संतों
के ऊपर विवाद से दो फाड़ होता हुआ समाज।
हालिया
दौर में संतों-हिन्दू धर्मगुरुओं पर निशाने पर लिया गया है और यह उनकेसामाजिक
सरोकारों को पीछे धकेल समाज को विषाक्त-विभाजित करने का प्रयास है।
भारत
देश की पहचान उनकी पुरातन पौराणिक एवं वैदिक सनातन हिन्दू संस्कृति से है। देश के
जिन हिस्सों में हिन्दू संस्कृति का प्रभाव कम होगा है वहां भारत का नैसर्गिक
अस्तित्व खतरे रहेगा। इसका आंकलन इतिहास का विवेचन कर भलीभांति किया जा सकता है और
इसी सिलसिले में देश में आये दिन सहिष्णु हिन्दू समाज के लिए उठ रहे राजनैतिक और
धार्मिक विरोधी मतान्तर के ताज़ा उदाहरण हिन्दू भावनाओं को हाशिये पर रखने के लिए
उतारू है।
कई
बड़े-बड़े संत अध्यात्मिक ज्ञान प्रचार के साथ साथ समाज के उत्थान एवं खुशहाली के
लिए बहुत सारी योजनायंा लेकर बहुत ही प्रसंशनीय सेवाकार्य कर रहे है। लेकिन बड़े ही
दु:ख के साथ कहना पड़ता है कि भारत के मीडिया ने हिन्दू धर्म के संतो की एक महान
समाज सेवक के रूप में बिलकुल भी नोंध नहीं ली है। उन्हें तो कदाचित सिर्फ मिशनरीज
ऑफ़ चैरिटी ही नजर आता है सेवा के नाम पर।
हमारे
देश में संत शब्द आम हो गया है। हमारे देश में कोई भी व्यक्ति या धर्म प्रचारक संत
शब्द का लेबल लगाकर घूम सकता है। लेकिन प्रश्न यह है कि संत किसे माना जाये ? इसाई
धर्म में संत बनाया जाता है।कोई पादरी वेटिकन सिटी के पोप के निर्देश में रहते हुए
मिशन के अनुसार अच्छा काम किया तो वेटिकन की ओर से पादरी या बिशप को संत की उपाधि
दी जाती है।लेकिन हमारे देश में ऐसा नहीं है। हमारे देश के संत किसी संस्था के
द्वारा निर्मित नहीं होते। भारत में संत की पदवी समाज देता है।अपने नाम के आगे संत
शब्द तो बहुत लोग लगा लेते हैं लेकिन कारवा तो सच्चे संतो के पीछे ही चलता है।
व्यक्तित्व
के स्वभाव का नाम ही ‘संत’ है।
संत यानि सर्व गुण सम्प्पन, चरित्रवान, मोह
माया से परे, क्षमावान, उदार, परोपकारी
और आध्यात्मिक पूर्णता को पाया हुआ व्यक्तित्व।इस प्रकार के व्यक्तित्व का
उद्देश्य होता है समाज सेवा। भारत के इतिहास में वर्णित हुए ऐसे व्यक्तित्व वाले
महापुरुषों ने सामान्य मानव के जीवन का सशक्त रूप से मार्गदर्शन किया है। उनके भौतिक
सेवा-प्रकल्पों ने बड़े स्तर पर समाज को लाभ पहुँचाया है। गुजरात के वीरपुर में हुए
जलाराम बापा एवं शिरडी के साईं बाबा इसके उत्तम दृष्टान्त हैं। आज भी भारत देश में
कई बड़े-बड़े संत अध्यात्मिक ज्ञान प्रचार के साथ साथ समाज के उत्थान एवं सुखकारी के
लिए बहुत सारी योजनायें लेकर बहुत ही प्रसंशनीय सेवाकार्य कर रहे है। लेकिन बड़े ही
दु:ख के साथ कहना पड़ता है कि भारत के मीडिया ने हिन्दू धर्म के संतो की एक महान
समाज सेवक के रूप में बिलकुल भी नोंध नहीं ली है। मीडिया ने तो हमेशा से इसके उलट
ही किया है। न जाने क्यूँ भारत के समाचार माध्यमों को भारत के बड़े-बड़े जाने माने
हिन्दू संतों का जनमानस में फैलता प्रभाव रास नहीं आता। लेकिन फिर भी मीडिया के इस
विपरीत प्रचार के बावजूद हमने देखा है कि सच्चे संतों के साथ लाखों लोग जुड़ते हैं
और फिर वह लाखों लोग समाज सेवक में परिवर्तित हो जाते हैं। संतों के संपर्क में
आने वाला समाज का यह तबका अपने परिवार से ऊपर उठकर समाज, देश
और विश्व कल्याण के लिए सोचने लगता है।
वर्तमान
में भारत में कई हिन्दू संत अपनी धार्मिक संस्थाओं के मध्याम से लोक कल्याण के लिए
एक से बढ़कर एक सेवा-योजनाओं का अमलीकरण रहे है। वैसे तो देश की हजारों की संख्या
में धार्मिक संस्थाएं अपनी यथा शक्ति से कुछ न कुछ योगदान दे ही रही हैं लेकिन हम
यहाँ कुछ प्रमुख आध्यात्मिक संस्थाओं के के बारे में जानेंगे। भारत के बड़े-बड़े
अध्यात्मिक गुरुओं संस्थाओं द्वारा शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, पुनर्वसन, कुदरती
आपदाओं में मदद, बच्चों को पौष्टिक आहार समेत अनेक
बुनियादी सुविधाओं के लिए योजनायें चलाई जा रही हैं और करोड़ों जरुरतमंद इससे
लाभान्वित हो रहे हैं। हम यहाँ कुछ प्रमुख संस्थाओं द्वारा चलाई जा रही योजनाओ के
बारे में गौर करते हैं -
श्री
सत्य साईं बाबा और उनकी संस्था : आन्ध्र प्रदेश के पुट्टपर्ती गाँव में श्री सत्य
साईं सेवा संस्थान का मुख्यालय है। इस संस्थान के द्वारा शिक्षा, स्वास्थ्य
और सामाजिक उत्थान के क्षेत्र में कई उपयोगी कार्य किये जा रहे है। संस्था के
द्वारा 1981 में उच्च शिक्षण के लिए डीम्ड विश्व
विद्यालय की स्थापना की गई जिसकी शाखाएं देश के कई क्षेत्रो में स्कूल और कॉलेज
तौर पर कार्यरत है। जिसमें प्राथमिक शिक्षा से लेकर डिग्री तक नि: शुल्क या कम से
कम लागत में पढाया जाता है। संगीत शिक्षा के लिए संगीत स्कूल भी कार्यरत है।
श्री
सत्य साईं सेवा संस्थान के द्वारा आंध्र के अनंत पुर जिले में और बेंगलुरु में
श्री सत्य साईं उच्च मेडिकल संस्थान की स्थापन अपने आप में एक मिसाल है। बेंगलुरु
में एक जनरल अस्पताल भी कार्यरत है। संस्थान द्वारा हर साल ह्रदय रोग के हजारों
मरीजों का निःशुल्क ऑपरेशन करवाया जाता है। ऐसे एक ऑपरेशन का खर्च लगभग एक लाख से
दो लाख तक का होता है। साथ ही देश में कई जगहों पर सत्य साईं मेडिकल इंस्टिटयूट
द्वारा स्वास्थ्य शिबिरों का भी आयोजन किया जाता है।
संस्थान
आम लोगों के जीवन के उत्थान के लिए भी बहुत सी योजनायें चला रहा है। इनमें से एक
है बहुचर्चित शुद्ध पेयजल सप्लाई योजना। अनंतपुर, मेदक, महबूब
नगर और चेन्नई के कई गाँव-कस्बों में सत्य संस्थान ने एक बड़ी राशी व्यय कर इस
परियोजना द्वारा पानी सप्लाई का बीड़ा उठाया है जो वाकई अचंभित कर देने वाला है।
संत
श्री आसारामजी बापू और उनके आश्रम : बापू के आश्रम भले ही खूब विवादित रहे हों
लेकिन उनके द्वारा जो मूलभूत स्तर पर जनसेवा के कार्य किये गए हैं और किये जा रहे
हैं, ये वाकई एक अमिट छाप छोड़ने वाला रहा है।1973
में संत आसारामजी बापू ने अहमदाबाद के पास साबरमती नदी के किनारे पर एक छोटी सी
कुटीर बनाकर समाज सेवा की शुरुआत की थी।आज संत श्री आसारामजी बापू की वह छोटी सी
कुटिया से आश्रमों की श्रृंखला और केन्द्रों की एक लम्बीं कतारों में पूरे विश्व
में फ़ैल चुकी है। संत आसारामजी बापू ने सत्संग के माध्यम से करोडो लोगो के जीवन
सकारात्मक परिवर्तन किया है।
आश्रम
के ज्यादातर कार्य और सेवा प्रोजेक्ट सीधेतौर पर आदिवासी और गरीबों के उत्थान के
लिए केन्द्रित हैं। आश्रम ने गरीब और आदिवासी लोगों के बच्चों के लिए शिक्षा और
संस्कार मिले, इसलिए ऐसे क्षेत्रो में स्कूल एवं
गुरुकुलों की स्थापना की। गुजरात के साबरकांठा और डांग जिले में तथा उड़ीसा राज्य
के कई पिछड़े इलाको में संत श्री आसारामजी आश्रम के द्वारा निः शुल्क विद्यालय
कार्यरत है। आश्रम के गुरुकुलों में पढ़े हुए आदिवासी और पिछड़े गरीब वर्ग के कई
बच्चों ने आज शिक्षा के पायदानों पर बड़े-बड़े मुकाम हासिल किये हैं।
गरीबों
के लिए आश्रम के द्वारा मोबाईल वैन द्वारा दूर-दराज के इलाकों में चिकित्सा सेवाएं
भी दी जाती है। ये सेवा कार्य 25 वर्षों से निरंतर चल रहा है। आश्रम के
द्वारा आयुर्वेद और कुदरती उपचार पद्धतियों का भी प्रचार प्रसार होता है। संत श्री
आसारामजी सत्संग प्रवचन के माध्यम से 35
वर्षों से भारतीय योग, आयुर्वेद, मंत्र
विज्ञान और कुदरती चिकित्सा के प्रखर समर्थक और प्रचारक रहे हैं।
गौ
सेवा के क्षेत्र में भी संत आसारामजी बापू एवं आश्रम का काम प्रशंसनीय है। आश्रम
के द्वाराकई गौशालाएं चलाई जाती है। बापू की गौ शाला में कसाईखाने में कटने से बची
हुई गायों को रखा जाता है। गौशाला द्वारा गौझरण, आर्गेनिक
खाद जैसे विविध उत्पाद और आयुर्वेदिक दवाईयाँ निर्मित करके सैकड़ों परिवारों को इस
योजना के अंतर्गत रोजगार भी उपलब्ध कराया जाता है।
गरीबों
को रोटी कपड़ा और मकान मिले इसलिए संत आसारामजी बापू और आश्रम तथा उनकी सेवा
समितियों से जुड़े कार्यकर्त्ता सतत प्रयत्नशील रहते हैं। कुदरती आपदाओं आश्रम का
डिजास्टर मनेजमेंट विभाग बढचढकर भागीदार बनता है। अक्सर देखा गया है कि कुदरती
आपदा के समय शासन के समक्ष और आपदा से अंतिम प्रभावित व्यक्तियों तक मदद पहुंचाना
बापू के सेवादारों के जज्बे में दिखाई देता है। कच्छ का भूकंप हो, बिहार
में कोशी नदी की बाढ़ हो या फिर केदारनाथ की आपदा हो। इसके साक्षी हैं। भारत के
पूज्य राष्ट्रपति अब्दुल कलाम जी ने इन कार्यों की भूरि- भूरि प्रसंशा की है।
दु:ख
की बात ये है कि समाज उत्थान के अनगिनत सेवाकार्य करने वाले महान समाज सेवक संत
आसारामजी बापू को राजनैतिक षडयंत्र के तहत फंसाया गया है। देश के मीडिया का रवैया
संत आसारामजी के प्रति बहुत ही दोहरेपनवाला रहा है। इन सबके बावजूद भी संत
आसारामजी बापू और उनके सेवक दिन रात समाज सेवा के लिए तत्पर रहते है। मैंने देखा
है कि जितना इनको सताया गया है। उतने ही ये दुगुना ताकत से ज्यादा सेवा करके
विरोधियो का मुंह बंद करते उनका एक ध्येय रहा है।
स्वाध्याय
परिवार : गीता में वर्णित निष्काम कर्मयोग के सिद्धांत पर चलने वाले पूज्य
पांडुरंग शास्त्री आठवले द्वारा स्थापित इस संस्था संश्था ने १९८० से १९९० के दशक
में देश में जबरदस्त अध्यात्मिक क्रांति का आगाज़ किया था। इस संस्था ने श्रीमद
भगवद गीता के सन्देश के माध्यम से मानव मानव में आपसी प्रेम और सदभावना बढाने के
सूत्र को समाज में फैलाने का अद्भुत काम किया है। योगेश्वर कृषि, मस्त्य
गंधा आदि योजनाओं के द्वारा समाज के निम्न वर्ग को सम्मान देकर उनको समानता देने
का प्रयास किया है, इस संस्था ने !
गायत्री
परिवार : पंडित राम शर्मा आचार्य द्वारा स्थापित युग निर्माण के संकल्प से सामान्य
जन मानस में पैठ पा चुकी यह संस्था गायत्री परिवार के नाम से सर्वविदित है। हिन्दू
समाज में प्रवर्तमान ऊंच-नीच के भेदभाव को मिटाकर सब को समान धार्मिक अधिकार दिलाने
में गायत्री परिवार ने बहुत ही योगदान दिया है। भारत में गायत्री परिवार द्वारा
लगभग ५०० से भी ज्यादा मंदिर है। हर मंदिर में पूजा पाठ एवं धार्मिक अनुष्ठान के
अलावा समाज कल्याण की कई प्रवृत्तियाँ चलायी जाती हैं। व्यसन मुक्ति अभियान भी बड़े
जोर-शोर से चलाया जाता है। समाज को जागृत करने हेतु एवं वैचारिक प्रदूषण दूर करने
हेतु सत्साहित्य का वितरण किया जाता है। संस्था के द्वारा हरिद्वार में
विश्वविद्यालय भी चलाया जा रहा है जिसमें हर साल हजारो विद्यार्थी अध्ययनरत हैं।
देश
में ऐसे अनगिनत संत है जो किसीन किसी प्रकार की लोक-कल्याण के कार्यरत हैं। जिसमे
श्री श्री रवि शंकर महाराज, जगद्गुरु श्री कृपालु महाराज , श्री
माँ अमृतानंदमयी, श्री स्वामी नित्यानंद, प्रमुख
स्वामी महाराज, स्वामी रामदेव आदि अनेक जाने माने
संतों द्वारा समाज में व्यापक सेवाएं की जा रही है। फिर भी समाज में उनकी भूमिकापर
प्रश्नउठाना, विडम्बना ही है।
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