(गोपाष्टमी : 8 नवम्बर)

गायों व गरीबों को दिया नवजीवन

                    पूज्य बापूजी का गायों के प्रति प्रेम अभूतपूर्व है । उनके संरक्षण व संवर्धन के लिए पूज्यश्री द्वारा किये गये सफल प्रयासों से गायों को नवजीवन मिला है । निवाई (राजस्थान) के बंजर इलाके में बापूजी ने गौशाला की स्थापना कराके ऐसे इलाके को भी हरा-भरा कर दिया है ।

                    इस गौशाला के शुभारम्भ का इतिहास बड़ा प्रेरणाप्रद है । सन् 2000 में राजस्थान में पड़े भीषण अकाल के कारण लगभग डेढ़ हजार गायें कत्लखाने ले जायी जा रही थीं । वहाँ के साधकों ने जब पूज्य बापूजी को इस बात की जानकारी दी तो पूज्यश्री ने उन गायों को छुड़वाया तथा उनकी सेवा के लिए 14 जून 2000 को एक गौशाला का शुभारम्भ करवाया । यहाँ पर उन्हें चारा-पानी तथा चिकित्सा-सुविधा उपलब्ध करायी गयी ।

                    उस समय निवाई में पानी एवं घास के अभाव में गाँववाले गायों को छोड़ देते थे तो कत्लखानेवाले उन्हें ले जाते थे । यह पता चला तो बापूजी का हृदय भर आया, बोले : ‘‘एक भी गाय कत्लखाने नहीं जानी चाहिए ।’’

                    पूज्यश्री के निर्देशानुसार गायों को कसाइयों से मुक्त करवाकर उनके लिए बाड़ा बनवाया गया । धीरे-धीरे वहाँ की गौशाला में 5000 से भी ज्यादा गायें हो गयीं । बापूजी गायों का खूब खयाल रखते-रखवाते थे । पूज्यश्री बोलते थे : ‘‘गायों को तकलीफ न हो इसका ध्यान रखना ।’’ वहाँ इतनी गायों को रखने की जगह नहीं थी । ऊपर से गर्मियों में गाँववाले अपनी गायें भी ले आते थे । पूज्यश्री के पास समाचार पहुँचा तो आपश्री बोले : ‘‘कुछ भी करके गायों को रखो, सेवा और बढ़ाओ ।’’

                    गर्मियों में वहाँ गायों के लिए पीने का पानी तक नहीं मिल पाता था तो शहर से पानी के टैंकर मँगवाते थे । एक दिन में 3-4 टैंकर पानी लग जाता था । वहाँ हरी घास नहीं मिलती थी फिर भी बापूजी बोलते : ‘‘हफ्ता या 15 दिन में हरी घास गायों को मिलनी ही चाहिए, कहीं-न-कहीं से व्यवस्था करो ।’’

हरी घास की व्यवस्था की जाती थी । बापूजी बहुत व्यस्तता में भी साल में 1-2 बार निवाई में जरूर रुकते थे । पूज्यश्री अपने हाथों से गायों को चारा खिलाते और सभी बाड़ों में जा के देखते, दुबली-पतली गायों को बाहर निकलवाकर बोलते : ‘‘इनका इलाज कराओ । बूढ़ी व जवान गायों की अलग और इनके बछड़ों की अलग व्यवस्था करो ।’’

फिर बापूजी ने लुधियाना, श्योपुर (म.प्र.), दिल्ली, अहमदाबाद आदि विभिन्न स्थानों पर गौशालाएँ खुलवायीं और निवाई की कुछ गायों को सभी जगह भिजवाया । अभी इन गौशालाओं में कुल 8000 गायें हैं ।

निवाई आश्रम में ट्यूब वेल खुदवाया गया और भगवत्कृपा से पानी का अच्छा स्रोत निकला । वहाँ घास भी लगने लगी । गायों को हरी घास, दलिया, कपास के बीज, ज्वार-बाजरा, मूँग का चूरा आदि पोषक आहार एवं ऋतु-अनुकूल खुराक दी जाती है । उनके रहने के लिए बाड़े आदि की अच्छी व्यवस्था हो गयी ।

गरीबों का भी रखते हैं खयाल

                    पूज्य बापूजी गरीबों का भी खयाल रखते हैं । आसपास के मजदूर जो 5-5 कि.मी. से पैदल आते थे, उनके पास टोपी-चप्पल नहीं, रहने के लिए घर नहीं । बापूजी उन्हें जूते, टोपियाँ आदि खुद बाँटते-बँटवाते थे । इतना ही नहीं, पूज्यश्री ने उन गरीबों को मकान भी बनवाकर दिये ।

                    पहले वहाँ इतनी बदहाली थी कि लोग आत्महत्या करने की कगार पर आ जाते थे । बापूजी ने गायों के माध्यम से गरीबों के लिए रोजगार का मार्ग खोल दिया । पूज्यश्री ने गोझरण इकट्ठा करवाना चालू करवाया और उसका अर्क व गोझरण वटी बनवायी । थोड़े खर्च में लोगों की बहुत सारी बीमारियाँ अलविदा हो जातीं, गरीब स्वस्थ हो जाते और उनको रोजगार भी मिलता । गोझरण अर्क से देश-विदेश में कइयों की असाध्य बीमारियाँ जैसे कैंसर, टी.बी. आदि मिट गयीं ।

                    गोझरण इकट्ठा करने के लिए गरीबों को पैसे दिये जाते हैं । बाद में गौचंदन धूपबत्ती बनना भी चालू हो गया तो गोबर इकट्ठा करने व धूपबत्ती बनाने का भी उनको रोजगार मिलने लगा । गरीबों को 150-200 रुपये प्रतिदिन के मिल जाते । हर व्यक्ति को उसकी उम्र की अनुकूलता अनुसार काम मिलता है ।

बापूजी एक बार निवाई पधारे तब सभी मजदूरों को पास में बुला-बुला के उनकी पीठ थपथपायी और पूछा : ‘‘तुमको कितना पैसा मिलता है, ये लोग खयाल रखते हैं ?’’ इस प्रेम व अपनत्व से उन गरीब मजदूरों की आँखों से प्रेमाश्रु छलक पड़े थे ।

आश्रम में आकर कीर्तन-भजन करने से गरीबों का जीवन उन्नत व खुशहाल हो गया । बापूजी ने उनको यहाँ तक बोला : ‘‘आओ, यहाँ ध्यान-भजन करो, भोजन करो और रोज 50 रुपये भी ले जाओ ।’’

ऐसे मनायी जाती है गोपाष्टमी

                    जीवमात्र के परम हितैषी पूज्य बापूजी के द्वारा वर्षभर गायों के लिए कुछ-न-कुछ सेवाकार्य चलते ही रहते हैं तथा गौसेवा हेतु अपने करोड़ों शिष्यों एवं समाज को प्रेरित करनेवाले उपदेश पूज्यश्री के प्रवचनों का अभिन्न अंग रहे हैं । बापूजी के निर्देशानुसार गोपाष्टमी व अन्य पर्वों पर गौशालाओं में तथा गाँवों में घर-घर जाकर गायों को उनका प्रिय व पौष्टिक आहार खिलाया जाता है । उनकी सेवा, पूजा व परिक्रमा कर चरणरज सिर पर लगायी जाती है ।

(गोपाष्टमी विषयक अधिक जानकारी हेतु ‘ऋषि प्रसाद’ का नवम्बर 2015 अथवा नवम्बर 2012 का अंक पढ़ें ।)