सर्वोन्नति का राजमार्ग : गोपालन (गोपाष्टमी) ।



वर्ष में जिस दिन गायों की पूजा-अर्चना आदि की जाती है वह दिन भारत में
'गोपाष्टमी' के नाम से मनाया जाता है ।
गोपाष्टमी का इतिहास
द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को कार्तिक शुक्ल
प्रतिपदा से लेकर सप्तमी तक गाय व गोप-गोपियों की रक्षा के लिए अपनी एक
अंगुली पर धारण किया था । उस समय गोप-गोपिकाओं ने अपनी लाठियों का भी
टेका दे रखा था, जिसका उन्हें अहंकार हो गया कि हम लोगों ने ही गोवर्धन
को धारण कर रखा है । उनके अहं को दूर करने के लिए भगवान ने अपनी अंगुली
थोड़ी तिरछी की तो पर्वत नीचे आने लगा। तब सभीने शरणागति की पुकार लगायी
और भगवान ने पर्वत को फिर से थाम लिया। उधर देवराज इन्द्र को भी अहंकार
था कि मेरे प्रलयकारी मेघों की प्रचंड बौछारों को मानव श्रीकृष्ण नहीं
झेल पायेंगे परंतु जब लगातार 7 दिनों तक प्रलयकारी वर्षा के बाद भी
श्रीकृष्ण अडिग रहे, तब आठवें दिन इन्द्र की आँखें खुलीं और उन्होंने
भगवान श्रीकृष्ण की शरणागति स्वीकारी । वह कार्तिक शुक्ल अष्टमी का दिन
था । उस दिन से गोपाष्टमी का उत्सव मनाया जाने लगा ।
इस प्रकार गोपाष्टमी यह संदेश देती है कि ब्रह्मांड के सब काम चिन्मय
भगवत्सत्ता से ही सहज में हो रहे हैं परंतु मनुष्य अहंकारवश सोचता है कि
हमारे बल से ही सब चलता है तो इस भ्रम को दूर करने के लिए परमात्मा दुःख,
परेशानी भेजते हैं ताकि मनुष्य सावधान होकर इस अहंकार से छूट जाय ।
गोपाष्टमी का महत्त्व
इस दिन प्रातःकाल गायों को स्नान कराके गंध-पुष्पादि से उनका पूजन किया
जाता है । गायों को गोग्रास देकर उनकी परिक्रमा करें तथा थोड़ी दूर तक
उनके साथ जाने से सब प्रकार के अभीष्ट की सिद्धि होती है । सायंकाल गायें
चरकर जब वापस आयें तो उनका आतिथ्य, अभिवादन, पूजन करके उन्हें कुछ
खिलायें और उनकी चरणरज को मस्तक पर धारण करें, इससे सौभाग्य की वृद्धि
होती है । भारतवर्ष में गोपाष्टमी का उत्सव बड़े उल्लास से मनाया जाता है
। इस दिन गौ कीर्तन-यात्राएँ निकाली जाती हैं । यह घर-घर व गाँव-गाँव में
मनाया जानेवाला उत्सव है । गोपाष्टमी के दिन गौ-सेवा, गौ-रक्षा से
संबंधित गौ-हत्या निवारण आदि विषयों पर चर्चासत्रों का आयोजन करना चाहिए

विश्व के लिए वरदानरूप : गोपालन
देशी गाय का दूध, दही, घी, गोबर व गोमूत्र सम्पूर्ण मानव-जाति के लिए
वरदानरूप हैं । दूध स्मरणशक्तिवर्धक, स्फूर्तिवर्धक, विटामिन्स और
रोगप्रतिकारक शक्ति से भरपूर है । घी ओज-तेज प्रदान करता है । गोमूत्र कफ
व वायु के रोग, पेट व यकृत (लीवर) आदि के रोग, जोड़ों के दर्द, चर्मरोग
आदि सभी रोगों के लिए एक उत्तम औषधि है । गाय के गोबर में कृमिनाशक शक्ति
है । सकता है । ये हमारे पाप-ताप भी दूर करते हैं । देशी गाय के दर्शन
एवं स्पर्श से पवित्रता आती है, पापों का नाश होता है । गोधूलि (गाय की
चरणरज) का तिलक करने से भाग्य की रेखाएँ बदल जाती हैं । 'स्कंद पुराण'
में गौ- माता में सर्व तीर्थों और सभी देवताओं का निवास बताया गया है ।
स्वकल्याण चाहनेवाले गृहस्थों को गौ-सेवा अवश्य करनी चाहिए क्योंकि
गौ-सेवक को धन-सम्पत्ति, आरोग्य, संतान तथा मनुष्य-जीवन को सुखकर
बनानेवाले सम्पूर्ण साधन सहज ही प्राप्त हो जाते हैं । विशेष : ये सभी
लाभ देशी गाय से ही प्राप्त होते हैं, जर्सी व होल्सटीन से नहीं ।
पंचामृत व पंचगव्य का प्रयोग करके असाध्य रोगों से बचा जा
किसानों के लिए संदेश
खेती से गाय पुष्ट होती है और गाय के गोबर व गोमूत्र से खेती पुष्ट होती
है । विदेशी खाद से कुछ वर्षों बाद जमीन उपजाऊ नहीं रहती । विदेशों में
तो खाद से जमीन खराब हो गयी है और वे लोग मुंबई से जहाजों में गोबर लादकर
ले जा रहे हैं, जिससे गोबर से जमीन ठीक हो जाय । गोबर-खाद किसानों को
सस्ते में व आसानी से उपलब्ध होती है । गोझरण एक सुरक्षित, फसलों को
नुकसान न पहुँचानेवाला कीटनाशक है । गाँव में गोबर गैस प्लांट लगाकर वहाँ
ईंधन वबिजली, का फायदा लिया जाता है ।खेती की पुष्टि जितनी गाय-बैलों से
होती है, उतनी टैक्टरों से नहीं होती । जब टैक्टर चलता है तो जीव-जंतुओं
की बड़ी हत्या होती है व पाला, घास, बुड़ेसी, गँठिया आदि की जड़ें उखड़
जाती हैं । अतः समृद्ध खेती के लिए किसानों को बैल व गायों का पालन करना
चाहिए, हत्यारों के हाथ में उन्हें बेचना नहीं चाहिए । गायें दूध न देती
हों तो भी वे परम उपयोगी हैं । दूध न देनेवाली गायें अपने गोझरण व गोबर
से ही अपने आहार की व्यवस्था कर लेती हैं । उनका पालन-पोषण करने से हमें
आध्यात्मिक, आर्थिक व स्वास्थ्यलाभ होता ही है ।
स्वास्थ्य-लाभ
व्यक्ति स्वास्थ्य के लिए लाखों-लाखों रुपये खर्च करता है, कहाँ-कहाँ
जाता है फिर भी बीमारियों से छुटकारा नहीं पाता । इसका उपाय बताते हुए
पूज्य संत श्री आशारामजी बापू कहते हैं : ''गाय घर पर होती है न, तो उसके
गोबर, उसके गोझरण का लाभ तो मिलता ही है, साथ ही गाय के रोमकूपों से जो
तरंगें निकलती हैं, वे स्वास्थ्यप्रद होती हैं । कोई बीमार आदमी हो,
डॉक्टर बोले, 'यह नहीं बचेगा' तो वह गाय को अपने हाथ से कुछ खिलाये और
गाय की पीठ पर हाथ घुमाये तो गाय की प्रसन्नता की तरंगें हाथों की
अंगुलियों से अंदर आयेंगी और वह आदमी तंदुरुस्त हो जायेगा; दो-चार महीने
लगते हैं लेकिन असाध्य रोग भी गाय की प्रसन्नता से मिट जाते हैं ।''
जीवमात्र के परम हितैषी गौपालक बापूजी गायों का विशेष खयाल रखते हैं ।
उनके मार्गदर्शन में भारतभर में कई गौशालाएँ चलती हैं और वहाँ अधिकतर ऐसी
गायें हैं जो दूध न देने के कारण अनुपयोगी मानकर कत्लखाने ले जायी जा रही
थीं । पूज्य बापूजी के द्वारा वर्षभर गायों के लिए कुछ-न-कुछ सेवाकार्य
चलते ही रहते हैं तथा गौ-सेवा प्रेरणा के उपदेश उनके प्रवचनों का अभिन्न
अंग हैं । बापूजी के निर्देशानुसार गोपाष्टमी व अन्य पर्वों पर गाँवों
में घर-घर जाकर गायों को उनका प्रिय आहार खिलाया जाता है।
इतना ही नहीं, बापूजी समय-समय पर विभिन्न गौशालाओं में जाकर अपने हाथों
से गायों को खिलाते हैं, करते हैं। गौ-पालकों को मार्गदर्शन देते हैं,
उनका उत्साह बढ़ाकर उन्हें विभिन्न प्रकार से सहयोग देते हैं। महाराजश्री
द्वारा चलाया गया यह गौ-रक्षा एवं गौ-संवर्धन अभियान एक दिन देश के
अर्थतंत्र, सामाजिक स्वास्थ्य-समृद्धि तथा व्यक्तिगत उत्थान की सुदृढ़
रीढ़ अवश्य बनेगा ।