संकल्प और पुरुषार्थ का
समन्वय।
कोई वस्तु स्थिति ऐसी नहीं
है जो संकल्पबल और पुरुषार्थ के द्वारा प्राप्त न हो सके। स्कूल से भागा हुआ
वेलिंग्टन नाम का एक किशोर लंडन की गलियों से गुजरता हुआ एक सरकारी उद्यान में जा
पहुँचा। इतने में ऊँचे टावर की घंटी बजीः ‘टन…टन…टन…!’ वह किशोर टावर के उस नाद के साथ ताल मिलाकर गाने लगाः ‘टन…टन…वेलिंग्टन…. लोर्ड मेयर ऑफ लंडन…!’ स्वाभाविक मस्ती में ही गा
रहा था। अचानक उसे ख्याल आया किः ‘मैं गलियों में भटकता, अनजान, अपरिचित लड़का इतने बड़े
लंडन शहर का मेयर? How is it possible? यह कैसे संभव है? तुरन्त उसके आन्तर मन में से दृढ़ता का सुर सुनाई पड़ाः ‘Why not?’ क्यों नहीं? जंगल की झाड़ियों में जन्म
लेने वाला लिंकन यदि अमेरिका का राष्ट्रप्रमुख बन सकता है तो मैं इस छोटे से लंडन
शहर का मेयर क्यों नहीं बन सकता? ज़रूर बन सकता हूँ। मेयर होने के लिए जो सदगुण चाहिए, जो शक्ति चाहिए, जो योग्यता चाहिए, जो कार्यक्षमता चाहिए, जो परदुःखभंजनता चाहिए वह
सब मैं विकसित करूँगा। ये सब गुण मेरे जीवन में आत्मसात् करूँगा और मेयर बनूँगा।’ उसने संकल्प और पुरुषार्थ
का समन्वय किया। आखिर वह लंडन का मेयर होकर ही रहा। वेलिंग्टन लंडन का मेयर बन सका, तीव्र संकल्प के बल पर।
उसके संकल्प की शक्ति उसे किसी भी परिस्थिति के योग्य बना सके ऐसी थी। यदि उसके
टावर के नाद में टन…टन…. वेलिंग्टन…. एन्जल ऑफ गॉड (ईश्वर का दूत).. सुनाई दिया होता तो वह केवल लंडन का
मेयर ही नहीं,
पूरे विश्व का प्रेमपूर्ण
बिनहरीफ मेयर बन गया होता। मन एक महान कल्पवृक्ष है इस बात का ख्याल अवश्य रखना।ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
0 टिप्पणियाँ