योग की लोकप्रियता से बढी संस्कृत सीखने की चाहत !  

बीजिंग :वामपंथी शासनवाले मुल्क चीन की नई पीढी में भारत की प्राचीन भाषा संस्कृत की लोकप्रियता बढ रही है। बीजिंग के बौद्ध संस्थान के ग्रीष्मकालीन शिविर (समर कैंप) में ६० लोगोंने संस्कृत पढऩे के लिए नामांकन कराया है। विद्वान, योगाचार्य के साथ-साथ विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत पेशेवर लोग धर्म और योग को बेहतर ढंग से समझने के लिए संस्कृत भाषा सीखना चाहते हैं। ग्रीष्मकालीन शिविर के लिए ३०० लोगोंके समूह से इन प्रशिक्षुओंको चुना गया है। इन में योगाचार्य, मैकेनिकल डिजाइनर, कार्यक्रम प्रस्तोता (परफॉर्मर), होटल प्रबंधन और पर्यावरण संरक्षक के क्षेत्र में कार्यरत लोग शामिल हैं। ये लोग पूर्वी चीन के हांगजोऊ बौद्ध संस्थान में छह दिन तक संस्कृत का अध्ययन करेंगे। इस दौरान पढऩे और लिखने पर खास ध्यान दिया जाएगा। जर्मनी के माइंज विवि से इंडोलॉजी में डॉक्टरेट करने वाले ली वी प्रशिक्षुओंको संस्कृत भाषा पढाएंगे। ली के मुताबिक, संस्कृत की व्याकरण बड़ी जटिल है। वर्तमान काल के लिए ही एक क्रिया का ७२ तरीके से प्रयोग होता है। ऐसे चीन पहुंची संस्कृत छठी शताब्दी में प्रख्यात बौद्ध भिक्षु जुआन जांग ने भारत की यात्रा की थी और वे १७ बरस तक भारत में रहे। उन्ही के जरिये संस्कृत भाषा चीन पहुंची। इस के बाद कई और भिक्षुओंने भारत की यात्रा की और प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति का ज्ञान अर्जित किया। पीकिंग विवि में संस्कृत विभाग चीन की पीकिंग यूनिवर्सिटी में संस्कृत के लिए एक अलग विभाग है जिस में ६० से ज्यादा लोग संस्कृत का अध्ययन करते हैं। प्रख्यात इंडोलॉजिस्ट जी जियालिन को संस्कृत को बढावा देने के लिए पद्मश्री से भी नवाजा जा चुका है। योग की लोकप्रियता से बढी संस्कृत सीखने की चाहत संयुक्त राष्ट्रसंघद्वारा २१ जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस घोषित करने के बाद से चीन के लोगों में संस्कृत सीखने की इच्छा बढी है। ओवर टाइम कर रहे हांगजोऊ की कक्षा में ६ दिन संस्कृत पढऩे के लिए कई लोगोंने अवकाश लिया है। कुछ ने सालाना मिलने वाली छुट्टियोंका इस काम के लिए उपयोग किया है। इतना ही नहीं कई लोग ऐसे भी हैं जिन्होंने अपने-अपने कार्यस्थल पर ओवरटाइम किया है। कुछ ने दिन में होने वाली इस कक्षा में पढऩे के लिए रात्रि पाली (नाइट शिफ्ट) में काम करना शुरू कर दिया है। योग में कुशलता के लिए संस्कृत का ज्ञान जरूरी अर्थशास्त्र में स्नातक और फिलहाल हांगजोऊ में योग प्रशिक्षक के रूप में कार्यरत ३९ वर्षीय ही मिन का कहना है कि संस्कृत सीखने के लिए यह सुनहरा मौका है। सारी दुनिया में योग करने वाले संस्कृत भाषा के जरिये ही एक-दूसरे से संपर्क में रहते हैं, हालांकि कई योग पुस्तकें अंग्रेजी में लिखी गई हैं लेकिन योग मुद्राओंके नाम और उच्चारण संस्कृत में ही है। अध्यापकोंकी कमी तीन साल से संस्कृत पढ रही एक महिला ने बताया चूंकि इस भाषा को सिखाने के लिए कोई पेशेवर प्रशिक्षक नहीं है इस लिए मुझे संस्कृत अब भी कठिन लग रही है। उल्लेखनीय है कि चीन के स्कूलोंने ४० के दशक के अंत में संस्कृत पढाना शुरू किया था लेकिन शिक्षकों और समुचित पाठ्य पुस्तकोंके अभाव में पठन-पाठन का माहौल धीरे-धीरे विकसित हो सका।