दीपावली
दीपोँ का त्यौहार। दीपावली शब्द दीप एवं आवली की संधि से बना है । आवली अर्थात
पंक्ति । इस प्रकार दीपावली शब्द का अर्थ है, दीपोंकी पंक्ति
। दीपावली के समय सर्वत्र दीप जलाए जाते हैं, इसीलिए इस
त्यौहार का नाम दीपावली है । भारतवर्षमें मनाये जानेवाले सभी त्यौहारोमें
दीपावलीका सामाजिक और धार्मिक दोनों दृष्टियोंसे अत्यधिक महत्त्व है । इसे
दीपोत्सव भी कहते हैं । `तमसो मा ज्योतिर्गमय ।’ अर्थात
`अंधेरेसे ज्योति अर्थात प्रकाशकी ओर जाइए’ यह
उपनिषदोंकी आज्ञा है । अपने घरमें सदैव लक्ष्मीका वास रहे, ज्ञानका
प्रकाश रहे, इसलिए हरकोई बडे आनंदसे दीपोत्सव मनाता है ।
प्रभु श्रीराम चौदह वर्षका वनवास समाप्त कर अयोध्या लौटे, उस
समय प्रजाने दीपोत्सव मनाया । तबसे प्रारंभ हुई दीपावली ! इसे उचित पद्धतिसे मनाकर
आप सभीका आनंद द्विगुणित हो, यह शुभकामना ! दीपावली का पूर्वायोजन
दीपावली आने से पूर्व ही लोग अपने घर-द्वार की स्वच्छता पर ध्यान देते हैं । घर का
कूडा-करकट साफ करते हैं । घरमें टूटी-फूटी वस्तुओंको ठीक करवाकर, घरकी
रंगाई करवाते हैं । इससे उस स्थानकी न केवल आयु ही बढ जाती है, अपितु
आकर्षण भी बढ जाता है । वर्षात्र+तुमें फैली अस्वच्छता का भी परिमार्जन हो जाता है
। स्वच्छताके साथ ही घर के सभी सदस्य नये कपडे सिलवाते हैं । विविध मिठाइयाँ भी
बनायी जाती हैं । ब्रह्मपुराण में लिखा है कि, दीपावली को श्री
लक्ष्मी सद्गृहस्थों के घर में विचरण करती हैं । घर को सब प्रकार से स्वच्छ, शुद्ध
और सुशोभित करके दीपावली मनाने से श्री लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और वहाँ
स्थायीरूप से निवास करती हैं। दीपावली के शुभ पर्वपर विशेष रूपसे रंगोली बनानेकी
प्रथा है। रंगोलीके दो उद्देश्य हैं – सौंदर्य का
साक्षात्कार एवं मंगलता की सिद्धि । रंगोली देवताओंके स्वागत का प्रतीक है ।
रंगोलीसे सजाए आंगन को देखकर देवतां प्रसन्न होते हैं । इसी कारण दिवाली में
प्रतिदिन देवताओं के तत्त्व आकृष्ट करनेवाली रंगोलियां बनानी चाहिए और उस माध्यम
से देवतातत्त्व का लाभ प्राप्त करना चाहिए । रंगोली बनानेके साथही दीपावली में
प्रतिदिन की जानेवाली महत्त्वपूर्ण कृति है, तेलके दीप जलाना
दीपावली में प्रतिदिन सायंकाल में देवता और तुलसीके समक्ष, साथही
द्वारपर एवं आंगन में विविध स्थानोंपर तेलके दीप जलाए जाते हैं । यह भी देवता तथा
अतिथियोंका स्वागत करनेका प्रतीक है । आजकल तेलके दीपके स्थानपर मोमके दीप लगाए
जाते हैं अथवा कुछ स्थानोंपर बिजलीके दीप भी लगाते हैं । परंतु शास्त्रके अनुसार
तेलके दीप लगानाही उचित एवं लाभदायक है । तेलका दीप एक मीटरतककी सात्त्विक तरंगें
खींच सकता है । इसके विपरीत मोमका दीप केवल रज-तमकणोंका प्रक्षेपण करता है, जबकि
बिजलीका दीप वृत्तिको बहिर्मुख बनाता है । इसलिए दीपोंकी संख्या अल्प ही क्यों न
हो, तो भी तेलके दीपकी ही पंक्ति लगाएं। दीपावलीके अवसरपर उत्तर भारतके
कुछ स्थानों पर बच्चे आंगन में मिट्टी का घरौंदा बनाते हैं, जिसे
कहीं पर `हटरी’, तो कहीं पर `घरकुंडा’के
नामसे जानते हैं । दीपसे सजाकर, इसमें खीलें, बताशे, मिट्ठाइयां
एवं मिट्टीके खिलौने रखते हैं । महाराष्ट्रमें बच्चे दुर्ग बनाते हैं तथा उसपर
छत्रपति शिवाजी महाराज व उनके सैनिकोंके चित्र रखते हैं । इस प्रकार त्यौहारोंके
माध्यम से पराक्रम तथा धर्माभिमान की वृद्धि कर बच्चों में राष्ट्र एवं धर्मके
प्रति कुछ नवनिर्माण की वृत्तिका पोषण किया जाता है । दीपावली शुभसंदेश देनेवाला
एक महान पर्व है । दीपावली के मंगल पर्वपर लोग अपने सगे-संबंधियों व शुभचिंतकों को, आनंदमय
दीपावली की शुभकामनाएं देते हैं । इसके लिए वे शुभकामना पत्र भेजते हैं तथा कुछ लोग
उपहार भी देते हैं । ये साधन जितने सात्त्विक होंगे, उतना ही अधिक
लाभ, देनेवाले एवं प्राप्त करनेवालेको होगा । शुभकामना पत्रोंके संदेश एवं
उपहार, यदि धर्मशिक्षा, धर्मजागृति व धर्माचरणसे संबंधित हों, तो
प्राप्त करनेवालेको इस दिशामें कुछ करनेकी प्रेरणा भी मिलती है । हिंदु जनजागृति
समिति और सनातन संस्थाद्वारा इसप्रकारके शुभेच्छापत्र बनाए जाते हैं । दीपावली पर
छोटे-बडे, हर आयुवर्गके लोग पटाखे जलाकर आनंद व्यक्त करते
हैं; परंतु क्या वास्तवमें पटाखोंका ऐसा उपयोग उचित है ? पटाखे
जलानेका अर्थ है, बारूदके माध्यमसे उत्सवकी शोभा बढानेका एक
प्रयास ! इसकी तुलनामें, उससे होनेवाली हानि कहीं अधिक है ।
पटाखे जलानेसे होनेवाले प्रदूषणके कारण आरोग्यकी हानि होनेके साथही आर्थिक हानि भी
होती है । आजकल पटाखोंपर देवता, राष्ट्रपुरुषों के चित्र बने होते हैं, उदा.
लक्ष्मी छाप बम, कृष्णछाप फुलझडी, नेताजी छाप
पटाखा आदि । ऐसे पटाखे जलाकर देवताओंके चित्रोंके चिथडे कर, हम
अपनी ही आस्थाको पैरोंतले रौंदते हैं । इससे हमारी आध्यात्मिक हानि भी होती है ।
सबसे महत्त्वपूर्ण बात तो यह है, कि पटाखोंका कोई धर्मशास्त्रीय महत्त्व
नहीं है । इसलिए पटाखें न जलाइए । हिंदु जनजागृति समिति, सनातन
संस्था जैसे अन्य समविचारी संगठनोंके साथ सन २००० से पटाखोंके कारण होनेवाली
हानिको रोकने हेतु जनजागृति अभियान चला रहीं हैं । आप भी इसमें सहभागी हो जाइए।
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