विद्यार्थी का धर्म क्या है ? विद्यार्थी का धर्म है विद्या सीखना, पढना। भगवान की पूजा मानकर पढ़े। माता – पिता व बड़ों को प्रणाम करके उनके आशीर्वाद लेना। ब्रह्मचर्य का पालन करना। जब शिक्षक पढ़ायें तो विद्यार्थी श्यामपट्ट पर एकाग्रतापूर्वक देखे और प्रश्न का उत्तर सावधानी से दे। विद्यार्थी – जीवन पुरे जीवन की नींव हैं। बाल्यकाल में जो सुसंस्कार मिलेंगे, आगे चलकर वे ही जीवन में काम आयेंगे। इसमें अगर बुरी संगत, बुरी आदतें लग गयीं, बुरे कर्म हो गये तो जीवन लाचार, पराधीन, पराश्रित, दु:खी और रुग्ण हो जायेगा। अपने लिए तथा परिवार, समाज व देश के लिए भी बोझा हो जायेगा। विद्यार्थी को चाहिए कि वह संयमी रहे, व्यायाम – आसन आदि करके स्वस्थ रहे और शरीर मजबूत बनाये। जप - ध्यान करके मन मजबूत व बुद्धि तेजस्वी बनाये और अपनी सुषुप्त शक्ति को जाग्रत करे। इस प्रकार अपना विद्यार्थीकाल मजबूत बनाये और जीवन का सर्वांगीण विकास करें। विद्यार्थी कमी नकारात्मक न सोचे, पलायनवादिता के या हलके विचार न करे। अनुत्तीर्ण हो जाय तब भी भागने के या आत्महत्या के विचार न करे। फिर से पुरुषार्थ करे तो अवश्य सफल होगा। प्रयत्न करो, प्रयत्न करो, अवश्य सफलता प्राप्त करोगे ! ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ