चैत्री नूतन वर्ष की महत्ता।

(नूतन वर्ष विक्रम संवत् 2074 प्रारम्भ: 28 मार्च)
                                 हमारे नूतन वर्ष का आरम्भ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा अर्थात् चैत्री नवरात्रि की प्रतिपदा से होता है । वर्ष का पहला दिन होने से इसका विशेष महत्त्व है । वर्षारम्भ की यह मंगलदायिनी तिथि समूचे वर्ष के सुख-दुःख का प्रतीक मानी जाती है ।

कैसे करें नूतन वर्ष का स्वागत ?
                                 इस दिन नवरात्र घट-स्थापन व ध्वजारोहण, तैलाभ्यंग (शरीर में तेल लगाकर) स्नान, पाठ-पूजन आदि अनेक पुण्यदायी व शुभ कार्य किये जाते हैं । इनसे वर्षपर्यंत व्यापक शांति रहती है । मठ-मंदिरों, आश्रमों आदि धार्मिक स्थलों पर, घर-दुकान, गाँव-मुहल्लों तथा शहर के मुख्य प्रवेश द्वारों पर अशोक, आम, पीपल, नीम आदि के बंदनवार बाँध के तथा भगवा झंडा फहराकर नूतन वर्ष का स्वागत किया जाता है । हमारे ऋषि-मुनियों का कहना है कि बंदनवार के नीचे से जो गुजरता है उसकी ऋतु-परिवर्तन से संबंधित रोगों से रक्षा होती है ।
                                     नूतन वर्ष के दिन सूर्योदय के समय भगवान सूर्यनारायण को अर्घ्य देकर व शंखध्वनि करके नूतन वर्ष का स्वागत करना चाहिए । बीते हुए वर्ष में जाने-अनजाने जो गलतियाँ हो गयी हों उनके लिए ईश्वर से क्षमा-याचना करें एवं आनेवाले वर्ष में गलतियों से बचकर सन्मार्ग पर चलने, मनुष्य-जीवन के परम लक्ष्य परमात्मा को पाने का संकल्प लेना चाहिए । नूतन वर्ष मंगलमय हो, आनंदमय हो । भारतीय संस्कृति तथा सद्गुरु व महापुरुषों के ज्ञान से सभीका जीवन उन्नत हो ।’ - इस प्रकार एक-दूसरे को बधाई-संदेश देकर नूतन वर्ष का स्वागत करें ।

कैसे हुआ गुड़ी पड़वा का प्रारम्भ?
                                    इस दिन मर्यादापुरुषोत्तम श्रीरामचन्द्रजी ने बालि के अत्याचार से लोगों को मुक्त किया था । उसकी खुशी में लोगों ने घर-घर गुड़ी (ध्वजा) खड़ी कर उत्सव मनाया इसलिए यह दिन गुड़ी पड़वानाम से प्रचलित हुआ । ब्रह्माजी ने जब सृष्टि का आरम्भ किया उस समय इस तिथि को प्रवरा’ (सर्वोत्तम) तिथि सूचित किया था । इसमें व्यावहारिक, धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक आदि अधिक महत्त्व के अनेक कार्य आरम्भ किये जाते हैं ।
                                      नये साल के प्रथम दिन से ही चैत्री नवरात्र का उपवास चालू हो जाता है । 9 दिन का उपवास करके माँ शक्ति की उपासना की जाती है, जिससे आध्यात्मिक उन्नति के साथ-साथ मानसिक प्रसन्नता व शारीरिक स्वास्थ्य-लाभ भी सहज में ही मिल जाता है ।

क्यों करते हैं नीम का सेवन ?
                                चैत्र माह से गर्मी का प्रारम्भ हो जाता है, जिससे ऋतुजन्य बीमारियाँ जैसे - फोड़े-फुंसी, घमौरी तथा अन्य चर्मरोगों आदि से बचाव के लिए नीम का सेवन उपयोगी होता है । इस दिन स्वास्थ्य-सुरक्षा तथा चंचल मन की स्थिरता के लिए नीम की पत्तियों को मिश्री, काली मिर्च, अजवायन आदि के साथ प्रसादरूप में लेने का विधान है ।
                                     तात्त्विक दृष्टि से देखें तो हमारे जीवन-व्यवहार में कड़वे घूँट पीने के भी अवसर आते रहते हैं अतः नीम का सेवन करते समय मानसिक तैयारी कर लेनी चाहिए कि इस वर्ष प्रारब्धवश जो भी दुःख, मुसीबत, प्रतिकूलता, अपमान आदि के कड़वे घूँट पीने पड़ेंगे, उन्हें मैं प्रभु की कृपा समझकर पचा जाऊँगा । उस कड़वाहट को भी स्वास्थ्य का साधन बनाऊँगा । विघ्न-बाधा, दुःख की परिस्थितियों को भी स्वमें स्थित होने हेतु समता के अभ्यास का साधन बनाऊँगा । शरीर को मैंव मन-बुद्धि के दोषों को अपने में न आरोपित करके साक्षी चैतन्य में टिकने का प्रयास करूँगा ।

मधुमय परमात्मा से करें प्रार्थना
                               आज समाज में भोगवादिता व पाश्चात्य विचारधारा का प्रभुत्व बढ़ा है । इस दिन हमें अपने देश, धर्म व संस्कृति के प्रति अपना दायित्व निभाने तथा नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों की पुनर्स्थापना के लिए कटिबद्ध होना है ।
                              यह दिन हमें प्रेरणा देता है कि जिस प्रकार प्रभु श्रीरामचन्द्रजी ने बालि पर विजय प्राप्त की तथा शालिवाहन ने शकों को पराजित किया, उसी प्रकार हमें अपनी निंदा, ईर्ष्या, काम, क्रोध, लोभ, मोह, राग-द्वेष आदि आसुरी वृत्तियों पर विजय प्राप्त करनी है ।
                                 इस दिन परमात्मा से प्रार्थना करें कि हमारा जीवन मधुमय हो, हमारा व्यवहार व वाणी मधुमय हो, हमारी प्रत्येक चेष्टा मधुमय ईश्वर की ओर ले जानेवाली हो ।
अथर्ववेद’ (1.34.2) में आता है:
जिह्वाया अग्रे मधु मे जिह्वामूले मधूलकम् ।
ममेदह क्रतावसो मम चित्तमुपायसि ।।
                           ‘मेरी जिह्वा के अग्रभाग में माधुर्य हो । मेरी जिह्वा के मूल में मधुरता हो । मेरे कर्म में माधुर्य का निवास हो और हे माधुर्य! मेरे हृदय तक पहुँचो ।
                                 इस पवित्र मांगलिक दिन हमें यह शुभ संकल्प करना है और इसे पूर्ण करने का सामर्थ्य प्रभु हमें दें’ - इस भावना से नूतन वर्ष के मंगलमय अवसर को उत्साह से मनाना है ।
पूज्य बापूजी का नूतन वर्ष पर संदेश
                                 नये साल में हमेशा नयी उमंग से, नये उत्साह से रहो । जो बीत गया वह सपना है, जो बीत रहा है, सपना है; जो बीतेगा वह भी सपना है और उसको जाननेवाला परमात्मा अपना है, नित्य नवीन है । जैसे सूर्य नित्य नवीन है, ऐसे ही चैतन्य नित्य नवीन है ।
खून पसीना बहाता जा, तान के चादर सोता जा ।
यह नाव तो हिलती जायेगी, तू हँसता जा या रोता जा ।।
                               हँसते जाओ, मौज से रहो । ठीक है ? हँसते-खेलते अपने सच्चिदानंद स्वभाव को पाओ ।