एक नगर सेठ ने सपना देखा कि मैं बूढ़ा हो गया हूँ..... दाँत गिर गये है..... मुँह खोखला हो गया है..... चेहरे पर झुर्रियाँ पड़ गई हैं..... बाल सफेद हो गये हैं.... कमर झुक गई है। सुबह उठा और नगर ज्योतिषियों को बुलाया। काफी ज्योतिषी इकट्ठे हो गये। बड़ा जाना-माना सेठ था। अपने सपने की बात कही और सपने की फलश्रुति बताने को कहा। उन ज्योतिषियों में दो मूर्धन्य ज्योतिषी थे। सपने की फलश्रुति सुनाने में प्रगाढ़ विद्वान थे। एक ने कहाः "सेठ जी ! आपका सपना बड़ा खतरनाक है, बड़ा दुःखद है। सपना संकेत करता है कि आपके होते- होते आपके सारे कुटुम्बी मर जाएँगे। यह सुनकर सेठ तो दुःखी हो गये। अपने समग्र परिवार का ऐसा करूण अंजाम ! हाय राम ! दूसरा ज्योतिषी काम-संकल्पवर्जित होने के मार्ग पर था। उसने कहाः "सेठजी ! घबराओ मत, दुःखी मत हो। इन्होंने जितना बताया उतना यह सपना खतरनाक नहीं है। तुम बेकार में डर रहे हो। इस सपने की फलश्रुति सुनाने में मुझे जरा विचार करना पड़ेगा। मैं कल बताऊँगा। आप निश्चिंत हो जाओ। शोक करने की कोई बात ही नहीं है। सेठ का एक दिन बड़ी व्याकुलता से बीता। उनको इच्छा-कामना संकल्पों ने घेर लिया था। हाय ! मेरा क्या होगा ? ऐसा सोचकर शोक सागर में गोते खाने लगे। दूसरे दिन वह ज्योतिषी आया और खुशी भरे स्वर में बोलाः "सेठजी ! सेठजी ! मैंने जैसा सोचा था ऐसा ही हुआ। आपके बुढ़ापे के दृश्यवाला सपना बिल्कुल अमंगल नहीं है। वह सपना बताता है कि आप दीर्घायु होंगे। आप इतने दीर्घजीवी होंगे कि आपके किसी भी कुटुम्बी को आपकी मृत्यु देखने का अवसर ही नहीं आयेगा।" बात वही-की-वही थी। कल वाले ज्योतिषी ने जो फलश्रुति बताई थी वही की वही फलश्रुति उसने ऐसी मधुरता से कही कि सेठजी ने उस ज्योतिषी को इनाम दे दिया। ऐसे ही अपनी इच्छाओं को भी मोड़ने का तरीका होता है। इच्छाएँ उठती हैं मन में, तो मन को समझा दो, फुसला दो युक्ति से। सौ इच्छाएँ उठे तो सौ की कर दो साठ... आधी कर दो काट.... दस देंगे... दस छुड़ायेंगे.... दस के जोड़ेंगे हाथ। अभी तो आराम करने दो यार! ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ