गौओं की रक्षा करना अपना परम कर्तव्य समझेँ महाराज युधिष्ठर की आज्ञा से भीमसेन ने त्रिगर्तराज सुशर्मा के द्वारा बलपूर्वक हरण की गई गौओं को सुशर्मा से युद्ध करके लौटाया था। इस प्रकार प्रगट में युद्ध करने से पहचाने जाने पर पाण्डवों को पुन: बारहवर्ष का वनवास भोगना पड़ता; पर उनकी परवाह न करके गौओं की रक्षा करना अपना परम कर्तव्य समझकर उन्होंने उसके लिए राजा सुशर्मा के साथ महान युद्ध किया (महाभारत विराट पर्व ३३) अत: हम लोगों को सभी प्रकार से गौओं की भलीभांतिरक्षा करने का पूरा प्रयत्न करना चाहिये। गौओं की रक्षा के लिए गोचरभूमि छोडनी चाहिये। इस समय तो गौओं का हाश बहुत अधिक मात्रा में हो गया और हो रहा है। जगह जगह कसाई खाने खुल गए और खुल रहे है। सरकार की और से गौवध पर प्रतिबंध होने पर भी कानून के विरुद्ध छोटे-छोटे बछड़ों, बछडी और गौओं की हिंसा हो रही है। इसलिए सभी मनुष्यों को गौरक्षा के लिए तेजी से जीतोड़ प्रयत्न करना चाहिये, जिससे गोवध कतई बंद हो और गोधन की उतर्रोतर वृद्धि ही, इसमें सभी का सभी प्रकार से हित है। इसलिए कल्याणकामी मनुष्यों को मान, बड़ाई, प्रतिष्ठा, पदाभिमान, ऐश-आराम, भोग, स्वार्थ, दुर्गुण, दुराचार, दुर्व्यसन, आलस्य और प्रमाद आदि का त्याग करके निष्कामभाव से कर्तव्य समझकर भक्ति, ज्ञान, वैराग्य और सदाचार आदि के सेवन के लिए उत्साह और तत्परतापूर्वक प्राणपर्यन्त प्रयत्न करना चाहिये।