भगवान शिव की पुत्री ओखा का विवाह। पार्वती जी ने अपने बल और तप के प्रभाव से पुत्र और पुत्री बना दिया। पुत्र का नाम गणपति रखा और पुत्री का नाम रखा ओखा। ओखा ब्याहने योग्य हुई तो शिवजी ने कोई वर पसंद किया। उसी समय नारद जी और दक्षपुत्र भी एक-एक वर चुनकर लाये। पार्वतीजी को भी कोई वर ओखा के लिए बढ़िया लग गया। अब ओखा एक और वर आये चार। काम-संकल्परहित शिवजी ने अपनी जटाओं में से एक बाल निकाला और अनुचर की भाँति उसे आज्ञा दीः "जो सामने मिले, उन तीन कन्याओं को ले आ।" सामने मिली कुत्ती, गधी और बिल्ली। शिवजी ने दृष्टि मात्र से उन्हें ओखा जैसी ही बना दिया। चारों कन्याओं को चार वर के साथ ब्याह दिया। शिवजी ने जिसे पसंद किया था, उससे असली ओखा का विवाह किया। कुछ समय के बाद नारदजी चारों कन्याओं के सुख-दुःख जानने गये, खबर पूछने गये। बिल्ली में से बनी कन्या के घर गये और देखा तो वह बिल्ली की तरह इधर-उधर कूदा-कूद करती थी। जैसे कामनावाले पुरूष का चित्त इधर-उधर कूदता रहता है। फिर कुत्ती में से बनी कन्या के घर जाकर देखा तो उसे व्यर्थ का भौंकने की आदत थी, जैसे कामनवाला पुरुष व्यर्थ के संकल्प-विकल्प करके वर्त्तमान की शांति भंग कर देता है। गधी में से जो कन्या बनी थी, उसके पास कपड़े-लत्ते, गहने आदि तो बहुत कुछ थे, लेकिन उसका गधी का स्वभाव गया नहीं था। वह जहाँ कहीं लोटती-पोटती रहती थी। ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ