हार को जीत में बदल सकते हैं ! आपके मन में अथाह सामर्थ्य है। आप मन में जैसा संकल्प करो वैसा शरीर में घटित हो जाता है। आप जैसा दृढ़ संकल्प करते हो वैसे ही बन जाते हो। अपने को निर्बल कहो तो संसार में ऐसी कोई शक्ति नहीं जो आपको बलवान बना सके। अपने सर्वशक्तित्व का अनुभव करो तो आप सर्वशक्तिमान हो जाते हो। मैंने सुनी है एक घटना कि कुछ तैराक लोगों में स्पर्धा हो रही थी। अमुक तालाब में स किनारे से चलेगा और इस किनारे से आयेगा। दो आदमी लगे, बड़ा फासला था। एक तैराक के साथी नकारात्मकतावादीथे और दूसरे के उत्साह देने वाले थे। जिसके साथी उत्साह देने वाले थे वह तैरने में पिछड़ा हुआ, कमजोर था और तैरने में कुशल था उसके संगी-साथी ऐसे नकारात्मकतावादीथेः ‘अरे क्या…. मुश्किल है ! छोड़ दो… बेकार में डूब गये तो ! छोड़ दो…. बेकार में डूब गये तो ! छोड़ दो…. अपना क्या जाय, वह भले जा के मरे….. स्पर्धा शुरु हुई। दूसरे छोर से दोनों आ रहे थे तो जो तैरने में कुशल था, वह थोड़ा आगे निकला और जो तैरने में कमजोर था, वह थोड़ा पीछे रह गया। लेकिन पीछे वाले को साथी अच्छे मिल गये कि ‘अरे कोई बात नहीं, अभी आराम से आ रहा है लेकिन थोड़ी देर में जोर मारेगा, तू ही जीतेगा…’ और थोड़ा बराबरी में करा दिया। जो तैरने में कुशल था उसके दलवाले उसे बोलेः “अब तेरा जीतना मुश्किल है भाई ! हम तो समझा रहे थे, हमारी बात मानता तो अभी मुसीबत में नहीं पड़ता। देख, थक गया…..” वह बेवकूफों की बातों में आ गया, उसके लिए मुश्किल हो गयी और जिसके लिए मुश्किल थी, उसे हिम्मत बँधायी तो वह जीत गया। आप जैसा सोचते हैं वैसा बन जाते हैं। अपने भाग्य के आप विधाता हैं। तो अपने जन्म दिन के दिन यह संकल्प करना चाहिए कि ‘मुझे मनुष्य-जन्म मिला है, मैं हर परिस्थिति में सम रहूँगा। मैं सुख-दुःख को खिलवाड़ समझकर अपने जीवनदाता की तरफ यात्रा करता जाऊँगा। यह पक्की बात है ! हमारे साथ ईश्वर का असीम बल है। पिछला यश और इतिहास उनको मुबारक हो, अगला यश और इतिहास हमारे लिए खुला पड़ा है। पिछली सफलताओं पर पिछले लोगों को नाचने दो, अगली सफलता सब हमारी है।’ ऐसा करके आगे बढ़ो। सफल हो जाओ तो अभियान के ऊपर पोता फेर दो और विफल हो जाओ तो विषाद के ऊपर पोता फेर दो। तुम अपना हृदयपटल कोरा रखो और उस पर भगवान के, गुरु के धन्यवाद के हस्ताक्षर हो जाने दो। घोषणा से दृढ़ता जो भी सत्कर्म करना है, जोर से संकल्प करो। भीष्म बोले देते कि ‘आज से मैं यह संकल्प करता हूँ कि मैं विवाह नहीं करूँगा’ तो शायद असफल हो जाते लेकिन उन्होंने दृढ़ता के साथ घोषणा कर दीः ‘यह मेरी भीष्म-प्रतिज्ञाहै…. आकाश सुन लो, दिशाएँ लो, यक्ष-गन्धर्व, किन्नर सुन लो….’ तो सफल हो गये। लक्ष्मण जी लक्ष्मण रेखा खींचे देते चुपचाप, नहीं। उन्होंने दृढ़ता के साथ घोषणा कीः ‘हे वन देवता ! अब तुम ही रक्षा करना।’ तो रावण की मजाल है कि अंदर पैर रखे ! लक्ष्मण का संकल्प उभरा है। कभी-कभी दृढ़ घोषणा करने से भी तुम्हारे संकल्प का बल वहाँ काम करता है, भाव का बल काम करता है और वातावरण तुम्हें सहयोग करता है। स्रोतः ऋषि प्रसाद, अगस्त 2015, पृष्ठ संख्या 14, अंक 272 ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ