यदि आप किसी को एक कौडी भी न दें, कुछ भी शारीरिक सेवा न करे, केवल प्यार से, सच्चे और साफ दिल से उसके प्रति प्रसन्नता भरी मुस्कान से हँस दें, तो उसका प्रफुल्लित होना, समुन्नत होना और ऊपर उठना अनिवार्य है। इतने से आपसे मिलने वाले व्यक्ति की बड़ी सेवा हो जाती है। किसी को पवित्र मुस्कान देना, मोतियों का खजाना देने से कहीं बढ़कर है। ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ आसक्ति कभी भी न ख़त्म होनेवाला पाश है, लेकिन वह आसक्ति अगर संत-महापुरुषके प्रति हो जाए तो मुक्तिदायिनी है। ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ एक बोलता है मैं अग्रवाल हूँ, दूसरा बोलता है मैं जैनी हूँ, तीसरा बोलता है मैं हिन्दू हूँ, चौथा बोलता है मैं मुसलमान हूँ, पाँचवाँ बोलता है मैं भील हूँ, छठा बोलता है मैं आर्य समाजी हूँ, सातवाँ बोलता है मैं फलाना हूँ। अरे भाई ! 'मैं.... मैं.... मैं..'. ऐसा जो भीतर से हो रहा है उसमें सबमें एक-का-एक राम रम रहा है। तुमने तो सुन-सुनकर मान्यता बना ली है कि मैं फलाना भाई हूँ....। 'मैं फलानी माई हूँ.... मेरा नाम कांता... शांता.... ऊर्मिला... है' यह भी प्रतीति है और 'मेरा नाम छगन..... मगन.... मोहन है... मैं अग्रवाल हूँ...' यह भी प्रतीति है। प्राप्ति तुम्हारी आत्मा है। आत्मा सो परमात्मा। मिलता तो परमात्मा है। बाकी जो मिलता है, सब धोखा मिलता है। 'मैं भील हूँ... मैं हिन्दू हूँ..... मैं गुजराती हूँ... मैं सिन्धी हूँ....' ये सब प्रतीति मात्र हैं, धोखा है। यह स्मृति जिसकी सत्ता से जागती है वह सर्वसत्ताधीश परमात्मा ही सार है, और सब खिलवाड़ है। इस खिलवाड़ को खिलवाड़ समझकर खेलो लेकिन इसको सच्चा समझकर उलझो मत। ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ चिड़िया जब जीवित रहती है तब वो चिंटी को खाती है। चिड़िया जब मर जाती है तब चींटिया उसको खा जाती है। इसलिए इस बात का ध्यान रखो की समय और स्तिथी कभी भी बदल सकते है इसलिए कभी किसी का अपमान मत करो। कभी किसी को कम मत आंको। तुम शक्तिशाली हो सकते हो पर समय तुमसे भी शक्तिशाली है। एक पेड़ से लाखों माचिस की तीलिया बनाई जा सकती है पर एक माचिस की तिल्ली से लाखो पेड़ भी जल सकते है। मत कर रे भाया गरव गुमान गुलाबी रंग उड़ी जावेलो। मत कर रे भाया गरव गुमान जवानीरो रंग उड़ी जावेलो। पतंगी रंग उड़ी जावेलो… मत कर रे गरव ॥ धन रे दौलत थारा माल खजाना रे… छोड़ी जावेलो रे पलमां उड़ी जावेलो॥ पाछो नहीं आवेलो… मत कर रे गरव। मत कर रे भाया गरव गुमान गुलाबी रंग उड़ी जावेलो। ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ बाहर से फकीरी का वेश धारण करने मात्र से फ़क़ीर नहीं बन जाता क्यों कि फकीरी अर्थात मन को जितना। जब मनुष्य अपना मन बदल डाले, अहंभाव–परमात्मा से भिन्नता का भाव बिल्कुल ही दूर कर डाले तब समझे कि साहेब परमात्मा उसके साथी बने है, उसे परमात्मा मिले है। जहाँ भगवन राम के नाम का गुणगान नहीं होता, जहाँ भगवान को याद ही नहीं किया जाता है, उस स्थान पर क्षण भर भी मत ठहरे। उस देश को छोड़ ही दे, वहाँ पानी भी न पिएँ। सम्राट के साथ राज्य करना भी बुरा है न जाने कब रुला दे। संत के साथ भीख माँगकर रहना भी अच्छा है न जाने कब मिला दे।। ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ सरलता, स्नेह, साहस, धैर्य, उत्साह एवं तत्परता जैसे गुणों से सुसज्जित तथा दृष्टि को 'बहुजनहिताय....बहुजनसुखाय....'बनाकर सबमें सर्वेश्वर को निहारने से ही आप महान बन सकोगे। ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ ज्ञान ही एक ऐसा अक्षय तत्व है, जो कभी, किसी भी अवस्था और किसी भी काल में साथ नहीं छोड़ता...!!! ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ सुखी होने का एक उपाय है की जो जरुरी है कर डालो;जो बिन जरुरी है उसको छोड़ दो। और दूसरा एक तरीका है जो होने वाला है अवस्य होकर रहेगा और जो नहीं होने वाला है वह नहीं होगा; बस क्या है! चलो मजे में रहो।" व्यक्ति जितना शांतात्मा, उतना ही महान और जितना अशांतात्मा उतना ही तुच्छात्मा होता है। ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ जो अपने आदर्श से नहीं हटता, धैर्य और सहनशीलता को अपने चरित्र का भूषण बनाता है, उसके लिए शाप भी वरदान बन जाता है। ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ ‪‬‪‬‪‬‪‬तुम हीन नहीँ हो। तुम सर्व हो; पूज्य भगवान हो। तुम हीन नहीँ हो, निर्बल नहीँ हो, सर्वशक्तिमान हो। भगवान का अनंत बल तुम्हारी सहायता के लिए प्रस्तुत है। तुम बिचार करो और हीनता को, मिथ्या संस्कारोँ को मार कर महान बन जाओ। ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ मनुष्य को बस्तु गुलाम नहीँ बनाती, उसकी इच्छा ही गुलाम बनाती है और गले मेँ संसार का फंदा डाल कर जीवनभर मदारी के बंदर जैसा नचाती रहती है। ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ बीता हुआ समय लौटकर नहीँ आता। जीवन का एक एक क्षण आत्मोलब्धि, भगवत्प्राप्ति, मुक्ति के साधनोँ मेँ लगाओ। हमेँ जो इंद्रियाँ, मन, बुध्दि प्राप्त है, जो सुबिधा, अनुकूलता प्राप्त है उसका उपयोग वासना-विलास का परित्याग कर भगवान से प्रेम करने मेँ करो। ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ भगवान के भरोसे रहने पर किसी भी प्रकार की चिँता-परेशानी टिक नहीँ सकती। तुलसी भरोसे राम के, निश्चिँत होय के सोय। अनहोनी होनी नहीँ, होनी हो सो होय॥ ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ धर्म और देश के हित मेँ जिसने अपना पूरा जीवन लगा दिया। इस दुनिया मेँ उसी मनुष्य ने नर तन सार्थक किया। ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ तन बजन धन करीके जेता, सेवा करत मोद जुत तेता। भगवान की सेवा तुल्य जेहा, कोउ बात अधिक ही तेहा।। ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ ईश्वर प्राप्ति ही सर्वोपरि है। उसी में तत्परता से लगो। ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ निःस्वार्थ ईश्वर सेवा व समाज सेवा से, ईश्वर के दैवी कार्य में सहभागी होने से, तुम्हारा देवत्व जगेगा। ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ प्रत्येक क्रिया, प्रत्येक व्यवहार, प्रत्येक प्राणी ब्रह्मस्वरुप दिखे यही सहज समाधि है। ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ आत्मज्ञानी की उपस्थिती धरती पर स्वार्गिक सुख का अनुभव कराती है। ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ सदा यही प्रयत्न करो कि जिवन मेँ से सत्संग न छूटे, सदगुरु का सानिध्य न छूटे। ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ सब दुखोँ से मुक्ति का एक मात्र उपाय है सदगुरुदेव के सानिध्य से आत्मदेव का ज्ञान। ईश्वर प्राप्ति ही सर्वोपरि है। उसी में तत्परता से लगो। ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ निःस्वार्थ ईश्वर सेवा व समाज सेवा से, ईश्वर के दैवी कार्य में सहभागी होने से, तुम्हारा देवत्व जगेगा। ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ बड़े धनभागी हैं वे सत् -शिष्य जो तितिक्षाओं को सहने के बाद भी अपने सद्गुरु के ज्ञान और भारतीय संस्कृति के दिव्य कणों को दूर-दूर तक फैलाकर मानव-मन पर व्याप्त अंधकार को नष्ट करते रहते हैं । ऐसे सत्-शिष्यों को शास्त्रों में पृथ्वी पर के देव कहा जाता है। ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ