन्नत जीवन में प्रवेश करवाता है , धर्मबल से ही विपत्तिपूर्ण संसार और परलोक में जीव दुःख के नरक से पार उतर सकता है। ऐसा माना जाता है की धर्म के बिना मनुष्य का जीवन पशु - जीवन -सदृश ही हो जाता है। धर्महीन मनुष्य उछ्रिन्खल हो जाता है और उसके मनमाने आचरण से समाज और देश को कष्ट उठाना पड़ता है। धर्म ही मनुष्य को संयमी , साहसी , धीर , वीर , जितेन्द्रिय और कर्त्तव्यपरायण बनाता है। धृति , क्षमा , मन का निग्रह , अस्तेय , शौच , इन्द्रियनिग्रह , निर्मल बुद्धि , विद्या , सत्य और अक्रोध - ये दस धर्म के लक्षण हैं। महाभारत में कहा है - मन , वाणी और कर्म से प्राणिमात्र के साथ अद्रोह , सब पर कृपा और दान यही साधू पुरुषों का सनातन - धर्म है। पद्मपुराण में धर्म के लक्षण ये बताए हैं - हे प्रिय ! ब्रह्मचर्य , सत्य , पञ्चमहायज्ञ , दान , नियम , क्षमा , शौच , अहिंसा , शांति और अस्तेय से व्यवहार करना - इन दस अंगों से धर्म की ही पूर्ती करे। धर्म ही हमारे लोक - परलोक का एक मात्र सहायक और साथी है , धर्म मनुष्य को दुःख से निकालकर सुख की शीतल गोद में ले जाता है। असत्य से सत्य में ले जाता है , अंधकारपूर्ण हृदय में अपूर्व ज्योति का प्रकाश कर देता है। धर्म ही चरित्र - निर्माण में एक मात्र सहायक है। धर्म से ही अधर्म पर विजय प्राप्त हो सकती है। कहा भी है " अनीति से जात है , राज , तेज और वंश ; तीनों ताले जड गए , कौरव , रावण , कंश। महाराणा प्रताप , छत्रपति शिवाजी आदि का नाम हिंदू जाती में धर्मरक्षा के कारण ही अमर है। युधिष्टर ने धर्मपालन के लिए ही कुत्ते को साथ लिए बिना अकेले सुखमय स्वर्ग में जाना अस्वीकार कर दिया था। मीराबाई धर्म के लिए जहर का प्याला पी गई थी। भगवान बुद्ध ने धर्म के लिए ही शरीर सुखा दिया था। इसी कारण आज इन महानुभावों के नाम अमर हो रहे हैं। धर्म के अभाव में पर - धन और पर स्त्री का अपहरण करना , दीनों को दुःख पहुंचाना तथा मनमानी करना और भी सुगम हो जायेगा। सर्वथा धर्मरहित जगत की कल्पना ही विचारवान पुरुष के हृदय को हिला देती है। मनु महाराज के ये वाक्य स्मरण रखने चाहिए कि - परलोक में सहायता के लिए माता , पिता , पुत्र , स्त्री और संबंधी नहीं रहते। वहाँ एक धर्म ही काम आता है। मरे हुऐ शरीर को बन्धु - बांधव काठ और मिटटी के ढेले के समान पृथ्वी पर पटक कर चले आते हैं , एक धर्म ही उसके पीछे जाता है। अतैव परलोक में सहायता के लिए नित्य धर्म का संचय करना चाहिए। धर्म की रक्षा के लिए ही स्वयम भगवान पृथ्वी पर अवतार लेते हैं [ श्लोक ४ / ७ ]। साधू पुरुषों का उद्धार करने के लिए , पापकर्म करने वालों का विनाश करने के लिए और धर्म की स्थापना करने के लिए मैं युग -युग में प्रकट हुआ करता हूँ [ श्लोक ४ /८ ]।