संस्कारों को नकारो नहीं ... अगली पीढ़ी का उचित चरित्र निर्माण करें। बदलते परिवेश, बदलते वातावरण, बदली शिक्षावृत्ति के कारण हमारे बच्चों का रहन -सहन एकदम बदल गया है। पाश्चात्य संस्कृति के बढ़ते प्रभाव के कारण "Mom - Dad" वाले संस्कार बच्चों में तेजी से पनप रहे हैं, रही सही कसार टेलीविजन धारावाहिकों ने पूरी कर दी है। आज के दादा-दादी, नाना -नानी के साथ साथ माता पिता को भी सोचना चाहिए की जो संस्कार उन्हें पूर्वजों मिले थे, क्या वे इन संस्कारों को भावी पीढी तक पहुँचा पा रहे हैं ? हर समाज में कुछ नीतिगत बातें, कुछ परम्पराऐँ एवं कुछ धार्मिक मान्यताऐँ होती हैं जिन्हें हम संस्कार कहते हैं। इन संस्कारों को यदि भावी पीढ़ी तक न पहुचाया जाए तो ये नष्ट हो जाते हैं। जिस तरह कुछ बातें बच्चों के सामने नही की जा सकतीं, वैसे ही कुछ संकोच बड़े के सामने भी रखा जाना चाहिए, बड़ों के सामने छोटों को संयमित व्यवहार घर के दुसरे छोटों को भी ऐसा करने की शिक्षा देता है। संस्कार हमारी अस्मिता, हमारी संस्कृति और अपनेपन की पहचान है। घर के शालीन और सौम्य वातावरण का आदि व्यक्ति समाज में उसी शालीनता को लेकर पहुँचता है और उसकी अपेक्षाऐँ भी उसी रूप में ढल जारी हैं। सौम्यता की इसी मिटटी में संस्कार फलते फूलते हैं। देखा जाए तो भावी पीढ़ी को संस्कारित बनाना इतना कठिन नही है, जितना कठिन हम सोचते हैं। जिन परिवारों में बचपन से ही बच्चों को नमस्कार, चरण-स्पर्श, मन्दिर जाना, धार्मिक पर्वों पर भागीदारी करने तथा पारिवारिक आयोजनों में सम्मलित होने का अवसर मिलता है वहाँ बच्चे स्वतः ही दीक्षित और शिक्षित होते चले जाते हैं। लेकिन जिन परिवारों में बच्चों पर पूरा ध्यान नही दिया जाता वे संस्कार धारण में पिछड़ जाते हैं। ऐसे माता - पिता अपने बच्चों को संस्कार शून्य बना देते हैं, हालांकि अभिभावक थोड़ी मेहनत करके ये काम कर सकते हैं, ये काम लम्बी छुट्टियों में करना चाहिए। परिवार में प्रति माह एकाध बार पाठ, हवन, पूजा, कथा आदि जैसे आयोजन अवश्य करवाए जाएँ ...खासकर तब अवश्य हों जब बच्चे होस्टल आदि में रहते हों और वे घर वापिस आये हों... उनके मन में धर्म-कर्म के प्रति श्रद्धा भाव उपजेंगे और बढ़ेंगे। अपने बच्चों को धर्म, सत्य और नैतिकता के साथ साथ कर्म, योग और भक्ति के सिद्धांत को समय समय पर समझाने का प्रयास करें, यह विडम्बना है की भारत का संविधान सनातन संस्कृति के अनुरूप नही है, जिसके कारण विद्यालयों में तो धर्म कर्म की शिक्षा से वंचित ही रखा जायेगा, और वर्तमान में वामपंथी, मलेच्छों और यवनों द्वारा किस प्रकार सनातन संस्कृति के इतिहास को तोड़ मोड़ कर पढ़ाया जाता है ये हम सभी जानते हैं। आवश्यक है की अपने बच्चों के उचित चरित्र निर्माण की प्रक्रिया का आरम्भ हम स्वयं घर से ही करें... उन्हें अपने धर्म के मूल्य, सिद्धांत, शिक्षाओं, परम्पराओं, आदि का अधिक से अधिक ज्ञान दें। सनातन संस्कृति के जितने भी आराध्य हैं, धर्म-ग्रन्थ हैं, ऋषि - आचार्य - गुरु आदि हैं उन सबके बारे में घर पर ही बताऐँ। भारतीय भूमि पर जन्म लेने वाले असंख्य शूरवीरों की विजय गाथा बताऐँ। राष्ट्रप्रेम हेतु अनेकों बलिदान देने वालों की आहुतियों के बारे में बताऐँ... जिससे की राष्ट्र-प्रेम की भावनाऐँ उनमे बचपन से ही कूट कूट कर भर जाएँ और अखंड भारत के सुनहरे भविष्य में वे अपना शत-प्रतिशत योगदान दे पाऐँ। पिछले २५०० वर्षों में ... १४०० वर्षों में... जितने भी आक्रमण सनातन संस्कृति और ऋषि भूमि देव तुल्य अखंड भारत पर हुए हैं, उन सबका इतिहास अधिक से अधिक बताया जाए जिससे की उन्हें विदेशी लोगों के आचरण की भली भाँती परख हो जाए। विशेषकर मलेच्छों और यवनों द्वारा किये गए आक्रमणों, लूटमार, हिन्दू नारियों का शारीरिक मान मर्दन, मन्दिरों का विध्वंस, मूर्तियों का अपमान ...और सबसे महत्वपूर्ण धर्मांतरण आदि के बारे में भी बताऐँ। वर्तमान समय में सबसे आवश्यक विषय है लव जिहाद इसके बारे में विशेष कर अपने घर की लड़कियों को अवश्य जागरूक करें। स्वयं का आचरण ऐसा बनाऐँ की बच्चे उनका अनुसरण करें। जो पिता रोज घर में शराब पीता हो वो बच्चे को शराब से दूर रहने की सीख कैसे दे सकता है ? जो माँ स्वयं मर्यादित कपडे न पहनती हो ..वो भला अपने बच्चों की क्या संस्कार दे पायेगी ? जो बीज आज बोयेंगे उसके फल आने वाली तीन पीढीयों में दिखाई देंगे। परम्पराओं को आगे पहुचना समाज को सुरक्षित आधार देने का कार्य कर्तव्य है ... और बच्चों को संस्कार देना वर्तमान और बुजुर्ग पीढी का नैतिक कर्तव्य भी बनता है। अंत में एक आवश्यक प्रश्न आप सबसे ... क्या हम अपने बच्चों को और आने वाली पीढ़ियों को पुनः १६ संस्कार देने की प्राचीन व्यवस्था को पुनर्जीवित कर सकते हैं? ==================== ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ