भगवान कृष्ण की प्यारी गायेँ (गऊ माता) का अपने प्यारे श्याम (कृष्ण) को पत्र हे मेरे प्यारे कान्हा आपसे मिले हुए वर्षोँ बीत गये जब तक आपके संरक्षण मेँ हम गाऐँ रहीँ हम पूरी तरह सुरक्षित थीँ आज मानव हमेँ बिना कारण के मार काट रहा है और दूध पीने की जगह मुझे ही काट कर खा रहा है! जब मरवाना ही था तो माँ का दर्जा (माँ के समान क्योँ बनाया) दिया। हे मेरे प्राणनाथ हे करूणानिधान आप मेरी रक्षा करो मैँ आपकी शरण मेँ हूँ। मैँ किसी को परेशान नहीँ करती थोडा सा चारा खाती हूँ और अमृत के समान दूध देती हूँ एक छोटी सी जगह मेँ बैठी रहती हूँ फिर भी लोगोँ को क्या कमी पड गयी कि वो मुझे मार कर खाने लगा ! आज मानव बडा स्वार्थी हो गया है मेरे बछडोँ तक को मेरा दूध नहीँ पीने देता। हे मेरे कन्हैया वापस आ जाईये या हमेँ अपने पास बुला लिजिए आप हमारे गौ वंश की रक्षा कीजिए प्रभु। हे प्रभु जब तक आप थे तब तक धर्म की परिभाषा दया, दान, परोपकार, न्याय, सम्मान जैसी थी लेकिन आज धर्म हिंसा और स्वार्थ मेँ बदल गयी है। हे करुणानिधान ! हे मुरलीमनोहर ! हे कृपाधारी ! हे मधुसूदन ! हे बाँकेबिहारी ! हे राधाबल्लभ ! हे गोपियोँ के प्यारे सखा ! हे मुकुटमणि ! रक्षा करो हम गाँऐँ आपकी शरण मेँ हैँ। हे नारायण ! हे वासुदेव ! हे अनंतरुप ! हे गोविँद ! हे पुरुषोत्तम ! हे जगत्पति ! हे केशव ! हे कृष्ण ! हे भगवान ! हे जनार्दन ! हे यादव ! हे योगवित्तम ! हमारी रक्षा करो ! हे अरिसूदन हमारी रक्षा करो ! हम गाऐँ आपकी शरण मेँ हैँ रक्षा करो प्रभु। ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ