ईश्वर के मार्ग पर चलनेवाले सौभाग्यशाली भक्तों को ये छ: बातें जीवन में अपना लेनी चाहिए: 1) ईश्वर को अपना मानो । ‘ईश्वर मेरा है । मैं ईश्वर का हूँ।’ 2) जप, ध्यान, पूजा, सेवा खूब प्रेम से करो। 3) जप, ध्यान, भजन, साधना को जितना हो सके उतना गुप्त रखो। 4) जीवन को ऐसा बनाओ कि लोगों में आपकी माँग हुआ करे। उन्हें आपकी अनुपस्थिति चुभे। कार्य में कुशलता और चतुराई बढ़ाये । प्रत्येक क्रिया कलाप, बोल चाल सुचारु रुप से करें। कम समय में, कम खर्च में सुन्दर कार्य करें। अपनी आजीविका के लिए, जीवननिर्वाह के लिए जो कार्य करें उसे कुशलतापूर्वक करें, रसपूर्वक करें। इससे शक्तियों का विकास होगा । फिर वह कार्य भले ही नौकरी हो। कुशलतापूर्वक करने से कोई विशेष बाह्म लाभ न होता हो फिर भी इससे आपकी योग्यता बढ़ेगी, यही आपकी पूँजी बन जाएगी । नौकरी चली जाए तो भी यह पूँजी आपसे कोई छीन नहीं सकता । नौकरी भी इस प्रकार करो कि स्वामी प्रसन्न हो जाये । यह सब रुपयों पैसों के लिए, मान बड़ाई के लिए, वाहवाही के लिए नहीं परंतु अपने अंत : करण को निर्मल करने के लिए करें जिससे परमात्मा के लिए आपका प्रेम बढ़े । ईश्वरानुराग बढ़ाने के लिए ही प्रेम से सेवा करें, उत्साह से काम धंधा करें। 5) व्यक्तिगत खर्च कम करें। जीवन में संतोष लाएँ। 6) सदैव श्रेष्ठ कार्य में लगे रहें। समय बहुत ही मूल्यवान् है। समय के बराबर मूल्यवान् अन्य कोई वस्तु नहीं है। समय देने से सब मिलता है परंतु सब कुछ देने से भी समय नहीं मिलता । धन तिजोरी में संग्रहीत कर सकते हैं परंतु समय तिजोरी में नहीं संजोया जा सकता । ऐसे अमुल्य समय को श्रेष्ठ कार्यों में लगाकर सार्थक करें। सबसे श्रेष्ठ कार्य है सत्पुरुषों का संग, सत्संग ।