जब भी होती धर्म की हानि, तब अवतार लेते ब्रह्मज्ञानी
                     जब-जब भगवान इस धरती पर अवतार लेते हैं तो पहले प्रायः उसकी भविष्यवाणी हो जाती है । एक त्रिकालज्ञानी संत ने पूज्य संत श्री आशारामजी बापू के अवतरण एवं जीवनकार्यों के बारे में इंगित करती हुई भविष्यवाणी की थी ।
                   सैकड़ों वर्ष पहले जूनागढ़ (गुज.) के पास एक गाँव में एक शिव-उपासक निःसंतान ब्राह्मण दम्पति रहते थे । उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर एक दिन भगवान शिव ने ब्राह्मण को सपने में दर्शन दिये और बोले : ‘‘भक्तराज ! मैं तुम्हारी मनोव्यथा को जानता हूँ । तुम्हारे भाग्य में संतान-सुख नहीं है परंतु मेरे आशीर्वाद से मेरा अंश तुम्हारे घर पुत्ररूप में पलेगा । कल सुबह मंदिर के फूलों में तुम्हें एक बालक मिलेगा । उसे ही अपनी संतान मानकर पालन-पोषण करना, वह बड़ा होकर त्रिकालज्ञानी बनेगा ।’’
                   सुबह पति-पत्नी दोनों बड़ी प्रसन्नता से मंदिर में पूजा कर ही रहे थे कि इतने में किसी बालक के रोने की आवाज आयी । पास जाकर देखा तो फूलों के ढेर में एक नवजात शिशु लेटा है । ब्राह्मणी ने उस तेजस्वी बालक को तुरंत गले से लगा लिया । सीने से लगाते ही माँ का वात्सल्य दूध बनकर फूट पड़ा । ब्राह्मण दम्पति बच्चे को घर ले आये।
                 नामकरण की बात चली तो गाँव के मुखिया ने कहा : ‘‘यह तो देव का दिया हुआ है इसलिए इसका नाम देवोही रखो ।’’ बालक संस्कृत के श्लोकों को सहज में ही याद कर लेता था । उसकी वाणी रहस्यमयी थी, कभी-कभी सुननेवालों को उसका रहस्य समझ में नहीं आता था । वही बालक बड़ा होकर देवायत पंडितके नाम से सुप्रसिद्ध हुआ । देवायत पंडित ने भजनों के माध्यम से कई सचोट भविष्यवाणियाँ की हैं । कई शताब्दियों पहले उन्होंने पहली भविष्यवाणी की थी, जिसके कुछ अंशों का भावार्थ इस प्रकार है :
                    ‘हमारे गुरु शोभाजी महाराज ने आगम (भविष्य) के बारे में बताया है । सद्गुरु की वाणी झूठी नहीं होती । जैसा लिखा है, जैसा कहा है, वैसे दिन आयेंगे । पाप का दौर आयेगा और धरती पापी जनों का भोग माँगेगी । उनमें कुछ परस्पर लड़ाई-झगड़े करेंगे और उनका खड्ग से (आधुनिक शस्त्रों से) संहार होगा, कुछ लोग विविध प्रकार के रोगों से पीड़ित होकर मरेंगे ।
                      पहले तेज हवाएँ चलेंगी, तूफान उठेंगे, अकाल से मनुष्य पीड़ित होंगे, नदियों का पानी सूख जायेगा । (इसमें प्राकृतिक आपदाओं का संकेत है और परमाणु बम विस्फोट के बाद भी ऐसा वातावरण बनता है इसलिए तीसरे विश्व युद्ध का भी संकेत है ।)
                      हे देवलदे ! (देवायत पंडित की धर्मपत्नी का नाम) ऐसे विकट समय में नर-नारी धर्म के आदेशों का पालन नहीं करेंगे । धर्म ग्रंथ झूठे हैं और उनके आदेश झूठे हैं’- ऐसा मानने लगेंगे ।
                    हे संतो ! उत्तर दिशा से साहब (भगवान) आयेंगे (यह बात गुजरात में कही गयी है और सिंध प्रांत गुजरात के उत्तर में है) । साबरमती के तट पर यति (पूज्य बापूजी) और सती (पूजनीया माताजी) आसन जमायेंगे । वहाँ अच्छाई और बुराई के बीच संग्राम होगा (पूज्य बापूजी एवं उनके शिष्यों द्वारा देश, धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए विरोधी शक्तियों के साथ पिछले कई दशकों से सतत संघर्ष किया जा रहा है) । वे सदा के लिए बुराई को मारकर निष्कलंक नाम धारण करेंगे । हे देवलदे ! ऐसा समय आयेगा कि सौ-सौ गाँव की सीमा में रहनेवाले, शहर और गाँव के लोग एकमत हो जायेंगे (अहमदाबाद आश्रम में जो ध्यानयोग शिविरलगते थे, उनमें देश के अनेक गाँवों और शहरों के लोग सम्मिलित होकर एक आत्मोन्नति के लिए सम्मत होते थे इस बात का संकेत है) और कांकरिया तालाब पर बड़े तम्बू तानकर रहेंगे । (उस समय अहमदाबाद का नाम कर्णावतीथा पर यह नाम बाद में बदल जायेगा, यह बात जानकर देवायत पंडितजी ने कर्णावती नगर के बदले कांकरिया तालाबका नाम दिया है ।) उस समय की वे घड़ियाँ बड़ी रमणीय होंगी । सूर्य अपनी १६ कलाओं से सम्पन्न तथा धरती खुशहाल होगी । कलियुग होगा फिर भी सत्य के आग्रही सच्चे संतों के तपोबल से सत्ययुग जैसा समय आयेगा । ऐसे भविष्य के लक्षण गुरुजी ने मुझे सुनाये हैं ।
                       सभी जानते हैं कि सनातन धर्म-संस्कृति की रक्षा करने के लिए बापूजी ५० सालों से लगे हुए हैं । आज पाश्चात्य जगत की पाशविक शक्तियाँ भारत की संस्कृति, संस्कार व परम्पराओं को नष्ट करने में लगी हैं । पूज्य बापूजी अनेक प्रकार के झूठे आरोप सहकर भी संस्कृति की रक्षा में अपने करोड़ों साधकों को साथ लेकर लगे हुए हैं । वे तो कहते हैं कि विश्वगुरु हो भारत प्यारा, ऐसा है संकल्प हमारा ।अब निश्चित ही सुंदर सुहावना समय आयेगा । युग-परिवर्तन होकर सत्ययुग जैसा समय आयेगा । देवायत पंडित की भविष्यवाणी आज भी पत्थर पर शिलालेख के रूप में गुजराती भाषा में अंकित है ।
                      सामुद्रिक शास्त्र के एक प्रसिद्ध विद्वान ने पूज्य बापूजी के श्रीचरणों और करकमलों का अवलोकन करके पंचेड़ आश्रम (म.प्र.) में कहा था कि ‘‘पूज्य बापूजी पहले १६ बार अवतार ले चुके हैं और अब १७वीं बार आये हैं ।’’
                      अगर किसीको त्रिकालज्ञानी महापुरुषों और भविष्यवेत्ताओं में श्रद्धा न हो तो उसे एक विश्वप्रसिद्ध आभा (ओरा) विशेषज्ञ डॉ. हीरा तापड़िया के तथ्यों पर तो विश्वास करना ही पड़ेगा क्योंकि यह एक वैज्ञानिक अध्ययन है जिसे नास्तिक लोगों को भी मानना पड़ता है । पूज्यश्री की आभा का अध्ययन करके उन्होंने कहा : ‘‘मैंने अब तक लगभग सात लाख से भी ज्यादा लोगों के आभा-चित्र लिये हैं, जिनमें एक हजार विशिष्ट व्यक्ति शामिल हैं, जैसे - बड़े संत, साध्वियाँ, प्रमुख व्यक्ति आदि । आज तक जितने भी लोगों की आभाएँ मैंने ली हैं, उनमें सबसे अधिक प्रभावशाली एवं उन्नत आभा संत श्री आशारामजी बापू की पायी ।
                    बापू की आभा में बैंगनी रंग है, जो यह दर्शाता है कि बापूजी आध्यात्मिकता के शिरोमणि हैं । यह सिद्ध ऋषि-मुनियों में ही पाया जाता है । बैंगनी रंग का मतलब है कि उनके आज्ञा चक्र और सहस्रार चक्र प्रबुद्ध हो गये हैं, खुल गये हैं, चार्ज हो गये हैं; वे (ऊध्र्व लोकों से) शक्ति ले रहे हैं और (इस लोक में) शक्ति दे रहे हैं ।
                      बापू की आभा में जो खास चीज है वह है शक्ति देने की क्षमता । दूसरे लोग अन्य लोगों की शक्ति ग्रहण कर सकते हैं लेकिन बापूजी की आभा में यह प्रमुखता मैंने पायी कि वे सम्पर्क में आये व्यक्ति की ऋणात्मक ऊर्जा को ध्वस्त कर धनात्मक ऊर्जा प्रदान करते हैं ।
                       बापू की आभा देखकर मुझे सबसे ज्यादा आश्चर्य हुआ क्योंकि लगातार पिछले कम-से-कम दस जन्मों से बापूजी समाजसेवा का यह पुनीत कार्य करते आ रहे हैं; लोगों पर शक्तिपात करके आध्यात्मिकता में लगाना, स्वस्थ करना, समाज की बुराइयों को दूर करना, ज्ञानामृत बाँटना, आनंद बरसाना आदि । मुझे पिछले दस जन्मों तक का ही पता चल पाया, उसके पहले का पढ़ने की क्षमता मशीन में नहीं थी ।’’


(डॉ. हीरा तापड़िया के विडियो की लिंकः https://goo.gl/0oeHP5)