हवन कैसे करे?
(1) वेद मंत्रो में बहुत ताकत है ! मंत्रो के अधीन
देवता है ! ब्र्हामण और अग्नि भगवान के दो मुह माने जाते है ! मुह के दो काम है !
एक खाने का एक बोलने का अग्नि भगवान के खाने का मुह है इसलिये हम यग्य करके अग्नि
में आहुति देते है ! यग्य करने से घर की शुद्धि होती है !
(2) दक्षिण दिशा राक्षसो,पिशाचो व दानवो की मानी गई है ! उनसे यग्यकर्म की रक्षा हो
सके अतएव ब्र्हमा जी का स्थान (आसन ) दक्षिण की तरफ़ लगाया जाता है !
(3) वेदी बनाना == 40 बाय 40 सेंटिमिटर की
बनाये ! या जगह के हिसाब से,किसी पात्र में
भी हवन किया जा सकता है ! गुलाल से या कुमकुम से
*रं* लिख कर फ़िर हवन शुरू करे ! क्योंकी यह अग्नि का बीज
मंत्र है ! इसको नही लिखने से यग्य में चाहे जितनी घी की आहुति देवे वे सब निश्फल
होती है !
(4) अग्नि प्र्ज्वलित करना == हवन की अग्नि को पंखे
से मुख से प्र्ज्वलित करना मना है ! यदि
भुख, प्यास या क्रोध का आवेग
हो मंत्र न आता हो अग्नि प्र्ज्वलित न हो तो हवन न करे !
(5) आहुति देना == साकल्य और घी की आहुति एक साथ
देवे ! साकल्य की आहुति एक साथ चाहे जितने व्यक्ति दे सकते है ! घी की आहुति एक ही
व्यक्ति देवे ! यग्य के अंत में गुरू मंत्र की 10 आहुति देनी चाहिये !'
(6) ग्र्हो की नव समिधा == सूर्य == आक
चन्द्र == पलाश
मंगल == खैर (खदिर)
बुध == अपामार्ग
गुरू == पिपल
शुक्र == गुल्लर
शनि == शमि ( खेजडी)
राहु == सुखी दुर्वा
केतू == कुश की समिधा से हवन करना चाहिये !
अन्य समिधा वटवृक्ष, आम,देवदारू, बिल्ववृक्ष आदी समिधा हवन में प्रयोग ली जा
सकती है ! अंगूठे अधिक मोटी समिधा, छाल रहित एवं
किडे लगी हुई समिधा यग्य कर्म में वर्जित है !
समिधा प्रमाण == [10 अंगूल की ] होनी
चाहिये !
(7) शाकल्य प्रमाण == तिल से आधा चावल तथा चावल से
आधा जौ एवं जौ से आधी शक्कर तथा संपूर्ण सामग्री से आधा घी लेना चाहिये !
(8) सर्वकार्य
हेतु हवन सामग्री
तिल, चावल,जौ, शक्कर,घी, पंचमेवा, हवनपुडा, छेड़छडीला,कपूर काचरी,नागर मोथा, अगर-तगर, गुग्गलधूप,चंदन चुरा लालचंदन चुरा, बेलगिरी,अनारदाना आदी
(9) विशेष == यग्य और श्राद्धादि में काले तिल लेने
चाहिये ! सफ़ेद तिल नही
(10) हवन करने की मुद्रा
(1) सूकरीमुद्रा == सब अंगूलियो को मिलाकर सामग्री
लेकर आहुति देवे !
(2) हंसीमुद्रा == कनिश्ठिका रहित (बाद देकर ) बाकी
अंगूलियो से आहुति दे !
(3) मृगीमुद्रा == कनिश्ठिका तथा तर्जनी को बाद
देकर आहुति देवे !
(11) तीन प्रकार के यग्य
(1) घ्यानयग्य ==
घ्यान के लिये घ्यान की पुस्तके पढे !घ्यान यग्य सबसे बडा है ! इससे मनुष्य का
उद्धार होता है !
(2) जपयग्य == मानसिक जप करे ! इसका विशेष फल है !
दान यग्य == यथा शक्ति दान करे ! इससे ईहलोक में कीर्ति होती है ! और किसी समय
किया पुण्य काम आता है !"@ सामान्य हवन
सामग्री
तिल, जौं, सफेद चन्दन का चूरा , अगर , तगर , गुग्गुल, जायफल, दालचीनी, तालीसपत्र , पानड़ी , लौंग , बड़ी इलायची , गोला , छुहारे नागर मौथा
, इन्द्र जौ , कपूर कचरी , आँवला ,गिलोय, जायफल, ब्राह्मी तुलसी किशमिशग, बालछड़ , घी
विभिन्न हवन सामग्रियाँ विभिन्न प्रकार के लाभ
देती हैं विभिन्न रोगों से लड़ने की क्षमता देती हैं.
प्राचीन काल में रोगी को स्वस्थ करने हेतु भी
विभिन्न हवन होते थे। जिसे वैद्य या चिकित्सक रोगी और रोग की प्रकृति के अनुसार
करते थे पर कालांतर में ये यज्ञ या हवन मात्र धर्म से जुड़ कर ही रह गए और इनके
अन्य उद्देश्य लोगों द्वारा भुला दिए गये.
सर भारी या दर्द होने पर किस प्रकार हवन से इलाज होता था इस श्लोक से देखिये
:-
श्वेता ज्योतिष्मती चैव हरितलं मनःशिला।
गन्धाश्चा गुरुपत्राद्या धूमं मुर्धविरेचनम्।। (चरक सू*
५/२६-२७)
अर्थात अपराजिता , मालकांगनी , हरताल, मैनसिल, अगर तथा तेज़पात्र औषधियों को हवन करने से शिरो व्विरेचन
होता है।
परन्तु अब ये चिकित्सा पद्धति विलुप्त प्राय हो गयी है।
कुछ रोगों और उनके नाश के लिए प्रयुक्त
होने वाली हवन सामग्री पर
१. सर के रोग:- सर दर्द, अवसाद, उत्तेजना,
उन्माद मिर्गी आदि के लिए
ब्राह्मी, शंखपुष्पी ,
जटामांसी, अगर , शहद , कपूर , पीली सरसो
२ स्त्री रोगों, वात पित्त, लम्बे समय से आ
रहे बुखार हेतु
बेल, श्योनक, अदरख, जायफल, निर्गुण्डी, कटेरी, गिलोय इलायची, शर्करा, घी, शहद, सेमल, शीशम
३ पुरुषों को पुष्ट बलिष्ठ करने और पुरुष रोगों हेतु
सफेद चन्दन का चूरा , अगर , तगर , अश्वगंधा , पलाश , कपूर , मखाने, गुग्गुल, जायफल, दालचीनी, तालीसपत्र , लौंग , बड़ी इलायची , गोला
४. पेट एवं लिवर रोग हेतु
भृंगराज , आमला , बेल , हरड़, अपामार्ग, गूलर, दूर्वा , गुग्गुल घी ,
इलायची
५ श्वास रोगों हेतु
वन तुलसी, गिलोय, हरड , खैर अपामार्ग, काली मिर्च,
अगर तगर, कपूर, दालचीनी, शहद, घी, अश्वगंधा, आक, यूकेलिप्टिस
0 टिप्पणियाँ