आप जैसा सोचते हो वैसे ही बन जाते हो। अपने-आपको पापी कहो तो अवश्य ही पापी बन जाओगे। अपने को मूर्ख कहो तो अवश्य ही मूर्ख बन जाओगे। अपने को निर्बल कहो तो संसार में कोई ऐसी शक्ति नहीं है जो आपको बलवान बना सके। अपने सर्वशक्तित्व का अनुभव करो तो आप सर्वशक्तिमान हो जाते हो। अपने हृदय से द्वैत की भावना को चुन-चुनकर निकाल डालो। अपने परिच्छिन्न अस्तित्व की दीवारों को नींव से ढहा दो, जिससे आनन्द का महासागर प्रत्यक्ष लहराने लगे। गम्भीर-से-गम्भीर कठिनाइयों में भी अपना मानसिक सन्तुलन बनाये रखो। क्षुद्र अबोध जीव तुम्हारे विरूद्ध क्या कहते हैं इसकी तनिक भी परवाह मत करो। जब तुम संसार के प्रलोभनों और धमकियों से नहीं हिलते तो तुम संसार को अवश्य हिला दोगे। इसमें जो सन्देह करता है, वह मंदमति है, मूर्ख है। ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ जैसे धोबी मैले से मैला-गंदे से गन्दा कपडा धोने से मना नहीँ करता। ठीक इसी प्रकार संत-सतगुरु भी अपनी शरण में आये हुए मैले ह्रदय वाले चोरो-ठगो और अपराधियोँ पर भी दया की वर्षा करते हैँ क्योंकि संत ही करुणा के सागर होते हैँ। ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ घर में झूठ-कपट से प्रेम की कमी होती है और विकार पैदा होता है। निंदा से संघर्ष और ईर्ष्या से अशांति पैदा होती है। हमारा जो समय भगवद्ध्यान में जाना चाहिए वह निंदा, ईर्ष्या, झूठ-कपट में बरबाद हो जाता है। हमारी बड़े-में-बड़ी गलती होती है कि हम दूसरों के दोष देखते हैं। दूसरों पर नजर डालना ही बुरा है। अगर डालें तो उनके गुण पर ही डालें। अपने को ही सँवार लें, अपने तन-मन को बढ़िया बना लें – यह बहुत बड़ी सेवा है। आपका हृदय जल्दी निर्दोष हो जायेगा। सुनहु तात माया कृत गुन अरू दोष अनेक। गुन यह उभय न देखिअहिं देखिअ सो अबिबेक।। (रामचरित. उ.कां. 41) दूसरों के दोष मत देखो। दूसरों की गहराई में परमेश्वर को देखो, अपनी गहराई में परमेश्वर को देखो, अपनी गहराई में परमेश्वर को देखो, उसे अपना मानो और प्रीतिपूर्वक स्मरण करो, फिर चुप हो जाओ तो भगवान में विश्रांति योग हो जायेगा। यह बहुत सरल है और बहुत-बहुत खजाना देता है। जो प्रेम परमात्मा के नाते करना चाहिए वह प्रेम अगर मोह के नाते करते हो तो बदले में दुःख मिलता है। ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ मनुष्य जब दुःख का सदुपयोग करना सीख लेता है तो दुःख का कोई मूल्य नहीं रहता। जब सुख का सदुपयोग करने लगता है तब सुख का कोई मूल्य नहीं रहता। सदुपयोग करने से सुख-दुःख का प्रभाव क्षीण होने लगता है और सदुपयोग करने वाला उनसे बड़ा हो जाता है। ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ जीवन में ऐसे कर्म किये जायें कि एक यज्ञ बन जाय। दिन में ऐसे कर्म करो कि रात को आराम से नींद आये। आठ मास में ऐसे कर्म करो कि वर्षा के चार मास निश्चिन्तता से जी सकें। जीवन में ऐसे कर्म करो कि जीवन की शाम होने से पहले जीवनदाता से साक्षात्कार हो जाय। ये सब कर्म यज्ञार्थ कर्म कहे जाते हैं। ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ शोक और मोह का कारण है प्राणियों में विभिन्न भावों का अध्यारोप करना। मनुष्य जब एक को सुख देनेवाला, प्यारा, सुहृद समझता है और दूसरे को दुःख देनेवाला शत्रु समझकर उससे द्वेष करता है तब उसके हृदय में शोक और मोह का उदय होना अनिवार्य है। वह जब सर्व प्राणियों में एक अखण्ड सत्ता का अनुभव करने लगेगा, प्राणिमात्र को प्रभु का पुत्र समझकर उसे आत्मभाव से प्यार करेगा तब उस साधक के हृदय में शोक और मोह का नामोनिशान नहीं रह जायेगा। वह सदा प्रसन्न रहेगा। संसार में उसके लिये न ही कोई शत्रु रहेगा और न ही कोई मित्र। उसको कोई क्लेश नहीं पहुँचायेगा। उसके सामने विषधर नाग भी अपना स्वभाव भूल जायेगा। ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ अपने को अनधिकारी मत मानो अभागे विषयों ने, अभागी समझ ने, अभागे विचारों ने हमें उस सिंहासन से नीचे गिरा दिया है वरना मनुष्य मात्र उस तत्त्व के अनुभव का अधिकारी है। वह कठिन भी नहीं है, दूर भी नहीं है, पराया भी नहीं है। कर्कटी जैसी राक्षसी को भी जब आत्म-साक्षात्कार हो गया और वह हिंगला देवी एवं मंगला देवी होकर पूजी जा रही हैं तो मनुष्य क्यों वंचित रह जाये? कर्कटी राक्षसी को तत्त्व का बोध हो सकता है, रैदास चमार को परमात्मा का बोध हो सकता है, सदना कसाई को आनन्दस्वरूप ईश्वर का साक्षात्कार हो सकता है तो तुमने क्या अपराध किया है? तुम क्यों अपने को अनाधिकारी मानते हो? तुम क्यों उस प्यारे को अपने से दूर मानते हो? थोड़े-से कदम आप आगे चलो। आपकी बैटरी चाहे चार कदम ही आगे रोशनी डालती हो और फासला चाहे बहुत लम्बा लगता हो, चिन्ता न करो। आप चार चार कदम ही मंजिन तय करते जाओ। चार मिनट से ही ध्यान का प्रारम्भ करो। भीतर की रोशनी (समझ) बढ़ती जायेगी। एक बार भीतर का रस आ गया न, तो आप व्यवहार करते-करते भी साधना की यात्रा कर सकते हो। ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ वेदान्त की बात आपके अनुभव में आने से सारे दुःख ओस की बूँद की तरह लुप्त हो जायेंगे। मैं नितान्त सत्य कह रहा हूँ। यह बात समझने से ही परम कल्याण होगा। अपनी समझ जब तक इन्सान को आती नहीं। दिल की परेशानी तब तक जाती नहीं।। ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ किसी भी अनुकूलता की आस मत करो। संसारी तुच्छ विषयों की माँग मत करो। विषयों की माँग कोई भी हो, तुम्हें दीन बना देगी। विषयों की दीनतावालों को भगवान नहीं मिलते। नाऽयमात्मा बलहीनेन लभ्यः। ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ परमात्मा के सिवाय जो कुछ भी मिलता है वह धोखा है। वास्तविक प्राप्ति होती है सत्संग से, भगवत्प्राप्त महापुरुषों के संग से। ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ अपने को अनधिकारी मत मानो अभागे विषयों ने, अभागी समझ ने, अभागे विचारों ने हमें उस सिंहासन से नीचे गिरा दिया है वरना मनुष्य मात्र उस तत्त्व के अनुभव का अधिकारी है। वह कठिन भी नहीं है, दूर भी नहीं है, पराया भी नहीं है। कर्कटी जैसी राक्षसी को भी जब आत्म-साक्षात्कार हो गया और वह हिंगला देवी एवं मंगला देवी होकर पूजी जा रही हैं तो मनुष्य क्यों वंचित रह जाये? कर्कटी राक्षसी को तत्त्व का बोध हो सकता है, रैदास चमार को परमात्मा का बोध हो सकता है, सदना कसाई को आनन्दस्वरूप ईश्वर का साक्षात्कार हो सकता है तो तुमने क्या अपराध किया है? तुम क्यों अपने को अनाधिकारी मानते हो? तुम क्यों उस प्यारे को अपने से दूर मानते हो? थोड़े-से कदम आप आगे चलो। आपकी बैटरी चाहे चार कदम ही आगे रोशनी डालती हो और फासला चाहे बहुत लम्बा लगता हो, चिन्ता न करो। आप चार चार कदम ही मंजिन तय करते जाओ। चार मिनट से ही ध्यान का प्रारम्भ करो। भीतर की रोशनी (समझ) बढ़ती जायेगी। एक बार भीतर का रस आ गया न, तो आप व्यवहार करते-करते भी साधना की यात्रा कर सकते हो। ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ