विश्व में अबतक हुए युद्धों में जितना रक्तपात नहीं हुआ होगा जितना धर्म-परिवर्तन के कारण हुआ

                                  "मजहब नहीं सिखाता, आपस मे बैर रखना", जबकि तथ्य यह है कि पिछले पंद्रह सौ वर्षों मे विश्व मे जितना खून मजहब के नाम पर बहा है, उसकी कोई तुलना ही नहीं है।
                                 हिन्दुत्व ही क्यूँ ? पिछले साठ वर्षों से स्कूलों मे जाने वाले हर बालक-बालिका के मुख से तथा जनता के मुख से यही गवाया जाता रहा है - "मजहब नहीं सिखाता, आपस मे बैर रखना", जबकि तथ्य यह है कि पिछले पंद्रह सौ वर्षों मे विश्व मे जितना खून मझाब के नाम पर बहा है, उसकी कोई तुलना ही नहीं है। कत्लेआम, बलात्कार, अत्याचार का तो कोई हिसाब ही नहीं है। हिन्दू ने प्रत्येक मजहब का स्वागत किया है और इसे भारत मे फलने-फूलने का अवसर दिया है। अब एक अन्य खतरनाक मझाब 'नास्तिक' एक चुनौती बन कर उभर रहा है। दुनिया मे नास्तिक मत (कम्यूनिज़्म) ने भी हंगरी इत्यादि देशों मे कम रक्त नहीं बहाया। नास्तिक्य और कम्यूनिज़्म भी मजहब के अंतर्गत आते हैं। अभी बीसवीं शताब्दी पर ही दृष्टि डालें तो देखेंगे कि भारत, जैसे कश्मीर से कन्याकुमारी तक, हिमांचल से पूरी तक एक सूत्र मे बंधे देश को तीन टुकड़ों मे मझाबी आधार पर विभाजित कर दिया गया। यह उस मजहबी जुनून का कमाल है जो "नहीं सिखाता आपस मे बैर रखना।" एक मात्र हिन्दू धर्म ही ऐसा है जिसने विश्व को मानवता का प्रचार करने के लिए शांति दूत भेजे और बिना युद्ध किए विश्व भर को मानवता का पाठ पढ़ाया और प्रचार किया। इस पर भी हिन्दू धर्म को सांप्रदायिक कहना या तो मूर्खता ही कही जाएगी अथवा धूर्तता। हिन्दू कोई मजहब नहीं है। यह कुछ मान्यताओं का नाम है। वे मान्यताएं ऐसी हैं जो मानवता का पाठ पढ़ाती हैं। हिंदुओं कि धर्म पुस्तकों मे मनुस्मृति का नाम सर्वोपरि है और मनुस्मृति धर्म का लक्षण करती है - धुर्ति क्षमा दमोस्तेय शौचम इंद्रिय-निग्रह, धीर्विधा सत्यमक्रोधी दशकम धर्म लक्षणम। कोई बताए इसमे कौन सा लक्षण है जो मानवता के विपरीत है। स्मृति मे धर्म का सार स्पष्ट शब्दों मे कहा है - श्रूयतां धर्म सर्वस्व, श्रूत्व चैवाव धार्यताम, आत्मनः, प्रतिकूलानि परेणाम न समाचरेत ।। (धर्म का सार सुनो और सुनकर धारण करो, अपने प्रतिकूल व्यवहार किसी से न करो।) ऐसे लक्षण वाले धर्म को साम्प्रदायिक कहता तो मूर्खता की पराकाष्ठा कही जाएगी। वास्तव मे हिन्दू धर्म को न समझने के कारण दुनिया मे अशांति मची हुई है। इराक सीरिया बाँगलादेश पाकिस्तान अफगानिस्तान इजरायिल आदि देशोँ मेँ जो कत्लेआम, बलात्कार हो रहे है वो सब मजहब का ही प्रत्यक्ष प्रभाव है। सम्पूर्ण भारत देशवासी हिन्दू ही हैं क्योँकी वे हिंदुस्तान के नागरिक हैं। इस्लाम, ईसाई, पारसी, बौद्ध इत्यादि जो हिंदुस्तान का नागरिक है वह हिन्दू ही है। इनका धर्मांतरण कर के इसाई, मुसलमान, आदि बने हैँ।
                                    हमारे राजनैतिक नेता तथा आज के कुशिक्षित लोग अंधाधुंध, बिना सोचे समझे लट्ठ लिए हुए हिन्दू के पीछे पड़ जाते हैं। समस्या का हल तो है परंतु राजनीति में आए स्वार्थी नेता अपना उल्लू कैसे सीधा करेंगे? बच्चों की पाठ्य पुस्तक मे एक पाठ इस विषय मे हो, कि हिन्दू क्या है, इसके मान्यताएं क्या हैं, और भारत का प्रत्येक नागरिक जो भी भारतवासी है, वह हिन्दू ही है। हिंदुओं कि मान्यताएं शास्त्रोक्त हैं, बुद्धियुक्त हैं, किसी भी मझाब के विरोध मे नहीं। किसी भी मजहब को मानने वाले यदि वे हिन्दू कि मान्यताओं को जो मानवता ही है, मान लें तो द्वेष का कोई कारण नहीं रहेगा। संक्षेप मे हिन्दू कि मान्यताएं हैं - जोकि शास्त्रोक्त हैं, युक्तियुक्त हैं, इस परकर हैं - १. जगत के रचयिता परमात्मा पर जो सर्वशक्तिमान है, अजर अमर है, विश्वास; २. जीवात्मा के अस्तित्व पर विश्वास; ३. कर्म-फल पर विश्वास। इसका स्वाभाविक अभिप्राय है पुनर्जन्म पर विश्वास; ४. धर्म पर विश्वास। धर्म जैसा कि मनुस्मृति मे लिखा है, जिसका सार है - आत्मनः प्रतिकूलानी परेषाम न समाचरेत॥
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                              धर्म-परिवर्तनकी समस्या अर्थात् हिंदुस्थान एवं हिंदु धर्मपर अनेक सदियोंसे परधर्मियोंद्वारा होनेवाला धार्मिक आक्रमण ! इतिहासमें अरबीयोंसे लेकर अंग्रेजोंतक अनेक विदेशियोंने हिंदुस्थानपर आक्रमण किए । साम्राज्य विस्तारके साथ ही स्वधर्मका प्रसार, यही इन सभी आक्रमणोंका सारांश था । आज भी इन विदेशियोंके वंशज यही ध्येय सामने रखकर हिंदुस्तानमें नियोजनबद्धरूपसे कार्यरत हैं ।

प्रस्तूत लेख द्वारा हम धर्म-परिवर्तनके दुष्परिणाम समझ लेंगे ।


*सामाजिक दुष्परिणाम*

1 ‘धर्मांतरितोंके रहन-सहनमें विलक्षण परिवर्तन दिखाई देनेके कारण कंधमलमें (उडीसामें) ईसाई  बनी जनजातियां और वहांके परंपरागत समाजमें दूरियां बढ गई हैं ।

2. नागभूमिमें (नागालैंडमें) ईसाइयोंके धार्मिक दिवस रविवारके दिन अन्य कार्यक्रम प्रतिबंधित हैं । उस दिन बसें भी बंद रहती हैं । कृषक अपने खेतोंमें रविवारको काम नहीं कर सकते । यदि वे करें, तो उन्हें 5 हजार रुपए दंड भरना पडता है एवं 25 कोडे खाने पडते हैं ।

3 . ‘मेघालय राज्यमें केंद्रशासनके नियमानुसार रविवारको छुट्टी रहती है । किंतु , इस विषयमें मेघालय शासनके ग्रामीण विकास विभागकी अप्पर सचिव श्रीमती एम्. मणीने एक लिखित उत्तरमें कहा, ‘हमारा राज्य ईसाई होनेके कारण रविवारको यहां सबकी छुट्टी रहती है ।’ ’

*सांस्कृतिक दुष्परिणाम*

1 ‘नागभूमिमें (नागालैंडमें) बाप्तिस्त मिशनरियोंने स्थानीय नाग लोगोंको ईसाई पंथकी दीक्षा देकर उनका नाग संस्कृतिसे संबंध तोडा । उनका लोकसंगीत, लोकनृत्य, लोककथा और धार्मिक परंपराओंका, दूसरे शब्दोंमें उनकी संस्कृतिका विनाश भी इन मिशनरियोंने किया । उन्होंने नाग लोगोंको पूर्णतः पश्चिमी मानसिकताके रंगमें रंग दिया ।

2 . मिजोरममें, मिजो राजाके ढोल जैसा परंपरागत वाद्य बजानेपर वहांके ईसाई संगठनोंने प्रतिबंध लगा दिया है । वहांके ईसाइयोंने धमकी दी है, ‘यदि राजाने यह परंपरा जारी रखी, तो इसके परिणाम गंभीर होंगे

3. ‘धर्मांतरित हिंदु हिंदुस्थानको नहीं, अपितु रोमको पुण्यभूमि मान, हिंदुस्थानकी पवित्र नदियां, पर्वत, नागरिक, राष्ट्रभाषा, वेशभूषा और संस्कृतिका तिरस्कार करने लगे हैं ।’ – ईसाई स्वतंत्रता सेनानी राजकुमारी अमृत कौर

4. धर्म-परिवर्तनके कारण सांस्कृतिक जीवनसे संबंधित संकल्पना भी परिवर्तित होती है, यह नियम व्यक्तियोंपर ही नहीं, नगरोंपर भी लागू होता है । इस्लामी आक्रमणकारियोंने औरंगाबाद’, ‘हैदराबाद’, ‘इलाहाबाद’, ‘फैजाबादजैसे अनेक स्थानोंके हिंदुओंके साथ ही उन नगरोंके नामोंका भी इस्लामीकरण कर उनका सांस्कृतिक परिचय नष्ट कर दिया ।


*संस्कृति पूर्णतः नष्ट होना*

1. आग्निपूजक पारसी लोगोंके मूल स्थान ईरानमें इस्लामी आक्रमणकारियोंने उनपर अत्याचार कर उन्हें धर्म-परिवर्तनके लिए बाध्य किया तथा जिन्होंने ऐसा नहीं किया, उन्हें वहांसे भगा दिया । उन पारसियोंको हिंदुस्थानने आश्रय दिया । आज ईरानमें पारसी संस्कृतिका एक भी चिह्न शेष नहीं है ।

2. ईसाईकृत धर्मांतरणके कारण ही रोम और ग्रीक संस्कृतियां नष्ट हुर्इं ।

3. अमरीका, ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका और रूसकी आदिवासी (मूल) संस्कृतियां नष्ट होना : ईसाई धर्मप्रचारकोंने अमरीका, ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका और रूसके करोडों भोले-भाले आदिवासियोंका धर्म-परिवर्तन कर उनके चरित्र, जीवन-शैली, जीवन-मूल्य एवं उनकी संस्कृति और संस्थाओंका सर्वनाश कर दिया ।
*राष्ट्रीय दुष्परिणाम*

1. ‘अनेक व्यक्ति, जिनका धर्म-परिवर्तन हो चुका है, अब वे मानसिकता राष्ट्रविरोधी हो गए हैं ।’ – ईसाई स्वतंत्रता सेनानी, राजकुमारी अमृत कौर

2. ‘आज मेघालय, मिजोरम, त्रिपुरा और मणिपुरका पर्वतीय भाग एवं अरुणाचल प्रदेशके कुछ भागोंमें धर्मांतरित जनजातियोंमें राष्ट्रविरोधी भावना तीव्र है ।

धर्म-परिवर्तनसे राष्ट्र परिवर्तन

स्वातंत्र्यवीर सावरकरने अनेक वर्ष जनजाग्रति करते समय चेतावनी दी, ‘धर्म-परिवर्तन राष्ट्र परिवर्तन है ।उनकी यह चेतावनी कितनी अचूक थी, यह आगे दिए हुए सूत्रोंसे और स्पष्ट हो जाएगी ।

*नागालैंड*
                          ‘हिंदुस्थान स्वतंत्र होनेके पश्चात् तुरंत ही ईसाई धर्ममें धर्मांतरित विद्रोहियोें अंगामी जापो फीजोनामक ईसाईके नेतृत्वमें नाग विद्रोहियोंने भारतके विरुद्ध सशस्त्र विद्रोहकी घोषणा कर दी । नागालैंड फॉर क्राईस्ट’, यह उनकी धर्मांध युद्धघोषणा थी । इन नाग विद्रोहियोंको शस्त्रोंकी और अन्य प्रकारकी सहायताका दुष्कर्म माइकल स्कॉट नामक ईसाई मिशनरीने किया । बौप्टस्ट मिशनरियोंके दबावमें आकर धर्मनिरपेक्ष शासनने इन फुटीर पृथकतावादियोंकी सर्व मांगें मान लीं और नागालैंड राज्यका निर्माण हुआ ।
श्री. विराग श्रीकृष्ण पाचपोर

नागालैंडमें ‘Nagaland belongs to Jesus Christ ! Bloody Indian dogs get lost !’ !’ अर्थात् नागालैंड ईसा मसीहकी भूमि है ।
मूर्ख भारतीय कुत्तों, यहांसे निकल जाओ !इस प्रकारकी घोषणाएं जगह-जगहपर लिखी हुई मिलती हैं ।

स्वतंत्र ईसाई राज्य मिलनेके पश्चात् फुटीरतावादी ईसाइयोंने स्वतंत्र नागालैंड राष्ट्रकी मांग करनेके लिए देशके विरुद्ध सशस्त्र विद्रोहकी घोषणा की ।

*कश्मीर*
हिंदुस्थानको स्वतंत्रता-प्रााप्तके पश्चात् कश्मीरमें बहुसंख्यक मुसलमानोंने कश्मीरके लिए पृथक संविधान एवं दंडविधान (कानून) बनानेका अधिकार प्राप्त कर लिया । कश्मीरके प्रथम मुख्यमंत्री शेख अब्दुल्लाका ध्येय था, ‘स्वतंत्र कश्मीर राष्ट्र। इसके लिए उन्होंने राष्ट्रविरोधी कृत्य कर पाकसे साठगांठ की । फलस्वरूप कश्मीरी मुसलमानोंमें फुटीरतावादी मानसिकता दृढ हुई । फुटीरतावादी हुरियत कॉन्फ्रेंससंगठनने आजाद कश्मीरका प्रचार आरंभ किया । स्वतंत्र कश्मीर राष्ट्रकी स्थापना हेतु, ‘जम्मू कश्मीर मुक्त मोर्चा’ (जेकेएल्एफ्) आदि आतंकवादी संगठनोंका जन्म हुआ । इस कारण, आज वहां राष्ट्रीय त्यौहारोंके दिन राष्ट्रध्वज फहराना भी कठिन हो गया है ।

*धार्मिक दुष्परिणाम*
1. ‘हिंदु समाजका एक व्यक्ति मुसलमान अथवा ईसाई बनता है, तो इसका अर्थ इतना ही नहीं होता कि एक हिंदु घट गया; इसके विपरीत हिंदु समाजका एक शत्रु और बढ जाता है ।’ – स्वामी विवेकानंद

2. तमिलनाडु राज्यमें धर्मांतरित हिंदुओंद्वारा ईसाई बने मछुआरे समाजने स्वामी विवेकानंदका स्मारक बनानेका विरोध किया ।

3. कालडी (केरल) नामक आदिगुरु शंकराचार्यके इस गांवमें उनके नामसे अभ्यास केंद्र बनानेका ईसाई बने वहांके ग्रामीणोंने विरोध किया है ।

4. इस्लामी आक्रमणोंके समय प्राणभयसे अथवा धनके लोभसे धर्मांतरण करनेवाले धर्मभ्रष्ट हिंदुओंने ही आगे कट्टरतापूर्वक हिंदुओंका नरसंहार किया और असंख्य हिंदुओंको मुसलमान बनाया । अलाउद्दीन खिलजीका सेनापति मलिक कपूर, जहांगीरका सेनापति महाबत खां, फिरोजशाहका वजीर मकबूल खां, अहमदाबादका सुलतान मुजफ्फरशाह और बंगालका काला पहाड मूलतः हिंदु थे । उन्होंने मुसलमान बननेके पश्चात् हिंदु धर्मपर कठोर आघात और हिंदुओंपर निर्मम अत्याचार किए ।

5. ‘मोहनदास गांधीके पुत्र हरिलालने मुसलमान बननेके पश्चात् अनेक हिंदुओंको मुसलमान बनाया । उसने यह प्रतिज्ञा की थी, ‘पिता मोहनदास और मां कस्तूरबाको भी मुसलमान बनाऊंगा ।

6. इस्लामी आक्रमणकारियोंकी मार-काटमें अधिकांश कश्मीर घाटी हिन्दुओं से मुसलमान धर्मांतरित हुई । इन धर्मांतरित मुसलमानोंकी आगामी पीढियोंने वर्ष 1989 में हिंदुओंको चेतावनी दी, ‘धर्मांतरित हों अथवा कश्मीर छोडो ।फलस्वरूप साढेचार लाख हिंदुओंने कश्मीर छोडा, तथा 1 लाख हिंदु जिहादियोंद्वारा मारे गए । आज कश्मीरमें हिंदु पूर्णतः समाप्त होनेके मार्गपर हैं ।

*हिंदुओंका वंशनाश होनेका संकट* !

                             ‘हिंदुओंका धर्मांतरण इसी गति से चलता रहा, तो जिस प्रकार 100 वर्षोंके पश्चात् आज हम कहते हैं, ‘किसी काल में पारसी पंथ था’, उसी प्रकार यह भी कहना पडेगा, ‘हिंदु धर्म था’; क्योंकि धर्मपरिवर्तनके कारण देशमें जब हिंदु अल्पसंख्यक हो जाएंगे, उस समय उन्हें काफिरकहकर मार डाला जाएगा ।’ – डॉ. जयंत आठवले, संस्थापक, सनातन संस्था.

*वैश्विक अशांति*

1. ‘अनेक प्रकारके संघर्ष, जिनसे हम बच सकते हैं, धर्म-परिवर्तनके कारण ही उत्पन्न होते हैं ।’ – गांधीजी

2. ‘धर्म-परिवर्तन ही विश्वमें संघर्षका मूल कारण है । यदि विश्वमें धर्म-परिवर्तन न हो, तो निश्चित ही संघर्ष भी नहीं होगा ।
श्री. एम्.एस्.एन्. मेनन

3. ‘मध्ययुगके अनेक युद्ध धर्म-परिवर्तनके कारण ही हुए हैं ।’ – (पत्रिका हिन्दू-जागृति से संस्कृति रक्षा’)

4. ‘विश्वमें अबतक हुए युद्धोंमें जितना रक्तपात नहीं हुआ होगा, उससे कहीं अधिक रक्तपात ईसाई और मुसलमान इन दो धर्मियोंद्वारा किए गए धर्म-परिवर्तनके कारण हुआ ।’ – श्री. अरविंद विठ्ठल कुळकर्णी, ज्येष्ठ पत्रकार, मुंबई. स्त्रोत : हिंदु जनजागृति समिती

भारत में शीघ्र ही धर्मपरिवर्तन रोकना होगा नही तो बाद में बहुत पछताना पड़ेगा ।