नसीरुद्दीन के बड़े पीर की कथा।
                       नसीरुद्दीन नाम का एक युवक अपने अब्बा को बोलता, ‘अब्बाजान मुझे कुछ बनना है, कुछ हो कर दिखाना है..अब्बा ने कहा, ‘बेटे कुछ दिन धीरज रखो मेरे बुजुर्ग होने के दिन आ रहे है..एक दिन बुढ्ढा हो जाऊँगा..अब तुम को क्या बताऊ? एक दिन तो मैं कबरिस्थान में सोउंगा थोडा धीरज रखो ..फिर तो ये सारी जायदाद की मालकियत तुम्हारी ही है…’ बोले, ‘अब्बा मैं ऐसा क्यों सोचु की अब्बा बूढ़े हो  जाए, अब्बा कबरिस्थान में सो जाए..और मैं मालिक बनू ऐसा मैं नहीं सोचूंगा ..मुझे तो आप मेरा प्यारा गधा दे दो और कुछ खर्चे के रुपये दे दो…’ बार बार बेटे की भावना को देख कर अब्बा जान ने गधा और कुछ रुपये बेटे को दिएचल पडा नसीरुद्दीन…. जाते जाते कई सप्ताह बीत गए..गरमियों के दिन थे….काली हवा लगती ऊंट को और गधों को तो तुरंत मर जातेवो गधा मर गयाबेचारा नसरुद्दीन…. युवक थाबार बार गधे को आलिंगन करेअरे मेरे प्यारे यार दोस्त..क्यों रूठ गए..मेरे से कोई शरारत हुयी क्या मैंने तुझ पे ज्यादा बोझ डाला?….या तू मुझे उठा कर थक गया इसलिए मुझे छोड़ कर चला गया मुझे अकेला छोड़ कर….अरे जनाबे अलीउठ मेरे दोस्त..मेरे मित्रमेरे साथी…’ बड़े प्यार से खूब खूब उसे आलिंगन करेमुसलमानों में भी कई समझदार लोग होते है ..जैसे रहीम , रहियाना तैय्यब, रहिमत खानंखान, मंसूर जैसे और भी कई लोग है …. कुछ लोगो ने देखा की युवक हैमरे हुए गधे को बार बार आलिंगन करे, उस के बैक्टेरिया से इस युवक को कही जान गवानी ना पड़े…..और इस गधे की लाश सामने होगी तो बार बार उस को चिपकेगाइसलिए तो जल्दी जल्दी कर के उन्हों ने खड्डा कर के गधे की लाश को गाड दियाकिसी ने मुजाहिर बना दी..चादर भी चढ़ा दीकहानी कहेती है की लोग बोलने लगे, ‘अब तो तू खाना खा..नसरुद्दीन बोले, ‘मेरा जनाबे अली मुझे छोड़ कर चला गया….’ अब उस का मन बहेलाने के लिए किसी ने चादर चढ़ा दी ..किसी ने अगरबत्ती कर दीऐसे करते करते कोई हिन्दू कोई मुसलमान सब मिल के रहेनेवाले लोग थेउस को बहेलाते गएअच्छे लोगो की कमी नहीं है दुनिया मेंबुरे भी होते , अच्छे भी होतेउस का दिल बहेलाने के लिए किसी ने पैसे लगा दिए तो अच्छी मुजाहिर बन गयीदोस्तों ने कहा , ‘तू अब खाना पीना शुरू कर’… उस का दुःख भुलाने के लिए सब होता रहा..लोग आते जावे..कोई मजाक से चढ़ावे तो कोई यकीन से चढ़ावे….कोई चादर चढ़ावे तो कोई कुछ चढ़ावे..चढ़ावा चढने लगादिन बीते, सप्ताह और महीने बीतेबोले अब इस मुजाहिर का नाम क्या रखे? बोले कोई पैर वाला होता है तो उस को पीर बोलते, ये तो पैर वाला था..दोस्तों ने बोला इस का नाम रखते है बड़े पीर की मुजाहिर!यकीन की तो कमी नहीं है….यकीन माना श्रध्दा.. लेकिन श्रीकृष्ण कहेते की श्रध्दा के साथ तत्परता और बुध्दी योग की उपासना करोनहीं तो श्रध्दा कही मूर्ति में रुक जायेगी, कही पीर में रुक जायेगी तो कही बड़े पीर में रुक जायेगीतो फिर वहाँ ही लोग चक्कर काटते रहेतेकबीर जी ने कहा, पथ्थर पूजे हरी मिले तो मैं पुजू पहाड़!श्रध्दा को आगे बढाने के लिए कहा. तो मुजाहिर पर भीड़ होने लगी तो हलवाई की दूकान, चाय बीडी वाले की दूकान, ऐसे करते करते वहाँ रजाई तकिये किराए से देनेवाले की दूकान सराय बनते बनते साल में वो मुजाहिर बड़ी मस्जिद के रूप में लहेराने लगी
खुदा खैर करे!
बन्दा लेहेर करे !!

                     अब्बाजान को पता चला की अपनी आमदनी इतनी नहीं जीतनी बड़े पीर की होगीजाओ मिया ज़रा बात क्या है देख के आये- दिन का सफर है ..लेकिन देख कर आयेंगे तो अपन भी इधर करेंगे तो आमदनी बढ़ेगीदेखा तो बड़ा अच्छा लगा..लेटेस्ट व्यवस्था थीअब्बाजान ने कहा की इस संस्था का जो मुखिया है उस मुल्लाजी से मुझे मिलाओकुछ भी करो..मैं मिले बगैर नहीं जाउंगा..मैं आप की शुकर गुजारी करूंगाजब मुलाक़ात के कमरे में ले गए तो अब्बा को एक झटका लगा! बोले , ‘इमाम साब गुस्ताखी माफ होआप की शकल देख कर मुझे अपने बेटे नसरुद्दीन की याद आ गयी….वो घर से गया है.. साल हो गए..मैं कैसे कहू? लेकिन आप हूब हु मेरे बेटे जैसे दिखते है…’ नसीरुद्दीन जोर जोर से हँसने लगा, ‘अब्बाजान खा गये न धोका ? मैं वो ही नसीरुद्दीन हूँ..उस समय गाल ज़रा दबे हुए थे, यहाँ जरा माल मिलता तो चेहरा ज़रा भर गया..बाकी हूँ मैं आप ही का बेटा!बोले, ‘फिर ये सब क्या है?’ नसीरुद्दीन कहे, ‘वो जनाबे अली की रहेमत है! मेरा प्यारा गधा! उसी की ये सारी करामत है!!अब्बा हंसा. बोले अब्बा क्यों हँसे? अब्बा बोले मैंने भी ऐसे ही पैर वाले को सुला कर पीर नाम रखा था..मुजाहिर बनायी थीऔर तुम ने पैर वाले को सुला कर बड़ा पीर नाम रखा! दोनों खुशियाँ मनाते है लेकिन रहियाना तैय्यब से पूछो, रहिमन खानंखान से पूछो, मंसूर से पूछोतो बोलेंगे की भूल कर भी उन खुशियों से मत खेलो जिन के पीछे लगी हो गम की कतारें लोगो की श्रध्दा है, उस श्रध्दा का फायदा उठा कर उन पैसो से ऐश करने की बजाय पसीने के पैसे अच्छे हैश्रध्दा के साथ तत्परता होनी चाहिए..और प्रजा में बुध्दियोग की उपासना होनी चाहिए पैर वाले को तो पता ही नहीं मैं पीर हूँ….खोदेंगे तो क्या निकलेगा? लोगों के जीवन में यकीन तो है, लेकिन लोगो के जीवन में उस अल्ल्लाह के स्वरुप का- ईश्वर के स्वरुप का ज्ञान भी होना चाहिए..तत्परता भी होनी चाहिए..राग और द्वेष, ईर्षा और घृणा छोड़ कर अपने अंतरात्मा में फिर उसे God कहे दो..ईश्वर कहे दोअल्ल्लाह कहे दोउस में थोड़ी विश्रांति पाए तो मानव जात का मंगल होता हैॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ