‘चूड़ावत मांगी सैनानी, सिर
काट भेज दिया क्षत्राणी’ , हाड़ी रानी की वीरगाथा है कभी आपने सुनी?
हाड़ी
रानी सलुम्बर के सरदार राव रतन सिंह चूड़ावत की पत्नी थी। वो बूंदी के शासक
शत्रुशाल हाड़ा की पुत्री थी जिसने भारतीय इतिहास में अपना शौर्य का अदम्य परिचय
देकर अपना नाम वीर क्षत्राणियों की सूची में शश्वत बना लिया। राजपूत नारियों का
शौर्य, उनका बलिदान, उनकी साहस की वीर गाथा सुनते हुए ही हम
सब बड़े हुये हैं। भारत की नारियों ने अपने और अपनी मातृभूमि के सम्मान के लिए जान
तक न्यॊछावर की है। ऐसे महानयक और नायिकाएं आज हमारे स्मृति से विस्मृत हो गये
हैं। उनकी वीर गाथाओं के ऊपर कॊई किताब नहीं लिखता ना ही उनपर कॊई चलनचित्र बनाया
जाता है।
यह
कहानी नहीं है की इसे पढ़कर भुला दिया जाये अपितु यह सत्य घटना है कि हाड़ी रानी ने
अपने पति को अपने प्रेम की निशानी के रूप में अपना ही शीष काटकर थाली में सजा कर
दे दिया था। कल्पना से परह है यह बात कि कॊई रानी अपना ही शीष काटकर अपने पति को
ही भेंट स्वरूप दे सकती है! लेकिन यह सच है। हाड़ी रानी ने अपने युद्द निरत
कर्तव्य से विमुख पति को क्षत्रिय धर्म का पाठ पढ़ाया। इतिहास में इस रानी का नाम
ध्रुव तारा की तरह दर्ज होना चाहिए था लेकिन क्या करे हमारा दुर्भाग्य है कि आज
हाड़ी रानी के जैसे अनगिनत महानायिका हमारे मस्तिष्क से विस्मृत हो चुकी हैं।
औरंगज़ेब
का शासन काल था, और हिन्दुओं पर उसका अत्याचार बहुत बड़
चुका था। हिन्दुओं पर जज़िया कर लगाया था और हिन्दूओं का नर संहार किया जा रहा था।
दक्षिण में शिवाजी, बुंदेलखंड में छत्रसाल, पंजाब
में गुरु गोबिंद सिंह, मारवाड़ में राठौड़ वीर दुर्गादास मुगल
सल्तनत के विरुद्ध उठ खड़े हुए थे। यहां तक कि आमेर के मिर्जा राजा जयसिंह और
मारवाड़ के जसवंत सिंह जो मुगल सल्तनत के दो प्रमुख स्तंभ थे, उनमें
भी स्वतंत्रता प्रेमियों के प्रति सहानुभूति उत्पन्न हो गई थी। वे सारे मुगल
सल्तनत के विरुद्ध विद्रॊह करने लगे थे और मुगलों को धूल चटा रहे थे।
निर्लज्ज
औरंगज़ेब उसके बाप-दादों की तरह हवस का मारा था। उसके कानों में राजकुमारी चारुमती
के सौंदर्य की गाथा पड़ गयी। वहशी दरिंदा चारुमती को अपना बनाना चाह रहा था। इस बात
का संदेश राजकुमारी चारूमती के कानों में पड़ गया और वह घबरा गयी। उसने मेवाड़ के
राणा राजसिंह से विवाह कर अपनी मान और गरिमा को बचाने का प्रस्ताव रखा। राणा जी ने
यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया जिससे औरगज़ेब कुपित हो उठा और मेवाड़ पर आक्रमण कर
दिया था। अतुल्य पराक्रम से राणाजी, औरंगज़ेब
का सामना कर रहे थे। जैसे ही युद्द का प्रस्ताव आया तो राणा जी ने हाड़ा सरदार को
संदेश भिजवाया कि वे तुरंत ही युद्द में सम्मिलित हो जाये।
हाड़ा
सरदार की शादी अभी अभी हाड़ी रानी से हुई थी। रानी के हाथ से मेंहदी का रंग भी अभी
उतरा न था कि उसके पति को रणभूमी में जाना पड़ा था। लेकिन वह क्षत्राणी थी और अन्य
राजपूत नारियों की ही भांती वह भी खुश थी कि उसका पति कर्तव्य के पालन हेतु जा रहा
है। वह सहर्शा अपने पति के माथे पर तिलक लगाते हुए, उसकी
विजय की कामना करते हुए उससे विदा लेती है। लेकिन इधर रतन सिंह का मन डोल रहा था।
विवाह का नशा उसके मन से उतरा नहीं था। उसके हृदय में रानी का रूप घर कर गया था और
वह कर्तव्य से विमुख होता नज़र आ रहा था।
अध
मन से रतन सिंह घोड़ी चढ़गया और रणभूमी की ऒर प्रस्थान तो कर गया लेकिन उसका मन
युद्द में कम और रानी में ज्यादा टिका हुआ था। इस बात का अंदेशा रानी को भी हुआ था
कि उसका सरदार कर्तव्य से विमुख होकर रानी के ही द्यान में अविरत मन लगाये बैठा
है। सरदार ने रानी को याद करते हुए संदेश वाहक के हाथों संदेश भिजवाया की रानी
प्रेम की निशानी के रूप में अपनी कॊई वस्तु संदेश वाहक के हाथों में भिजवाए। रानी
को ज्ञात हो गया कि उसके सरदार का मन युद्द में नही बल्कि रानी में ही लगा हुआ है।
उसने अपने पति को कर्तव्य परायण बनाने की ठान ली, तेज़
तलवार लिया और उसने अपना ही सिर काट लिया! मरने से पहले उसने संदेश वाहक को कहा था
कि वह रानी का कटा हुआ सिर थाल में सजाकर सुंन्दर वस्र से ढ़ककर राजा को भेंट में
दें। रानी को पता था कि ऐसा करने से सरदार का मन उसके स्मृतियों से बाहर आयेगा और
वह रण भूमी में दुश्मनों को धूल चटायेगा।
धन्य
हो हाड़ी रानी, आपके पराक्रम और बलिदान की सीमा शब्दों
में बखान करनेवाली जैसी नहीं हैं। रानी, आप
तो पूजनीय हो जो अपने पति को कर्तव्य का पाठ पढ़ाने हेतु आपने स्वयं का शीष ही काट
दिया। इस युद्द में मुघलों की हार हुई और राणा जी जीत गये। हाड़ा सरदार महाकाल के
जैसे ही शत्रुओं पर टूट पड़ा था। अपनी रानी का कटा हुआ सिर देखकर उसको अपनी गलती का
एहसास हुआ और उसने अपने शौर्य का उदाहरण प्रस्तुत कर शत्रुओं का सर्वनाश किया।
इसमें सबसे बड़ा बलिदान हाड़ी रानी का था अगर उसने अपने पराक्रम का निदर्शन नहीं
दिया होता तो हाड़ा सरदार कर्तव्य विमूढ़ हॊकर युद्द हार जाता। परंतु रानी ने ऐसा
होने नहीं दिया।
आज
की नारियों को उन वीर-पराक्रमी-देश्प्रेमी क्षत्राणी नारियों से सीखने लायक बहुत
सी बातें है। अपने आन बान शान और मातृभूमि की रक्षा के लिए अपना सब कुछ न्योछावर
करनेवाली नारियां ही भारत की पहचान है। उन सभी नारियों को प्रणाम।
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