जिनको सब चमार बोलते है, वो
असल में चंवरवंश के वीर क्षत्रीय हैं ...
अभी
कुछ समय पूर्व तक जिन्हें करोड़ों हिन्दू छूने से कतराते थे और उन्हें घर के अन्दर
भी आने की मनाही थी, वो असल में चंवरवंश के क्षत्रीय हैं।
यह खुलासा डॉक्टर विजय सोनकर की पुस्तक – हिन्दू
चर्ममारी जाति:एक स्वर्णिम गौरवशाली राजवंशीय इतिहास में हुआ है। इस किताब में
उन्होंने लिखा है कि विदेशी विद्वान् कर्नल टॉड ने अपनी पुस्तक राजस्थान का इतिहास
में चंवरवंश के बारे में बहुत विस्तार में लिखा है। इतना ही नहीं महाभारत के
अनुशासन पर्व में भी इस वंश का उल्लेख है। वर्ण व्यवस्था को क्रूर और भेद-भाव
बनाने वाले हिन्दू हैं, विदेशी आक्रमणकारी थे! उम्मीद है, धीरे
धीरे पूरा सच सामने आएगा लेकिन, अभी के लिए हम आपको बताने जा रहे हैं
की ‘चमार’ शब्द
आखिर हिन्दू समाज में आया कैसे!
जब
भारत पर तुर्कियों का राज था, उस सदी में इस वंश का शासन भारत के
पश्चिमी भाग में था। और उस समय उनके प्रतापी राजा थे चंवर सेन। इस राज परिवार के
वैवाहिक सम्बन्ध बप्पा रावल के वंश के साथ थे। राना सांगा और उनकी पत्नी झाली रानी
ने संत रैदासजी जो की चंवरवंश के थे, को
मेवाड़ का राजगुरु बनाया था। यह चित्तोड़ के किले में बाकायदा प्रार्थना करते थे। आज
के समाज में जिन्हें चमार बुलाया जाता है, उनका
इतिहास में कहीं भी उल्लेख नहीं है।
डॉक्टर विजय सोनकर के अनुसार
प्राचीनकाल में ना तो यह प्रचलन में था न ही इस शब्द का कोई उल्लेख ही प्राचीन काल
में पाया जाता है, ना हीं इस नाम की कोई जाति है। तो आखिर
ये शब्द आया कहाँ से हैडॉक्टर विजय सोनकर के अनुसार प्राचीनकाल में ना तो यह शब्द
पाया जाता है, ना हीं इस नाम की कोई जाति है। ऋग्वेद
में बुनकरों का उल्लेख तो है, पर वहाँ भी उन्हें चमार नहीं बल्कि
तुतुवाय के नाम से सम्भोदित किया गया है। सोनकर कहते हैं कि चमार शब्द का उपयोग
पहली बार सिकंदर लोदी ने किया था। मुस्लिम अक्रान्ताओं के धार्मिक उत्पीड़न का अहिंसक
तरीके से सर्वप्रथम जवाब देने की कोशिश संत रैदास ने की थी। उन्हें दबाने के लिए
सिकंदर लोदी ने बलपूर्वक उन्हें चरम कर्म में धकेल दिया था। और उन्हें अपमानित
करने के लिए पहली बार “ चमार “ शब्द
का उपयोग किया था।
सोनकर
आगे बताते हैं कि संत रैदास ने सारी दुनिया के सामने मुल्ला सदना फ़क़ीर को
शास्त्रार्थ में हरा दिया था। मुल्ला फ़क़ीर ने तो अपनी हार मान ली और वह हिन्दू बन
गए, परन्तु सिकंदर लोदी आग बबूला हो गए। उन्होंने
संत को कारागार में डाल दिया, पर जल्द ही चंवरवंश के वीरों ने दिल्ली
को घेर लिया और लोदी को संत को छोड़ना ही पड़ा।इस वर्तमान पीढ़ी की विडंबना देखिये
कीहम इस महान संत के बलिदान से अनभिज्ञ हैं। कमाल की बात तो यह है कि इतने ज़ुल्म
सहने के बाद भी इस वंश के वीर हिंदु ही बने रहे और उन्होंने इस्लाम को नहीं
अपनाया। गलती हमारे समाज में है। हम हिन्दुओं को अपने से ज्यादा भरोसा वामपंथियों
और अंग्रेजों के लेखन पर है। उनके कहे झूठ के चलते हमने अपने भाइयों को अछूत बना
लिया।
आज
हमारा हिन्दू समाज अगर प्रतिष्ठित है, तो
उसमें बहुत बड़ा बलिदान इस वंश के वीरों का है। जिन्होंने नीचे काम करना स्वीकार
किया, पर इस्लाम नहीं अपनाया। उस समय या तो आप इस्लाम
को अपना सकते थे, या मौत को गले लगा सकते था, अपने
जनपद/प्रदेश से भाग सकते थे, या फिर आप वो काम करने को हामी भर सकते
थे जो अन्य लोग नहीं करना चाहते थे। यह पढने के बाद अब तो आपको विश्वास हो जाना
चाहिए की हमारे बीच कोई भी चमार अथवा अछूत नहीं है।
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