वर्षारंभदिन एवं उसे मनानेका शास्त्र

१. संवत्सरारंभके साथही वर्षारंभदिनका अतिरिक्त एक विशेष महत्त्व
         रावणवधके पश्चात् चैत्र शुक्ल प्रतिपदाके दिनही श्रीरामजी अयोध्या लौटे । उनके स्वागतके लिए तथा विजयोत्सव एवं आनंदोत्सव मनानेके लिए अयोध्यावासियोंने घर-घरके द्वारपर धर्मध्वज फहराया । इसके प्रतीकस्वरूप भी इस दिन धर्मध्वज फहराया जाता है । इसे महाराष्ट्रमें गुडी कहते हैं ।
२. चैत्र शुक्ल प्रतिपदाके दिन तेजतत्त्व एवं प्रजापति तरंगें अधिक मात्रामें कार्यरत रहती हैं
         धर्मशास्त्रने बताया है की चैत्र शुक्ल प्रतिपदाके दिन तेजतत्त्व एवं प्रजापति तरंगें अधिक मात्रामें कार्यरत रहती हैं । सूर्योदयके समय इन तरंगोंसे प्रक्षेपित चैतन्य अधिक समयतक वातावरणमें बना रहता है । यह चैतन्य जीवकी कोशिका-कोशिकाओंमें संग्रहित होता है और आवश्यकताके अनुसार उपयोगमें लाया जाता है । अत: सूर्योदयके उपरांत ५ से १० मिनटमेंही ब्रह्म ध्वजको खडाकर उसका पूजन करनेसे जीवोंको ईश्वरीय तरंगोका अत्याधिक लाभ मिलता है ।
३. ध्वजारोपण अर्थात् ब्रह्मध्वज खडा करनेकी एक पद्धति
३.१ ब्रह्मध्वज अर्थात गुडी खडी करनेके लिए आवश्यक सामग्री
         हरा गीला १० फुटसे अधिक लंबाईका बांस, तांबेका कलश, पीले रंगकी सोनेके तारकी किनारवाला अथवा रेशमी वस्त्र, कुछ स्थानोंपर लाल वस्त्रका भी प्रयोग किया जाता है, नीमके कोमल पत्तोंकी मंजरीसहित अर्थात पुष्पों(फूलों) सहित छोटी टहनी, शक्करके पदकोंकी माला एवं (फूलोंका हार) पुष्पमाला, ध्वजा खडी करनेके लिए पीढा ।
३.२ गुडी सजानेकी पद्धति
१. प्रथम बांसको पानीसे धोकर सूखे वस्त्रसे पोंछ लें ।
२. पीले वस्त्रको इस प्रकार चुन्नट बना लें ।
३. अब उसे बांसकी चोटीपर बांध लें ।
४. उसपर नीमकी टहनी बांध लें ।
५. तदुपरांत उसपर शक्करके पदकोंकी माला बांध लें ।
६. फिर (फूलोंका हार)पुष्पमाला चढाएं ।
७. कलशपर कुमकुमकी पांच रेखाएं इस प्रकार बनाएं ।
८. इस कलशको बांसकी चोटीपर उलटा रखें ।
९. सजी हुई गुडीको पीढेपर खडी करें एवं आधारके लिए डोरीसे बांधें।
३.३ ब्रह्मध्वजको सजानेके उपरांत उसके पूजनके लिए आवश्यक सामग्री
         नित्य पूजाकी सामग्री, नवीन वर्षका पंचांग, नीमके पुष्प(फूल) एवं पत्तोसे बना नैवेद्य । यह नैवेद्य बनानेके लिए नीमके पुष्प(फूल) एवं १०-१२ कोमल पत्ते, ४ चम्मच भिगोई हुई चनेकी दाल, १ चम्मच जीरा, १ चम्मच मधु तथा स्वादके लिए एक चुटकीभर हिंग लें । इस सामग्रीको एक साथ मिला लें एवं इस मिश्रणको पीसें । यह बना ध्वजको समर्पित करनेके लिए नैवेद्य । वर्षारंभके दिन ब्रह्मध्वजाको निवेदित करनेके लिए यह विशेष पदार्थ बनाया जाता है एवं उसे प्रसादके रूपमें ग्रहण किया जाता है । कई स्थानोंपर इसमें काली मिर्च, नमक एवं अजवाईन भी मिलाते हैं । नीमके पत्तोंसे बने प्रसाद की सामग्रीमें इस दिन जीवोंके लिए आवश्यक ईश्वरीय तत्त्वोंको आकृष्ट करनेकी क्षमता अधिक होती है ।
४. नीमके पत्तोंका प्रसाद एवं उनकी सूक्ष्म स्तरीय प्रक्रिया
यह समझनेके लिए एक-एक प्रकारके तरंगोंकी प्रक्रिया पूर्णरूपसे दर्शाई गई है । इस प्रक्रियाको अब हम समझ लेते हैं..
ध्वजपूजनकी एवं प्रसादकी सूक्ष्म स्तरीय प्रक्रिया चित्रफीत द्वारा
४.१ नीमके पत्तोंका प्रसाद
१. प्रसादमें ईश्वरसे शक्तिका प्रवाह आकृष्ट होता है ।
२. उसमें कार्यरत मारक शक्तिका वलय निर्माण होता है ।
३. तेजतत्त्वात्मक शक्तिके कण भी उसमें निर्माण होते हैं ।
४. तेजतत्त्वात्मक तारक-मारक शक्तिके कणोंका वातावरणमें संचार होता है ।
५. प्रसादमें ईश्वरीय चैतन्यका प्रवाह आकृष्ट होता है ।
६. उसका वलय निर्माण होता है ।
७. इस चैतन्यके वलयद्वारा चैतन्यके प्रवाहोंका वातावरणमें प्रक्षेपण होता है ।
८. ईश्वरसे आनंदका प्रवाह प्रसादमें आकृष्ट होता है ।
९. इस आनंदका प्रसादमें वलय निर्माण होता है ।
यह प्रसाद ग्रहण करनेसे व्यक्तिके देहमें आनंदके स्पंदनोंका संचार होता है ।
५. प्रत्यक्ष ध्वजपूजनकी कृति
१. सूर्योदयके ५-१० मि. उपरांत ध्वजपूजन आरंभ करनेके लिए पूजक पूजास्थलपर रखे पीढेपर बैठे ।
२. प्रथम (वह) आचमन करे ।
३. उपरांत प्राणायाम करे ।
४. अब देशकालकथन करे ।
५. उसके उपरांत ध्वजापूजनके लिए संकल्प करे ।
अस्मिन प्राप्ते, नूतन संवत्सरे, अस्मत गृहे, अब्दांतः नित्य मंगल अवाप्तये ध्वजारोपण पूर्वकं पूजनं तथा आरोग्य अवाप्तये निंबपत्र भक्षणं च करिष्ये ।
अब गणपतिपूजन करें ।
६. तदुपरांत कलश, घंटा एवं दीपपूजन करें ।
७. तुलसीके पत्तेसे संभार प्रोक्षण करें; अर्थात पूजा सामग्री, आस-पासकी जगह तथा स्वयंपर तुलसीपत्रसे जल छिडकें ।
८. अब ॐ ब्रह्मध्वजाय नमः ।इस मंत्रका उच्चारण कर ध्वजापूजन आरंभ करें ।
९. प्रथम चंदन चढाएं ।
१०. तदुपरांत हलदी कुमकुम चढाएं ।
११. अक्षत समर्पित करें।
१२. पुष्प चढाएं ।
१३. इसके उपरांत उदबत्ती दिखाएं ।
१४. तदुपरांत दीप दिखाएं ।
१५. नैवेद्य निवेदित करें ।
१६. अब इस प्रकार प्रार्थना करें ।
ब्रह्मध्वज नमस्तेस्तु सर्वाभीष्ट फलप्रद ।
प्राप्तेस्मिन् वत्सरे नित्यं मद्गृहे मंगलं कुरू ।।
पूजनके उपरांत परिजनोंके साथ प्रार्थना करें ;
हे ब्रह्मदेव, हे विष्णु, इस ध्वजके माध्यमसे वातावरणमें विद्यमान प्रजापति, सूर्य एवं सात्त्विक तरंगें मुझसे ग्रहण हों । उनसे मिलनेवाली शक्ति तथा चैतन्य निरंतर बना रहे । इस शक्तिका उपयोग मुझसे अपनी साधना हेतु हो, यही आपके चरणोंमें प्रार्थना है !
१७. प्रार्थना करनेके उपरांत ध्वजाको चढाया गया नीमके पत्तोंका नैवेद्य वहां उपस्थित सभीमें प्रसादके रूपमें बांटें एवं स्वयं ग्रहण करें ।
६. कलशपर कुमकुमकी रेखाएं खींचनेवालेपर होनेवाला परिणाम
         कलशपर कुंकमकी पाच रेखाए खींचनेका कृत्य भावपूर्ण और सेवाभावी वृत्तीसे करनेके कारण व्यक्तीमें शरणागत भाव का वलय निर्माण होता है । व्यक्तिके ओर शक्तिका प्रवाह आकृष्ट होता है । उसके अनाहत चक्रके स्थानपर शक्तिका वलय निर्माण होता है । उसके हाथों द्वारा शक्तिकी तरंगे कलशमें आती है । ईश्वरसे चैतन्यका प्रवाह व्यक्तिके ओर आकृष्ट होता है । उसके अनाहतचक्रके स्थानपर चैतन्यका वलय निर्माण होता है।
७. कलशपर होनेवाला परिणाम
         ईश्वरसे शक्तिका प्रवाह कलश की ओर आकृष्ट होता है । भावपूर्ण रितीसे कलशको कुंकूम लगानेसे कुंकूमके कारण कलशपर मारक शक्तीकी तरंगे उपरसे निचेकी ओर प्रवाहित होती हैं । कलशके भीतरकी रिक्तीमें शक्तिके वलय निर्माण होते है । इन वलयोंद्वारा शक्तिके प्रवाहोंका वातावरणमें प्रक्षेपण होता है । कलशमें शक्तिके कण घूमते रहते हैं । ध्वजपर कलश उलटा रखनेसे कलशके मुखद्वारा शक्तिका प्रवाह ध्वजके वातावरणमें भी प्रक्षेपित होता है । ध्वज सजानेके उपरांत उसे पिढेपर खडा किया जाता है ।
८. ध्वज खडा करनेके परिणाम
         यहां एक बात का ध्यान रहे । ब्रह्मध्वजमें शक्ति एवं चैतन्यकी निर्गुण तत्त्वकी तरंगे एकही समयपर आकृष्ट होती है । परंतु उनकी आगेकी प्रकिया समझनेके लिए प्रत्येक तरंगोके लिए जानकारी पूर्ण रूपसे दर्शाई गई है । व्यक्तिद्वारा भावपूर्ण रितीसे तथा सेवाभावके वृत्तीसे ब्रह्मध्वजको खडा करनेसे  उनके अनाहत चक्रके स्थानपर भावका वलय निर्माण होता है । सेवाभावके कारण व्यक्तिका ईश्वरसे संधान साध्य होता है । ईश्वरसे चैतन्यका आशीर्वादात्मक प्रवाह वहां उपस्थित व्याक्तियोंकी ओर आकृष्ट होता है । उनके अनाहत चक्रके स्थानपर चैतन्यका वलय निर्माण होता है । ब्रह्मांडमंडलसे तेजतत्त्वामक शक्तिका प्रवाह ध्वजमें आकृष्ट होता है । ब्रह्मध्वजमें प्रयुक्त कलशमें शक्तिका वलय निर्माण होता है । वस्त्रमें तारक शक्तिकी तरंगे प्रसारित होती है । बासमें भी शक्तिका प्रवाह आकृष्ट होता है । मारक शक्तिके कण संचारित होते है । ईश्वरीय चैतन्यका प्रवाह कलशमें आकृष्ट होता है । इस कलशमें चैतन्यका वलय निर्माण होता है । ब्रह्मध्वजमें प्रयुक्त बासमें  चैतन्यका प्रवाह आकृष्ट होता है ।  शक्ती स्वरूप चैतन्यके कण ब्रह्मांडसे भूमीकी ओर संचारित होते हैं । परमेश्वरीय निर्गुण तत्त्व कलशमें आकृष्ट होकर उसका एक  स्थिर वलय निर्माण होता है । अनिष्ट शक्तियोंद्वारा ब्रह्मध्वजपर आक्रमण करने का प्रयत्न होता है ।  पूजाविधीके उपरांत प्रक्षेपित शक्तिके कारण ये अनिष्ट शक्तियां दूर हटती है ।  इस प्रकार भावपूर्ण रितीसे ध्वज खडा करते ही उसमें सूक्ष्म स्तरपर पर गतिविधियां आरंभ होती हैं । ईश्वरीय तरंगे उसकी ओर आकृष्ट होने लगती हैं ।


(संदर्भ सनातनका ग्रंथ त्यौहार, धार्मिक उत्सव एवं व्रत)