मानसिकता को विकृत करती है टीवी। बच्चे हो या बड़े सभी मनोरंजन के लिए टीवी की अधीनता खुशी से स्वीकार करते है। परंतु इसके दुष्परिणामों को लोग नजर अंदाज कर जाते है। सर्वेक्षणों के अनुसार आज चैनलों द्वारा दिखाये जा रहे हिंसा, चोरी, लूटपाट, अश्लीलता भरे दृश्य मनोरंजन के नाम पर लोगों की मानसिकता को विकृत कर रहे है। हार्वर्ड स्कूल ऑफ़ पब्लिक हेल्थ के एक अध्ययन के अनुसार अधिक टीवी देखने वाले बच्चों को टाइप टू मधुमेह का २०%, ह्रदयरोग का १५% तथा समय से पूर्व मृत्यु का १३% तक खतरा बढ़ जाता है। अमेरिकन एकेडमी ऑफ़ पीडियाट्रिक्स ने भी स्वीकारा है कि बच्चे गुणवत्ता का खयाल रखते हुए थोडा समय ही कभी-कभार टीवी देख सकते हैं। जिससे सुझबुझ बढे, संयम-सज्जनता बढे… ऐसे कार्यक्रम देख सकते हैँ।स्वास्थ पर दुष्प्रभाव वाशिंगटन युनिवर्सिटी द्वारा किये गये शोधों के अनुसार टीवी देखने वाले छात्रों की तार्किक शक्ति व याददाश्त कम हो जाती है। माँट्रियल विश्वविद्यालय और जस्टिन मदर एंड चाइल्ड हास्पिटल के एक संयुक्त अध्ययन के मुताबिक घंटो तक टीवी देखने से बच्चों को मोटापा व मांसपेशियों की कमजोरी जैसे रोग होने की सम्भावना रहती है। सिडनी विश्वविद्यालय के शोधानुसार टीवी देखने वाले बच्चों के नेत्रों की रक्त-कोशिकाएँ सिकुड़ती जाती है। यह ह्रदयरोग बा उच्च रक्तचाप की पूर्व-चेतावनी है। बच्चों को बनाता है हिंसक व संवेदनहीन टीवी देखने से केवल शारीरिक विकृतियाँ ही पैदा नही होती बल्कि यह बच्चों के नैतिक व चारित्रिक पतन का एक बड़ा कारण भी है। यूनिवर्सिटी ऑफ़ ओटागो के अनुसार ज्यादा समय तक टीवी देखने से बच्चों का व्यवहार धीरे-धीरे चिडचिडा और हिंसक होने लगता है। उनमे नकारात्मक भावनाओं का ज्यादा विकास होने लगता है। वयस्क होने पर ऐसे बच्चों में समाज विरोधी लक्षण तथा आपराधिक भावनाओं का विकास ज्यादा होता है। इस टीवी रुपी पूतना ने मासूम बच्चों के जीवन में जहर घोल दिया है। आज बच्चे शारीरिक व मानसिक कसरत वाले खेल खेलने की जगह टीवी से घंटो चिपके रहते है। बच्चे समझाने से ज्यादा देखकर सीखते है। अत: पहले माता-पिता सत्संग, स्वाध्याय करें। यदि सत्संग-स्थल या आश्रम नजदीक हो तो स्वयं के साथ बच्चों को भी दर्शन-सत्संग के लिए ले जायें। आश्रम के बाल मंडल, छात्र मंडल या कन्या मंडल का लाभ बच्चों को दिलाये। उन्हें स्वदेशी खेल खेलने के लिए प्रोत्साहित करें। बच्चों को पढने हेतु संतो-महापुरुषों का प्रेरणादायी सत्साहित्य लाकर दें व उस पर उनसे चर्चा करें। इस प्रकार बच्चों का मन सुसंस्कारों व सत्प्रवृत्तियों में रम जाय ऐसा माहोल पैदा करें। भोजन के समय जैसे हमारे भाव व विचार होते हैं, वैसा हमारा मन बनता है। इस समय टीवी सीरियल आदि देखने से कुसंस्कार गहरे होते हैं तथा पाचन संबंधी व अन्य स्वास्थ्य की तकलीफें होती है। रात्रि ९ बजे के बाद टीवी देखने से नेत्रज्योति की कमजोरी, मानसिक व शारीरिक थकान आदि कई प्रकार की समस्याएँ होती है। ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ